तेजी से बदलते स्मार्टफोन के बाजार में तीन से चार जीबी रैंडम एक्सेस मेमोरी (रैम) वाले मोबाइल आम होते जा रहे हैं। ऐसें में कुछ कंपनियां इनका भी विस्तार करते हुए छह जीबी और आठ जीबी रैम वाले फोन भी बाजार में ले आई हैं। ट्रेंड के हिसाब से देखने-सुनने में ये फोन अच्छे तो लगते हैं, मगर जरूरी नहीं कि जमीनी हकीकत ये आपके-हमारे काम के ही हों। चूंकि आम धारणा है कि स्पेसिफिकेशंस में जिस चीज की संख्या अधिक होगी, वह बेहतर होगी। ऐसी स्थिति के कारण ही फोन खरीदने वाले भ्रम का शिकार होते हैं।
साल 2017 में छह जीबी रैम वाले फोन्स लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बने, जबकि इस साल आठ जीबी वालों पर लोगों की निगाहें हैं। जानकारों के मुताबिक, आमतौर पर लोग स्पेसिफिकेशंस शीट और रिव्यू के बाद ही फोन खरीदते हैं। ऐसे में वे अधिक फायदे के चक्कर में अधिक रैम वाले फोन तो खरीद लेते हैं, मगर असल में उन्हें उसकी जरूरत नहीं होती। ये मार्केटिंग की एक तकनीक कही जा सकती है।
फोन लेने से पहले खुद से पूछें- आप उसका करेंगे क्या? जवाब अगर- गाने सुनेंगे, फिल्में देखेंगे, गेम खेलेंगे, सोशल मीडिया और इंटरनेट सर्फिंग करेंगे है तो आपके लिए आठ जीबी का फोन लेना बेकार साबित होगा।
एक्टपर्ट्स मानते हैं कि दुनिया के जितने बेहतरीन फोन होते हैं, उनमें रैम कम ही होती है। फिर चाहे वह आईफोन एक्स, 8 प्लस, सैमसंग गैलेक्सी एस9 प्लस या गूगल पिक्सल ही क्यों न हो। आईफोन 8 प्लस तीन जीबी रैम के साथ आता है, जबकि बाकी फोन्स चार जीबी रैम वेरियंट में मिलते हैं।
अगर आप सोचते हैं कि अधिक रैम से फोन तेज चलेगा, तो यह भूल है। फोन्स के ऑपरेशंस की रफ्तार में सॉफ्टवेयर ऑप्टिमाइजेशन अहम भूमिका निभाता है। ऊपर से ये फोन बाकी की तुलना में महंगे होते हैं।
गेम्स के अलावा फिलहाल कोई ऐप या हार्डवेयर नहीं है, जिसके लिए आठ जीबी रैम की जरूरत पड़ती हो। यहां तक कि एआर और वीआर भी आसानी से चार जीबी रैम वाले स्मार्टफोन पर चल जाते हैं। मोटोमोड्स सरीखे मॉड्यूलर हॉर्डवेयर भी बड़ी सरलता के साथ चार जीबी रैम वाले फोन पर चल जाते हैं।