Amrita Pritam Google Doodle (अमृता प्रीतम):  Google ने आज पंजाबी कवयित्री अमृता प्रीतम को उनके 100 वें जन्मदिन डूडल बनाकर याद किया है। अमृता का जन्म 31 अगस्त 1919 को ब्रिटिश भारत के पंजाब के गुजरांवाला में हुआ था, जो अब पाकिस्तान का हिस्सा है। अमृता को एक राह दिखाने वाली महिला माना जाता है, जो पिंजर, सुनेरे और नागमणि जैसी साहित्यिक कृतियों के साथ प्रसिद्धि के लिए बढ़ी, जिसने सीमाओं पर महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की गंभीर वास्तविकता को सामने लाया। अमृता प्रीतम ने न केवल 100 से ज्यादा किताबें लिखीं, कविता और कथा साहित्य दोनों पर वह 1956 में साहित्य अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने वाली पहली महिला बनीं। अमृता प्रीतम की 100 वीं जयंती के उपलक्ष्य में, दो दिन का कार्यक्रम आयोजित किया गया। यहा प्रोग्राम शुक्रवार को पंजाबी भवन में शुरू हुआ।

अमृता प्रीतम की रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद हुआ। उन्हें 1956 में साहित्य अकादमी पुस्कार से नवाजा गया। 1969 में उन्हें पद्मश्री मिला। 1982 में साहित्य का सर्वोच्च पुरस्कार ज्ञानपीठ पुरस्कार ‘कागज़ ते कैनवस’ के लिए दिया गया और 2004 में उन्हें देश का दूसरा सबसे बड़ा पुरस्कार पद्मविभूषण भी दिया गया। अमृता का बचपन लाहौर में बीता। अमृता ने काफी कम उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया था और उनकी रचनाएं पत्रिकाओं और अखबारों में छपती थीं।

मैं तुझे फिर मिलूंगी
कहां कैसे पता नहीं
शायद तेरे कल्पनाओं
की प्रेरणा बन
तेरे केनवास पर उतरुंगी
या तेरे केनवास पर
एक रहस्यमयी लकीर बन
ख़ामोश तुझे देखती रहूंगी
मैं तुझे फिर मिलूंगी
कहां कैसे पता नहीं

या सूरज की लौ बन कर
तेरे रंगो में घुलती रहूँगी
या रंगो की बाँहों में बैठ कर
तेरे केनवास पर बिछ जाऊँगी
पता नहीं कहाँ किस तरह
पर तुझे ज़रुर मिलूँगी

या फिर एक चश्मा बनी
जैसे झरने से पानी उड़ता है
मैं पानी की बूंदें
तेरे बदन पर मलूँगी
और एक शीतल अहसास बन कर
तेरे सीने से लगूँगी

मैं और तो कुछ नहीं जानती
पर इतना जानती हूँ
कि वक्त जो भी करेगा
यह जनम मेरे साथ चलेगा
यह जिस्म ख़त्म होता है
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है

पर यादों के धागे
कायनात के लम्हें की तरह होते हैं
मैं उन लम्हों को चुनूँगी
उन धागों को समेट लूंगी
मैं तुझे फिर मिलूँगी
कहाँ कैसे पता नहीं
मैं तुझे फिर मिलूँगी!!