Raja Ram Mohan Roy Google Doodle: राजा राम मोहन राय की आज 246 वीं जयंती है। राजा राम मोहन राय ने 19वीं सदी में समाज सुधार के लिए आंदोलन चलाए थे। इनमें सबसे अहम सती प्रथा को खत्म करने का था। Raja Ram Mohan Roy को ‘आधुनिक भारत के निर्माता’ और ‘भारतीय पुनर्जागरण के जनक’ के तौर पर भी जाना जाता है। मूर्तिपूजा के विरोधी राजा राम मोहन राय की आस्था एकेश्वरवाद में थी। उनका साफ मानना था कि ईश्वर की उपासना के लिए कोई खास पद्धति या नियत समय नहीं हो सकता। पिता से धर्म और आस्था को लेकर कई मुद्दों पर मतभेद के कारण उन्होंने बहुत कम उम्र में घर छोड़ दिया था। इस बीच उन्होंने हिमालय और तिब्बत के क्षेत्रों का खूब दौरा किया और चीजों को तर्क के आधार पर समझने की कोशिश की।
राजा राम मोहन राय काफी समय बाद घर लौटे तो माता पिता ने उनकी शादी कर दी। शादी यह सोचकर की कि वह अब सुधर गए होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वह हिन्दुत्व की गहराइयों को समझने में लगे रहे, ताकि उसकी बुराइयों को सामने लाया जा सके। लोगों को इसके बारे में बताया जा सके। उन्होंने वेद, उपनिषद आदि पढ़ने के बाद एक किताब लिखी ‘तुहफत अल-मुवाहिदीन’। यह उनकी पहली किताब थी इसमें तार्किकता पर जोर देते हुए रूढ़ियों का विरोध किया गया था। राजा राम मोहन राय ने 1828 में ब्रह्म समाज की स्थापना की थी, जो पहला भारतीय सामाजिक-धार्मिक सुधार आंदोलन माना जाता था। यह वह दौर था, जब भारतीय समाज में ‘सती प्रथा’ जोरों पर थी। 1829 में इसके उन्मूलन का श्रेय राजा राममोहन राय को ही जाता है।
राजा राम मोहन राय का जन्म 22 मई, 1772 को हुआ था। 15 वर्ष की उम्र तक उन्हें बंगाली, संस्कृत, अरबी तथा फारसी भाषा का ज्ञान हो गया था। किशोरावस्था में उन्होने काफी भ्रमण किया। उन्होने 1803-1814 तक ईस्ट इंडिया कंपनी के लिए भी काम किया। ईस्ट इंडिया कंपनी की नौकरी छोड़कर राममोहन राय ने खुद को राष्ट्र सेवा में लगा दिया। उन्होंने भारत के लिए दोहरी लड़ाई लड़ी थीं, एक तो देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने की लड़ाई और दूसरी, समाज में फैलीं कुरुतियों से देश को मुक्त कराने की लड़ाई। 27 सितंबर 1833 को राजा राममोहन राय का निधन इंग्लैंड में हुआ। ब्रिटेन के ब्रिस्टल नगर के आरनोस वेल क़ब्रिस्तान में राय की समाधि है।