इसी तरह की प्रक्रिया कई बैक्टीरिया भी कर लेते हैं, लेकिन अगर इस प्रक्रिया में सभी कुछ वैसा ही हो और आॅक्सीजन की जगह हाइड्रोजन निकले तो यह क्रांतिकारी कदम साबित होगा। इस शोध में वैज्ञानिकों ने ऐसा ही कर दिखाया है। इसको भविष्य में ऊर्जा का बड़े और अहम स्रोत की तलाश की दिशा में अहम माना जा रहा है।

ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी और चीन में हार्बिन इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी की अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम की यह पड़ताल नेचर कम्यूनिकेशंस में प्रकाशित हुई है। दरअसल, आमतौर पर शैवाल कोशिकाएं कार्बन डाइआॅक्साइड को प्रकाश संश्लेषण द्वारा आॅक्सीजन में बदल देती हैं। इस अध्ययन में शैवाल कोशिकाओं से भरी शक्कर की बूंदों का उपयोग किया, जिसमें फोटोसिंथेसिस से आॅक्सीजन की जगह हाइड्रोजन पैदा हुई।

हाइड्रोजन को पर्यावरण के अनुकूल एक तटस्थ र्इंधन स्रोत माना जा रहा है। भविष्य में इसके बहुत से स्रोतों के तौर पर उपयोग में लाया जा सकता है। इसके साथ सबसे बड़ी समस्या यह है कि उसका उत्पादन बहुत ही महंगा और इसके उत्पादन में काफी ऊर्जा की जरूरत होती है। इसलिए यह खोज बहुत ही उपयोगी साबित हो सकती है।

टीम ने आॅस्मोटिक कंप्रैशन से हजारों शैवाल कोशिकाओं को एक बूंद में समेटा। इन कोशिकाओं का बूंदों में डालने से इनका आॅक्सीजन स्तर कम हो गया, जिससे हाइड्रोजनेसेस एंजाइम ने फोटोसिंथेसिस प्रक्रिया में दखल देकर हाइड्रोजन का उत्पादन करना शुरू कर दिया। इस तरह से उन्होंने ढाई लाख सूक्ष्मजीवों की फैक्ट्रियां बना डाली। इसमें प्रत्येक का आकार मिलीमीटर के दसवें हिस्से का था। यह सब केवल एक मिलीलीटर के पानी में ही बनाया जा सकता है। इस प्रक्रिया में खास तरह के एंजाइम को बैक्टीरिया में सक्रिय कराया गया।

हाइड्रोजन के उत्पादन का स्तर बढ़ाने के लिए शोधकर्ताओं ने बैक्टीरिया की एक पतली खोल पर जिंदा माइक्रोरिएक्टर्स की परत चढ़ाई, जिन्होंने आॅक्सीजन को गहराई से खोजा और शैवाल कोशिकाओं को हाइड्रोजेनेस प्रक्रिया के लिए तैयार किया। इस टीम में ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी के स्कूल आॅफ केमिस्ट्री के प्रोफेसर स्टीफन मान और डॉ मेई ली के साथ चीन की हार्बिन इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी के प्रोफेसर जिन हुआंग और उनके साथी शामिल थे।

यह शुरुआती अवस्था है, लेकिन यह काम प्राकृतिक हालातों में हरित ऊर्जा के विकास की दिशा में एक अहम कदम साबित होगा। प्रोफेसर स्टीफन मैन के मुताबिक, केवल कुछ सामान्य सी बूंदों से शैवाल कोशिकाओं के प्रकाश संश्लेषण को नियंत्रित करने से हाइड्रोजन उत्पादन की एक बढ़िया तकनीक मिल गई है।

हाइड्रोजन पर्यावरण के अनुकूल एक तटस्थ र्इंधन है, जो भविष्य में ऊर्जा के बड़े स्रोत के तौर पर उपयोग में लाया जा सकता है। हालांकि, इसके साथ बड़ी समस्या यह है कि उसका उत्पादन बहुत ही महंगा है और इसके उत्पादन में काफी ऊर्जा की जरूरत होती है। इसके अलावा वैज्ञानिकों ने नील हरित शैवाल में प्रोटीन उत्पादन बढ़ाने की नई तकनीक विकसित की है।

इससे पैदावार बेहतर होगी। रासायनिक उर्वरकों के अलावा शैवाल तथा कुछ जीवाणु प्रजातियां वायुमंडलीय नाइट्रोजन का स्थिरीकरण करके मिट्टी तथा पौधों को पोषण देती हैं और फसल उत्पादकता में वृद्धि करती हैं। एक विशेष प्रकार की काई, नील-हरित शैवाल, इस तरह के उर्वरकों में शामिल है, जिसका उपयोग धान की पैदावार बढ़ाने के लिए विशेष रूप से होता है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- बॉम्बे के शोधकर्ताओं ने एक ताजा अध्ययन में नील- हरित शैवाल में प्रोटीन उत्पादन बढ़ाने के लिए उसके डीएनए में बदलाव किया है।

ब्रिस्टल यूनिवर्सिटी और चीन में हार्बिन इंस्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी की अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की टीम ने प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया में आक्सीजन की जगह हाइड्रोजन गैस बनाने में सफलता हासिल है। इस अध्ययन में शैवाल कोशिकाओं से भरी शक्कर की बूंदों का उपयोग किया, जिसमें फोटोसिंथेसिस से आॅक्सीजन की जगह हाइड्रोजन पैदा हुई। भविष्य में ऊर्जा के बड़े और अहम स्रोत की तलाश की दिशा में इस शोध को अहम माना जा रहा है।