मोहमेद थावेर
कई लोकप्रिय ब्रांडों के नकली वाउचर वाट्सअप पर शेयर किए जा रहे हैं। इनके लिंक पर क्लिक करने बाद निजी जानकारी मांगी जाती है। बाद में इन जानकारियों को जालसाजी करने के लिए उपयोग किया जाता है। पुलिस ने कहा कि पिछले साल कम से कम तीन ऐसे मामले दर्ज किए गए हैं, जहां लोगों को कथित रूप से लोकप्रिय ब्रांडों से मुफ्त उपहारों के बहस पर धोखा दिया गया था। इसी तरह का मामला जून के पहले सप्ताह में दर्ज किया गया था, जिसमें एक वायरल मैसेज के माध्यम से सुपरमार्केट चेन डी-मार्ट के नाम पर मुफ्त उपहार देने का दावा किया था। मैसेज में यह लिखा था कि डी-मार्ट अपनी 17 वीं वर्षगांठ मनाने के लिए मुफ्त में 2500 रुपये का मुफ्त वाउचर दे रहा है। अपना वाउचर प्राप्त करने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। लिंक पर क्लिक करने पर व्यक्तिगत जानकारी मांगी गई। यह पोस्ट व्हाट्सएप पर काफी शेयर किया गया। एक अधिकारी ने बताया कि गौर से पता करने पर पता चला कि वेबसाइट के एड्रेस को ‘i’ के एक समान दिखने वाले अक्षर से बदल दिया गया है। जब कई डी-मार्ट अाउटलेट पर भीड़ लगना शुरू हुआ, तब 19 जून को आइटी एक्ट के तहत पोवाई थाने में एक मामला दर्ज किया गया। जांच में जुटे एक ऑफिसर ने बताया कि इस लिंक को कनाडा में बनाया गया था। कई लोगों ने इस लिंक पर जाकर अपनी जानकारियां साझा की। जांच जारी है।
इसी साल के मई महीने में एक और वाट्सअप मैसेज जेटएयरवेज के नाम से वायरल हुआ। मैसेज के अनुसार, जेटऐयरवेज अपने 25वीं वर्षगांठ मनाने के लिए सभी को दो फ्री टिकट दे रही है। अपना टिकट लेने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें। बाद में जेटऐयरवेज ने ट्वीट कर यह सफाई दी कि मैसेज गलत है। फरवरी माह में एक मैसेज वायरल हुआ था कि एडिडास अपने 93वें वर्षगांठ पर 3000 जोड़े जूते मुफ्त में दे रही है। आप मुफ्त जूते पाने के लिए यहां क्लिक करें। लिंक पर क्लिक करते हुए लोगों से निजी जानकारी मांगी जाती है। बाद में एडिडास ने भी इस तरह के ऑफर का खंडन किया।
महाराष्ट्र में क्राइम ब्रांच के इंस्पेक्टर बृजेश सिंह ने कहा कि आम तौर पर आरोपी इस तरह का काम निजी जानकारी जुटाने के लिए करता है। वे अपने डाटाबेस में काफी संख्या में लोगों की जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश करते हैं। बाद में इन लोगों को अपना निशाना बनाया जाता है। एेसे लिंक्स को क्लिक नहीं करना चाहिए। एक साइबर पुलिस अधिकारी का कहना है कि आरोपी वेबसाइट स्पूफिंग में शामिल होते हैं। इसका मतलब यह है कि ये ऐसी वेबसाइट बनाते हैं, जो कंपनी की वेबसाइट की तरह दिखती है। इससे लोगों को संदेह नहीं होता है। वेब एड्रेस में मामूली बदलाव किया जाता है, जिस पर सामान्य लोग ध्यान नहीं देते हैं। साइबर एक्सपर्ट विक्की शाह का कहना है कि अधिकांश समय यह फर्जीवाड़ा करने से पहले डाटा इकट्ठा करने के लिए किया जाता है। कुछ समय, ये वेबसाइट कुछ लोगों से मिलने वाली इनाम राशि का 10 प्रतिशत जमा करने को भी कहती है। यह एक अंतरराष्ट्रीय ट्रेंड है। कई सारे ऐसे ब्रांड्स हैं, जिनके नाम का उपयोग फर्जीवाड़ा करने वाले गिरोह करते हैं।