गजेंद्र सिंह
लोक आपात और सुरक्षा के लिए बार-बार इंटरनेट प्रतिबंध करने की प्रवृत्ति भारतीय बाजार और अर्थव्यवस्था को बड़ी चोट पहुंचा रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा असर ई-व्यापार और बैंकिंग सेवा पर पड़ रहा है। हाल ही में उत्तर प्रदेश के 18 जिलों में हिंसा के बाद बंद हुए इंटरनेट से सिर्फ लखनऊ व्यापार मंडल के पदाधिकारी एक दिन में सौ करोड़ रुपए का व्यापार प्रभावित होने का दावा कर रहे हैं। गाजियाबाद में भी ऑनलाइन व्यापार करने वालों का अच्छा खासा घाटा होने की बात सामने आई है। ऐप आधारित कैब सेवा और ऑनलाइन खाद्य पदार्थ मंगवाने वाली सेवाएं भी प्रभावित होने से नुकसान का अनुमान लगाया गया है।

इससे पहले इंडियन काउंसिल फॉर रिसर्च ऑन इंटरनेशनल इकोनॉमिक रिलेशन (आइसीआरआइ) की ओर से जारी एक रिपोर्ट में बताया गया था कि 2012 से लेकर 2017 तक भारत में कुल 16315 घंटे तक इंटरनेट ठप रहने की लागत करीब 3.04 अरब अमेरिकी डॉलर थी। वहीं, 12615 घंटे मोबाइल इंटरनेट बंद होने की भारतीय अर्थव्यवस्था की कुल लागत 2.37 अरब अमेरिकी डॉलर रही थी। सबसे ज्यादा असर मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, बंगलुरु, चेन्नई, हैदराबाद, पुणे, अमदाबाद, सूरत और विशाखापत्तनम जैसे शहरों की जीडीपी पर हुआ है।

सेंट्रल यूपी चैंबर ऑफ कामर्स एंड इंडस्ट्री वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ केशव अग्रवाल बताते हैं कि इंटरनेट शटडाउन का असर सिर्फ मोबाइल पर पड़ता है। कंफेडरेशन ऑफ ऑर्गेनिक इंडस्ट्री ऑफ इंडिया के चेयरमैन और एसोचैम के पूर्व महासचिव डीएस रावत कहते हैं कि इंटरनेट बंद होने की वजह से सबसे ज्यादा प्रभाव बैंकिंग के अलावा ई-कॉमर्स पर पड़ता है। छोटे उद्योग और ई-कॉमर्स उद्योग सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं। उनका कहना है कि पिछले दिनों गुवाहाटी में थे जहां इंटरनेट बंद हुआ तो एअर टिकट से लेकर होटल का भुगतान तक अटक गया। यह बाजार के लिए काफी नुकसान पहुंचाने वाला है।

कौन होता है प्रभावित
आइसीआरआइ की रिपोर्ट के मुताबिक, इंटरनेट बंद होने से जो क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हैं, उसमें ई-कॉमर्स और स्वतंत्र कार्य हैं। इसके अलावा पर्यटन, आइटी सेवा, प्रेस और मीडिया दूसरे नंबर पर प्रभावित होने वालों में हैं। तीसरे नंबर पर बैंकिंग, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएं प्रभावित होती हैं और इसका सबसे मामूली असर मैन्यूफैंक्चरिंग और भारी उद्योग पर पड़ता है। दि कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के महासचिव प्रवीण खंडेलवाल बताते हैं कि इंटरनेट बंद होने का सबसे ज्यादा असर व्यापारियों को अपना पैसा ट्रांसफर करने में पड़ा। व्यापारी ज्यादातर एनइएफटी और आरटीजीएस करते हैं लेकिन इंटरनेट बंद होने से यह काम रुक जाता है। जिनका अंतरराष्ट्रीय व्यापार है उनको तो काफी घाटा होता है। जिन व्यापारियों का काम ई-मेल पर आधारित है उनकी मेल नहीं आ पाई।

सुरक्षा कारणों से 278 बार बंद किया गया इंटरनेट
सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर (एसएफएलसी) की अगस्त, 2019 की रिपोर्ट के अनुसार जनवरी 2012 से 2019 तक 278 बार भारत में इंटरनेट बंद किया गया। 160 बार सुरक्षा कारणों का हवाला दिया गया। 278 में 60 बार बंद किए गए इंटरनेट को 24 घंटे से कम के लिए और करीब 55 बार इंटरनेट 24 से 72 घंटने के लिए बंद किया गया। कई मामलों में देखा गया है कि इंटरनेट बंद को लेकर कोई सार्वजनिक सूचना तक नहीं जारी की गई। आइएफजे फ्रीडम रिपोर्ट 2018 के मुताबिक, भारत में मई 2017 से अप्रैल 2018 में 82 बार इंटरनेट बंद हुआ जबकि पाकिस्तान में सिर्फ 12 बार इंटरनेट बंद करने की नौबत आई। श्रीलंका में एक बार और बांग्लादेश में पांच बार इंटरनेट बंद रहा। एसएफएलसी की रिपोर्ट की माने तो 139 दिनों के लिए अगस्त 2019 में 370 को बेअसर करने के बाद इंटरनेट बंद रहा। 133 दिन जुलाई 2016 में बुरहान वानी की मौत के बाद हुई हिंसा के चलते इंटरनेट बंद रहा। 100 दिन तक 2017 में अलग गोरखालैंड की मांग को लेकर दार्जिलिंग पश्चिम बंगाल में इंटरनेट बंद रहा।

क्या कहता है नियम? 

सूचना के अधिकार कानून (आरटीआइ) 2005 के तहत संचार मंत्रालय दूरसंचार विभाग से मिली जानकारी के अनुसार, दूरसंचार अस्थायी सेवा निलंबन (लोक आपात या लोक सुरक्षा) नियम, 2017 के तहत राज्य सरकारों को यह अधिकार दिया गया है कि लोक आपात या फिर जन सुरक्षा के लिए दूरसंचार सेवाओं को अस्थायी रूप से प्रतिबंधित कर सकते हैं। लेकिन ऐसे मौकों पर भी यह सुनिश्चित करने को कहा गया है कि सरकार की ओर से नगद रहित अर्थव्यवस्था को फर्क नहीं पड़ना चाहिए। इंटरनेट प्रतिबंधित रहने पर भी नगारिक सेवाएं जैसे बैंकिंग आदान-प्रदान, क्रेडिट और डेबिट कार्ड का उपयोग और इंटरनेट बैंकिंग चालू रहने चाहिए। लेकिन इस आदेश का कहीं पालन नहीं दिखा। उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ समेत बरेली, मुजफ्फरनगर, मेरठ, हापुड़, संभल, बागपत में इंटरनेट ठप होने के बाद स्थानीय मीडिया में छपी रिपोर्टों के अनुसार 11 घंटे तक लोग बैंकिंग सेवा के लिए तरस गए। रेलवे टिकट भी बुक नहीं हो सके। उपभोक्ता मामलों के जानकार खालिद मुहम्मद जीलानी कहते हैं कि टेलीकॉम कंपनियां उपभोक्ताओं से हर मिनट के हिसाब से इंटरनेट का चार्ज लेती हैं जब प्रशासन की ओर से इंटरनेट बंद किया जाए तो उपभोक्ताओं को उसका वाजिब हिसाब मिलना चाहिए या इंटरनेट का समय बढ़ाना चाहिए।