अजमेर दरगाह में हुए ब्लास्ट में सजा पाने वाले दो राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व प्रचारकों को आम आदमी पार्टी के नेता और पूर्व पत्रकार आशुतोष ने आतंकी बताया है। इन प्रचारकों को इस मामले में सजा मिलने के बाद आशुतोष ने आरएसएस को आड़े-हाथों लिया।आशुतोष ने अपने ट्विटर हैंडल पर ट्वीट कर आरएसएस से सवाल किया कि अब आरएसएस इन आतंकियों के बारे में क्या कहेगी? इसके साथ ही उन्होंने एक न्यूज पेपर की कटिंग भी डाली है जिसमें दोषियों को सजा देने की खबर छपी है। इन दोनों आरएसएस प्रचारकों का नाम देवेंद्र गुप्ता और भावेश पटेल है। बुधवार (22 मार्च) को इन दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। इस मामले में सजा का ऐलान एनआईए की स्पेशल कोर्ट द्वारा किया गया। आशुतोष के इस पोस्ट को 200 से ज्यादा लोग लाइक कर चुके हैं और वहीं कई लोग इसपर चर्चा भी कर रहे हैं।

इस पर कई ट्विटर यूजर्स ने अपनी अगल-अलग प्रतिक्रियाएं दी। मानस नाम के एक ट्विटर यूजर ने लिखा अब तुम्हे पता चल गया कि ये आरएसएस के हैं , हिन्दु हैं, ठाकुर हैं, ब्राहम्ण हैं, बनिया है और बाकियों के लिए आतंक का कोई धर्म नहीं होता। वहीं आरएसएस की पैरवी करते हुए एक महेंद्र सिंह ने लिखा संघ में कुछ दिन रहे फिर आप को पता चलेगा संघ आतंक सिखाता है या सदभावना। आरोप तो कोई भी लगा सकता है।

https://twitter.com/Mss_divrala/status/844773145605169152

इसके बाद दीपक बंसल लिखते हैं कि अगर किसी ने गलत किया है तो उसे सजा मिलनी चाहिए।आपको तो सारी रात नींद नहीं आयी होगी की कब सुबह हो और आप ये फोटो के साथ ट्वीट करें। एक और यूजर सिरसेंदु प्रसाद ने लिखा की आतंकी आतंकी होता है, लेकिन आपके लिए ये हिन्दु आतंकी हैं और जब बात इस्लाम की आती है तो आप कहते हैं कि आतंक का कोई धर्म नहीं होता।

इससे पहले 8 मार्च को NIA कोर्ट का फैसला आया था। तब तीन आरोपियों को दोषी करार दिया गया था। इस केस में जिन लोगों को दोषी पाया गया था उसमें सुनील जोशी, भावेश और देवेंद्र गुप्ता का नाम शामिल था। सुनील जोशी की पहले ही मौत हो चुकी है। वहीं जिन लोगों को बरी किया गया था उसमें स्वामी असीमानंद के अलावा चंद्रशेखर का नाम शामिल था।

गौरतलब है कि यह ब्लास्ट 11 अक्टूबर 2007 को अजमेर की ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती दरगाह पर हुआ था। इस हमले में तीन लोगों की मौत हुई थी। वहीं 17 लोग जख्मी हुए थे। 2011 में केस को एनआईए को सौंप दिया गया था। उससे पहले 2007 तक सिर्फ दो मुकदमें दर्ज किए गए थे, जिसमें स्वामी असीमानंद के अलावा देवेंद्र गुप्ता, चंद्रशेखर लेवी, मुकेश वासनी, भारत मोहन रतेशवर, लोकेश शर्मा और हर्षद सोलंकी के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई थी।