रोलेक्स घड़िया अपनी खास कारीगरी के लिए जानी जाती हैं और दुनिया भर की हस्तियों के रसूख में इजाफा करने के लिए भी। लाखों की कीमत की ये घड़ियां स्टेटस सिंबल कहलाती है लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इतनी महंगी क्यों होती हैं ये की घड़िया? दरअसल, कंपनी का दावा है कि रोलेक्स घड़ियां साधारण घड़ियां नहीं हैं। कंपनी ने इनके प्रोडक्शन के लिए अलग से एक रिचर्स एंड डिवेलपमेंट लैब बना रखी है। यह लैब एक से बढ़कर एक उपकरणों से लैस है और योग्य पेशेवर कारीगर ही इसमें काम करते हैं। कारीगर इस बात पर भी ध्यान रखते हैं कि समय की मांग क्या है और बदलते दौर में गुणवत्ता से किसी प्रकार समझौता न हो। इस आधार पर रोलेक्स के कारीगर घड़ियों को डिजाइन करते हैं। रोलेक्स मैकेनिकल घड़िया बनाती है। मैकेनिकल घड़िया यानी जिनमें मशीनरी का भरपूर इस्तेमाल होता है। कंपनी का कहना है कि ऐसी घड़िया बनाना आसाम काम नहीं है, इसलिए इनकी कीमत खुद-ब-खुद बढ़ जाती है।
कंपनी के मुताबिक एक घड़ी में सैकड़ों बारीक पार्ट्स का इस्तेमाल किया जाता है। कंपनी कहती है कि घड़ियां बनाने वक्त उनके खराब होने की दर बहुत ज्यादा है। बहुत सी घड़ियों की पॉलिश हाथ से की जाती है और उनको अंतिम आकार भी हाथों से ही दिया जाता है। कंपनी का दावा है कि रोलेक्स में इस्तेमाल होने वाला मैटेरियल काफी महंगा होता है। इनमें 940 एल स्टील का इस्तेमाल होता है, जबकि बाजार में उपलब्ध अन्य घड़ियों में 316 एल स्टील का प्रयोग होता है। इसके इस्तेमाल से घड़िया मजबूत और चमकदार बनती हैं। घड़ी के डायल में व्हाइट गोल्ड का इस्तेमाल होता है, बेजेल सेरेमिक यानी चीनी मिट्टी से बनाए जाते हैं और नंबर कांच के प्लेटिनम से।
सोने और चांदी को पिघलाकर बनी चीजों का घड़ियों में इस्तेमाल होता है। स्विटजरलैंड में घड़ियों की मैन्युफैक्चरिंग होने के कारण भी इनकी कीमत ज्यादा होती है क्योंकि यहां पर काम करने वालों की पगार ज्यादा होती है। कंपनी हर वर्ष 8 से 10 लाख कलाई घड़ियां बनाती है। पहली दफा 1953 में रोलेक्स बनाई गई थी। रोलेक्स की सबमैरिनर घड़ी खास तैराकों और गोताखोरों के लिए बनाई गई है।