हमारे सौरमंडल की दशकों से जारी खोज में हमारे पड़ोसी ग्रहों में से एक शुक्र ग्रह के बारे में जानने-समझने के बहुत ज्यादा प्रयास नहीं किए गए, लेकिन अब चीजें बदलने वाली हैं। नासा के सौरमंडल खोज कार्यक्रम की ओर से हाल में की गई घोषणा में दो मिशनों को हरी झंडी दी गई है और ये दोनों मिशन शुक्र ग्रह के लिए हैं। इन दो महत्वाकांक्षी मिशनों को 2028 से 2030 के बीच शुरू किया जाएगा।
नासा के ग्रह विज्ञान विभाग के लिए एक महत्त्वपूर्ण बदलाव का प्रतीक है, क्योंकि उसने 1990 के बाद से शुक्र ग्रह तक किसी मिशन को नहीं भेजा है। यह अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए उत्साहित करने वाली खबर है। शुक्र ग्रह पर परिस्थितियां प्रतिकूल मानी जाती हैं। वैज्ञानिकों ने अब तक पता लगाया है कि उसके वातावरण में सल्फ्युरिक एसिड है और सतह का तापमान इतना गर्म है कि सीसा पिघल सकता है। लेकिन यह हमेशा से ऐसा नहीं रहा है। माना जाता है कि शुक्र ग्रह की उत्पत्ति बिलकुल धरती की उत्पत्ति के समान हुई थी। वैज्ञानिक यह पता करने की कोशिश में हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि वहां की परिस्थितियां धरती के विपरीत हो गईं।
धरती पर कार्बन मुख्यत: पत्थरों के भीतर मुख्य रूप से फंसा हुआ है, जबकि शुक्र ग्रह पर यह खिंचकर वातावरण में चला गया, जिससे इसके वातावरण में तकरीबन 96 फीसद कार्बन डाईआॅक्साइड है। इससे बहुत ही तेज ग्रीनहाउस प्रभाव उत्पन्न हुआ, जिससे सतह का तापमान 750 केल्विन (470 डिग्री सेल्सियस या 900 डिग्री फारेनहाइट) तक चला गया है।
अब तक किए गए अधिकांश अन्वेषण 1960 से 1980 के दशक के बीच सोवियत संघ ने किए हैं। इनमें कुछ उल्लेखनीय अपवाद हैं, जैसे 1972 का नासा का पायनीर वीनस मिशन और 2006 में यूरोपीय अंतरिक्ष एजंसी का ‘वीनस एक्सप्रेस मिशन’। नासा के दो चुने गए मिशनों में से पहले को ‘दा विंची प्लस’ के नाम से जाना जाएगा। इसमें एक अवतरण जांच उपकरण शामिल है, जिसका अर्थ है कि इसे वायुमंडल में छोड़ा जाएगा जो जैसे-जैसे वायुमंडल से गुजरेगा माप लेता जाएगा। इस अन्वेषण के तीन चरण होंगे, जिसके पहले चरण में पूरे वायुमंडल की जांच की जाएगी। इसमें विस्तार से वायुमंडल की संरचना को देखा जाएगा, जो बढ़ते सफर के दौरान प्रत्येक सतह पर सूचनाएं उपलब्ध कराएगा।
दूसरा मिशन ‘वेरिटास’ के नाम से जाना जाएगा जो ‘वीनस एमिशिविटी’, ‘रेडियो साइंस’, ‘इनसार’, ‘टोपोग्राफी’ और ‘स्पेक्ट्रोस्कोपी’ का संक्षिप्त रूप है। यह और ऊंचे मानक वाला ग्रह मिशन होगा। आॅर्बिटर अपने साथ दो उपकरण ले जाएगा, जिनकी मदद से सतह का मानचित्र तैयार किया जाएगा और दाविंची से मिले विस्तृत इंफ्रारेड अवलोकनों का पूरक होगा।
इसका पहला चरण विभिन्न रेडियो तरंगों की सीमाओं को देखने वाला कैमरा होगा। यह शुक्र ग्रह के बादलों के पार तक देख सकता है जिससे वायुमंडलीय एवं मैदानी संरचना की जांच हो सकेगी। दूसरा उपकरण रडार है और यह पृथ्वी अवलोकन उपग्रहों पर अत्यधिक इस्तेमाल होने वाली तकनीक का प्रयोग करेगा। उच्च रेजोल्यूशन वाली रडार छवियां और अधिक विस्तृत मानचित्र पैदा करेगा, जो शुक्र के सतह की उत्पत्ति की जांच करेगी।
इन मिशनों से उस सिद्धांत में और साक्ष्य जुड़ेंगे कि शुक्र की सतह पूरी तरह पिघल गई थी और 50 करोड़ साल पहले फिर से बनी है। यह सतह पर उल्का प्रभावों की कमी की भी व्याख्या करेगा, लेकिन अब तक किसी साक्ष्य में ऐसी ज्वालामुखी लावा सतह नहीं मिली है जो सतह के पुनर्निर्माण के परिणामस्वरूप बनी हो।
नासा ने 2030 तक शुक्र ग्रह के लिए दो मिशन भेजने का एलान किया है। इन दो महत्वाकांक्षी मिशन को 2028 से 2030 के बीच शुरू किया जाएगा। नासा के सौरमंडल खोज कार्यक्रम की ओर से हाल में की गई घोषणा से अंतरिक्ष वैज्ञानिकों में उत्साह है। नासा ने 1990 के बाद से शुक्र ग्रह तक किसी मिशन को नहीं भेजा है। यह अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के लिए उत्साहित करने वाली खबर है।