जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पृथ्वी का तापमान बहुत तेजी से बढ़ रहा है। आए दिन इसके उदाहरण देखने और सुनने को मिलते रहते हैं। किसी स्थान पर इतनी अधिक बारिश हो रही है कि बाढ़ से जनजीवन अस्त व्यस्त हो रहा है तो किसी स्थान पर लोग पानी की एक बूंद के लिए तरस रहे हैं। स्थितियां इतनी गंभीर हैं कि (आइपीसीसी 2018 की रिपोर्ट के मुताबिक) हमें 2050 तक पूरी तरह से नवीकरणीय ऊर्जा को अपनाना होगा। अन्यथा पृथ्वी की हालत और खराब होगी। इस समस्या को देखते हुए भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) बॉम्बे के प्रोफेसर चेतन सिंह सोलंकी ने विद्यार्थियों को ‘सौर राजदूत’ बनाने का अभियान शुरू किया है। इसके तहत महात्मा गांधी के जन्मदिन 2 अक्तूबर 2019 को दुनिया भर के 10 लाख विद्यार्थी एक साथ सौर लैंप बनाएंगे।
सौर ऊर्जा में पीएचडी प्रोफेसर सोलंकी कहते हैं कि वह 20 सालों से लगातार इस दिशा में काम कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि वे अब तक सैकड़ों महिलाओं को सौर ऊर्जा के कार्य से जोड़ चुके हैं। ये महिलाएं न सिर्फ ऊर्जा के क्षेत्र में बदलाव ला रही हैं बल्कि अपनी जिंदगी को भी बदल रही हैं। प्रोफेसर सोलंकी के मुताबिक जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाले विनाश के बारे में 99.9 फीसद लोगों को जानकारी ही नहीं है। ऐसी स्थिति में अगर तापमान बढ़ता है तो उससे बनने वाली विकट परिस्थितियों का सामना आज के युवाओं को ही करना होगा।
इसलिए क्यों ना नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने में इन्हीं को शामिल किया जाए। उन्होंने बताया कि गांधी जी से प्ररेणा लेकर इसी उद्देश्य से उन्होंने 26 दिसंबर 2018 को साबरमती आश्रम से ‘गांधी वैश्विक सौर यात्रा’ की शुरुआत की। इसके तहत उन्होंने 30 देशों की यात्रा की और अंतिम चरण में वे भारत के 30 शहरों की यात्रा पर हैं। इस क्रम में प्रोफेसर सोलंकी 24 जुलाई को आइआइटी कानपुर भी पहुंचे थे। इस दौरान उन्होंने यहां पर विद्यार्थियों को सौर ऊर्जा के फायदों के बारे में बताया। इस यात्रा का समापन 15 अगस्त 2019 को साबरमी आश्रम में ही होगा।
प्रोफेसर सोलंकी ने बताया कि इस अभियान के तहत 2 अक्तूबर 2019 को आयोजित होने वाली ‘विद्यार्थी सौर राजदूत कार्यशाला’ के लिए गांधी वैश्विक सौर यात्रा की वेबसाइट के माध्यम से पंजीकरण कराया जा सकता है। उन्होंने उम्मीद जताई की 2 अक्तूबर तक सौर लैंप बनाने के लिए आने वाले आवेदनों की संख्या दस लाख को पार कर जाएगी। प्रोफेसर सोलंकी ने बताया कि अभी तक हम सभी सोचते हैं कि सौर लैंप गांवों या बिजली की पहुंच से दूर वाले स्थानों के लिए ही है, लेकिन ऐसा नहीं है। उन्होंने कहा कि सौर लैंप हर उस बच्चे के लिए जरूरी है जो पृथ्वी के भविष्य को उज्ज्वल देखना चाहता है।
हर लैंप को बनाने में 510 रुपए का खर्च आएगा और यह खर्च बच्चे को ही वहन करना होगा। सौर लैंप बनाने के लिए बच्चे को पूरी किट उपलब्ध कराई जाएगी। बच्चों को उनके शिक्षक प्रशिक्षण देंगे। शिक्षकों को ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया जाएगा। उन्होंने बताया कि देश और विदेश में 5000 से अधिक स्थानों पर एक साथ सौर लैंप बनाने का कार्य होगा। इसमें भाग लेने वाले सबसे अधिक भारतीय ही होंगे। आइआइटी बॉम्बे के अलावा केंद्र सरकार के नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय, विदेश मंत्रालय, सांस्कृतिक मंत्रालय, टेरी, आर्ट आॅफ लिविंग, इंटरनेशनल सोलर अलायंस आदि का भी सहयोग मिल रहा है।

