Chandrayaan-3 Moon landing : चंद्रयान-3, एक ऐसा नाम जो पिछले 40 दिनों से सुर्खियों में है। 14 जुलाई 2023 को इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेशन (ISRO) के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर से शुरू हुई Chandrayaan-3 ने आज (23 अगस्त 2023) को आखिरकार चंद्रमा पर सफल लैंडिंग के साथ इतिहास रच दिया। चंद्रयान-3 के विक्रम लैंडर (Vikram Lander) ने शाम 6.04 मिनट पर चांद पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग की। इस लैंडिंग के पूरे प्रोसेसर को ISRO के यूट्यूब चैनल पर लाइव दिखाया गया।
चंद्रयान-3 सफल लैंडिंग में कामयाब रहा और इसके साथ भारत उन चुनिंदा देशों की लिस्ट में शामिल हो गया जिन्होंने अब तक मून पर सफल लैंडिग की है। इससे पहले इस क्लब में यूनाइटेड स्टेट्स (United States), सोवियत यूनियन (Soviet Union) और चीन हैं। बता दें कि मून के साउथ पोल पर लैंडिंग करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन गया है।
कभी कहा जाता था- चंदा मामा बहुत दूर के हैं, अब यह नहीं कहा जाएगा, अह कहा करेंगे- चंदा मामा बस एक टूर के हैं- पीएम मोदी
मैं टीम चंद्रयान, ISRO को और देश के सभी वैज्ञानिकों को बहुत-बहुत बधाई देता हूं। जिन्होंने इस पल के लिए वर्षों तक इतना परिश्रम किया। उल्लास, उमंग और भावुकता से भरे इस पल के लिए मैं देश के 140 करोड़ देशवासियों को भी कोटि-कोटि बधाई देता हूं-पीएम मोदी
हमने धरती पर संकल्प लिया और चांद पर से साकार किया-पीएम नरेंद्र मोदी
भारत ने रचा इतिहास, चंद्रयान 3 की चांद पर सफल लैंडिंग
चांद की सतह से करीब 150 मीटर की हाइट से दूर चंद्रयान। अल्टीट्यूड लगातार कम हो रहा। लैंडर की ऊंचाई करीब 65 मीटर के आसपास।
वर्टिकल डिसेंट फेज फाइन ब्रेकिंग फेज सफलतापूर्वक पूरा। वर्टिकल डिसेंट फेज शुरू। लैंडिंग हाइट लगातार कम हो रही। चांद से ऊंचाई 600 मीटर के आसपास।
फाइन ब्रेकिंग फेज का समय 3 मिनट होगा। डाउन रेंज ट्रैवल 831 किलोमीटर। मून की सर्फेस से सिर्फ 2.6 किलोमीटर की दूरी पर लैंडर विक्रम
अल्टीट्यूड लैंड फेज आसानी से लैंडर ने पार किया
ISRO- अब तक सब कुछ प्रक्रिया के मुताबिक चल रहा है। लैंडर की हॉरिज़ॉन्टल वेलोसिटी को लगातार कम किया जा रहा है। लैंडर करीब 75 से 80 प्रतिशत की यात्रा पूरा कर चुका है। करंट अल्टीट्यूट चंद्रमा की सतह से 10 किलोमीटर के आसपास
ISRO- अब तक सब कुछ प्रक्रिया के मुताबिक चल रहा है। पहले चरण में 11 मिनट का समय लगेगा
रफ ब्रेकिंग फेज की शुरुआत हो चुकी है। इस ब्रेकिंग फेरफ ब्रेकिंग फेज की शुरुआत हो चुकी है। लैंडर कुल 197 किलोमीटर हॉरिज़न्टल दिशा में चल चुका है। 745 किलोमीटर के कुल रफ ब्रेकिंग फेज में करीब 20 प्रतिशत यात्रा पूरी
रफ ब्रेकिंग फेज: इस फेज के दौरान लैंडर की हॉरिज़ॉन्टल वेलोसिटी करीब 6000 किलोमीटर प्रति घंटे से घटकर ज़ीरो के आसपास होनी चाहिए ताकि सॉफ्ट लैंडिंग हो सके।
एटीट्यूड होल्डिंग फेज: लूनर सर्फेस के ऊपर 7.43 किलोमीटर की ऊंचाई के करीब, लैंडर 3.48 किलोमीटर की दूरी कवर करने के दौरान हॉरिज़ॉन्टल से वर्टिकल पोजिशन में टिल्ट होगा।
फाइन ब्रेकिंग फेज: यह फेज करीब 175 सेकंड चलेगा और इस दौरान लैंडर लैंडिंग साइट के लिए करीब 28.52 किलोमीटर हॉरिज़ॉन्टली ट्रैवल करेगा और अल्टीट्यूड करीब 1 किलोमीटर तक कम हो जाएगा। याद दिला दें कि अटीट्यूल होल्ड और फाइन-ब्रेकिंग फेज के दौरान ही चंद्रयान-2 ने कंट्रोल खो दिया था।
टर्मिनल डीसेंट: यह फाइनल स्टेज है और इसमें पूरी तरह से वर्टिकल लैंडर को चांद की सतह पर आ जाना चाहिए।
लूनर साउथ पोल पर चंद्रयान-3 की लैंडिंग के लिए लाइवस्ट्रीमिंग शुरू हो गई है। लैंडर मॉड्यूल (LM) अपने पॉइन्ट पर करीब 5:44 बजे शुरू होगी। इसरो का यूट्यूब चैनल- https://www.youtube.com/watch?v=DLA_64yz8Ss
इसरो के बेंगलुरु स्थित ISTRAC (Indian Space Research Organisation’s Telemetry, Tracking and Command) और मिशन कंट्रोल फैसिलिटी (MOX) चंद्रमा पर लैंडिंग के दौरान चंद्रयान-3 के सपोर्टिंग पिलर होंगे।
ISTRAC किसी मिशन के रॉकेट के लॉन्च होने से लेकर खत्म होने तक यानी पूरे लाइफस्पैन के दौरान टेलिमेट्री, ट्रैकिंग और कमांड सर्विस प्रोवाइड कराता है। बेंगलुरू, लखनऊ, मॉरीशस, श्रीहरिकोटा,पोर्ट ब्लेयर, तिरूवनंतपुरम, ब्रुनेई और इंडोनेशिया में इसके ग्राउंड स्टेशन हैं। इसके अलावा इसके Deep Space Network स्टेशन भी हैं।
ISTRAC में चंद्रयान के लिए उसी तरह MOX फैसिलिटी बनाई गई है जैसी मंगलयान, चंद्रयान-1 और चंद्रयान-2 के समय बनाई गई थी।
चंद्रयान-3 मिशन को लैंड करने में अब चंद घंटे बाकी बचे हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि इसरो के किन वैज्ञानिकों ने मिलकर चंद्रयान-3 मिशन को अंजाम दिया है। इस मिशन में डायरेक्टर पी वीरमुथुवेल (P Veeramuthuvel) के साथ ISTRAC डायरेक्टर बी एन रामाकृष्णा (B N Ramakrishna), यू आर राव स्पेस सेंटर डायरेक्टर एम शंकरन (M Sankaran), लॉन्च मिशन डायरेक्टर एस मोहन कुमार (S Mohana Kumar), लिक्विड प्रोपल्शन सिस्टम्स सेंटर डायरेक्टर वी नारायणन (V Narayanan) और विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के डायरेक्टर एस उन्नीकृष्णन नायर ( S Unnikrishnan Nair) ने अहम भूमिका निभाई है।
अभी तक दुनिया में सिर्फ तीन देश – यूनाइटेड स्टेट्स, सोवियत यूनियन और चीन ही सॉफ्ट लैंडिंग कर सके हैं। इन तीनों देश के स्पेसक्राफ्ट ने चांद की भूमध्य रेखा के पास लैंडिंग की थी। बात करें चांद के ध्रुवीय क्षेत्रों की तो ये ज्यादा मुश्किल हैं और लंबे अंतरिक्ष अभियान के हिसाब से वहां की जमीन और और जलवायु अनुकूल नहीं है।
अब सवाल यह कि मुश्किल हालातों में भारत लैंडिंग क्यों चाहता है? कई पिछले ऑर्बिटर मिशन जिनमें 2008 में गया चंद्रयान-1 भी शामिल है। इनसे संकेत मिले हैं कि चंद्रमा के कई ऐसे ध्रुवीय इलाके हैं जहां अभी तक कोई नहीं गया है और इन जगहों पर रोचक संभावनाएं हो सकती है। ऐसी उम्मीद है कि चांद के इस हिस्से पर फ्रोजन वॉटर आइस के सबूत मिल सकते हैं।
इसके अलावा ये जगहें बेहद ठंडी है और अगर यहां कुछ मौजूद भी रही है तो वह अब तक जम गई होगी। यानी ये इलाके एक तरह से 'टाइम कैप्सूल' में बदल गया होगा। चांद के ध्रुवीय इलाकों को एक्सप्लोर करने से वैज्ञानिकों को सोलर सिस्टम के शुरुआती समय को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिल सकती है। इसके अलावा पृथ्वी और चंद्रमा के निर्माण के बारे में भी और जानकारी मिलने की उम्मीद है।
लूनर साउथ पोल का एक मल्टी-टेम्पोरल इल्युमिनेशन मैप(Credits: NASA/GSFC/Arizona State University)
ISTRAC में चंद्रयान-3 के मिशन कंट्रोलर लूनर सर्फेस पर लैंडिंग के दौरान मिशन पर बारीकी से नजर रखेंगे और बेहद अहम आखिरी 15 मिनट के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाएंगे। आखिरी 15 मिनट के दौरान विक्रम लैंडर (Vikram lander) लॉजिक के द्वारा कंट्रोल किया जाएगा जिसे पहले ही कंप्यूटर्स में एंटर किया जा चुका है। यह और कामयाब सॉफ्ट लैंडिंग के लिए अलग-अलग सेंसर से मिले इनपुट से फायदा लेगा।
चंद्रयान-3 मिशन पर खर्च हुए कितने करोड़? बजट और बेनिफिट से जुड़े हर सवाल का जवाब
मिशन के लैंडिंग गाइडेंस सिस्टम के बारे में बात करते हुए इसी महीने ISRO के चेयरपर्सन एस सोमनाथ ने कहा था, 'अगर सारे सेंसर फेल हो जाते हैं, कुछ भी काम नहीं करता है तब भी यह ठीक तरह से काम कर रहे प्रोपोल्शन सिस्टम के साथ लैंडिग करेगा। चंद्रयान-3 को इसी तरह से डिजाइन किया गया है। अगर दो इंजन काम नहीं भी करेंगे तो भी लैंडर लैंड कर पाएगा। इस लैंडर को इस तरह से डिजाइन किया गया है कि कई बार सफल ना होने पर भी यह चालू रहेगा। अगर एल्गोरिद्म ठीक तरह से काम करता है तो हम एक वर्टिकल लैंडिंग करेंगे।'
करीब 60 साल पहले सोवियत यूनियन के Lune 9 मिशन ने पहली बार चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के साथ इतिहास रच दिया था। इसके बाद बहुत सारें देशों के लिए सॉफ्ट लैंडिंग एक सपना रहा है। इसी हफ्ते रूस का Luna-25 मिशन फेल बुआ है। लेकिन इसी साल Japanese Hakutoमिशन भी क्रैश हुआ। 2019 में चंद्रयान-2 के फेल होने के बाद इजरायल के Beresheet को भी नाकामयाबी देखनी पड़ी थी।
चांद पर मुश्किल लैंडिंग की सबसे बड़ी वजहों में से एक है चंद्रमा का बेहद पतला वायुंडल। इसका मतलब है कि लैंडिंग से पहले स्पेसक्राफ्ट वायुमंडल के फ्रिक्शन के स्लो होने पर निर्भर नहीं रह सकता। यानी सेफ लैंडिंग के लिए स्पेसक्राफ्ट को सबसे ज्यादा अपने प्रोपोल्शन सिस्टम पर निर्भर रहना होगा। इसके अलावा मून पर, पृथ्वी की तरह कोई GPS भी नहीं है। यानी ऑनबोर्ड कंप्यूटर्स को तेजी से कैलकुलेशन करनी होगी और सैटेलाइट के एक बड़े नेटवर्क से मिलने वाले दिशा-निर्देशों के बिना ही लैंड करने के लिए सेफ लोकेशन सर्च करनी होगी।
चंद्रमा पर एक बग्गी में एस्ट्रॉनॉट Eugene Cernan। फोटो-(NASA/GSFC/Arizona State University)
ग्राफिक्स के जरिए समझिए चंद्रयान-3 मिशन का पूरा सफर। इसके साथ ही जानिए की चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग के लिए लैंडर से क्या उम्मीद की जा सकती है।
रफ ब्रेकिंग फेज: इस फेज के दौरान लैंडर की हॉरिज़ॉन्टल वेलोसिटी करीब 6000 किलोमीटर प्रति घंटे से घटकर ज़ीरो के आसपास होनी चाहिए ताकि सॉफ्ट लैंडिंग हो सके।
एटीट्यूड होल्डिंग फेज: लूनर सर्फेस के ऊपर 7.43 किलोमीटर की ऊंचाई के करीब, लैंडर 3.48 किलोमीटर की दूरी कवर करने के दौरान हॉरिज़ॉन्टल से वर्टिकल पोजिशन में टिल्ट होगा।
फाइन ब्रेकिंग फेज: यह फेज करीब 175 सेकंड चलेगा और इस दौरान लैंडर लैंडिंग साइट के लिए करीब 28.52 किलोमीटर हॉरिज़ॉन्टली ट्रैवल करेगा और अल्टीट्यूड करीब 1 किलोमीटर तक कम हो जाएगा। याद दिला दें कि अटीट्यूल होल्ड और फाइन-ब्रेकिंग फेज के दौरान ही चंद्रयान-2 ने कंट्रोल खो दिया था।
टर्मिनल डीसेंट: यह फाइनल स्टेज है और इसमें पूरी तरह से वर्टिकल लैंडर को चांद की सतह पर आ जाना चाहिए।
ISRO ने X पर एक पोस्ट में कहा कि जब लैंडर मॉड्यूल आज शाम 5.44 बजे चुनी हुई लोकेशन पर पहुंचेगा, तो इसरो चंद्रयान-3 की ऑटोमैटिक लैंडिंग सीक्वेंस (ALS) के लिए तैयार है।
Chandrayaan-3 Mission:
— ISRO (@isro) August 23, 2023
All set to initiate the Automatic Landing Sequence (ALS).
Awaiting the arrival of Lander Module (LM) at the designated point, around 17:44 Hrs. IST.
Upon receiving the ALS command, the LM activates the throttleable engines for powered descent.
The… pic.twitter.com/x59DskcKUV
इसरो चीफ एस सोमनाथ का कहना है कि वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 मिशन में हुई गलतियों को परखा और चंद्रयान-3 में उन्हें सुधारा गया।
मजबूत पैर: नए विक्रम लैंडर के पैरों को पहले से मजबूत किया गया है कि यह 10.8 किलोमीटर प्रति घंटे की स्पीड तक पर सुरक्षित लैंड कर सके। हालांकि, अगर चंद्रयान-2 जैसी स्थिति बनती है तो हो सकता है कि यह काम ना आए। चंद्रयान-2 के लैंडर की स्पीड क्रैश के वक्त 580 किलोमीटर प्रति घंटा थी।
बड़ा फ्यूल टैंक: Chandrayaan-3 मिशन में पिछले चंद्रयान-2 की तुलना में बड़ा फ्यूल टैंक है। ताकि आखिरी समय में जरूरत पड़ने पर अगर कोई बदलाव हो तो दिक्कत ना हो।
ज्यादा सोलर पैनल: नए विक्रम लैंडर में दो की जगह चार सोलर पैनल दिए गए हैं। चंद्रयान-2 में सिर्फ दो सोलर पैनल थे।
अतिरिक्त इंस्ट्रूमेंट और बेहतर सॉफ्टवेयर: सबसे अहम बात- चंद्रयान-3 मिशन में अतिरिक्त इंस्ट्रूमेंट और सॉफ्ट लैंडिंग में मदद के लिए अपग्रेड किए गए सॉफ्टवेयर हैं। इनमें Laser Doppler Velocimeter है जो लूनर सर्फेस पर लैंडर की स्पीड को कैलकुलेट करने के लिए लेजर बीम्स को फायर करेगा।