मान लीजिए आप घर पर हैं और आपका मन कुछ खाने का कर जाए, लेकिन जरूरी सामान नहीं है तो आप झट से फोन उठाते हैं और ऑर्डर कर देते हैं। इंस्टेंट डिलीवरी ऐप्स ने निश्चित तौर पर हमारी जिंदगी को बेहद आसान बना दिया है। 5-10 मिनट में सामान डिलीवर करने का दावा करने वाले ये ऐप्स अब एक तरह से हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा बन गए हैं। सब्जी, दूध, ब्रेड, फल या कोल्ड-ड्रिंक से लेकर आटा-दाल-राइस और मसाले तक, बस एक क्लिक और कुछ मिनट में आपके घर पहुंच जाते हैं।

लेकिन पिछले कुछ महीनों में इंस्टेंट डिलीवरी ऐप्स Swiggy Instamart, Blinkit, Zepto को लेकर कई सवाल भी उठे हैं। लंबे समय तक इस बाजार में Swiggy और Blinkit का दबदबा रहा। क्या आपने कभी सोचा है कि इन सुविधाओं के बदले आपकी जेब से कितनी छिपी हुई लागत वसूली जा रही है? जी हां, हैंडलिंग चार्ज, प्लेटफॉर्म फीस, कन्वीनियंस फीस, प्राइस सर्ज, रेन फी जैसे तमाम चार्ज वसूले जा रहे हैं, लेकिन घर बैठे मिल रही इस सुविधा के लिए हम तरह का शुल्क बस दिए जा रहे हैं।

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अब बड़े-बड़े दिग्गजों ने इंस्टेंट डिलीवरी ऐप्स को लेकर सवाल करना शुरू कर दिया है। और उनका कहना है कि ये ऐप्स हमें गरीब बना रहे हैं। हम अपने आलसीपन के चक्कर में अपने पैसे गंवा रहे हैं। ऐसा नहीं है कि हमारे पास बहुत ज्यादा पैसे हैं या टाइम नहीं है, लेकिन डिस्काउंट का झांसा, घर बैठे मिल रही इस सुविधा ने जैसे हमें अपने वश में कर लिया है। और हम छोटी-छोटी चीजें जैसे ब्रेड-बटर, दूध-चीनी-चाय के लिए भी ऐप से ऑर्डर कर रहे हैं। हम घर से निकलने की बजाय, सामान को घर मंगा रहे हैं।

मशहूर यूट्यूबर और कारोबारी अंकुर वारिकू ने भी हाल ही में अपने एक वीडियो में इंस्टेंट डिलीवरी ऐप्स के पूरे हिसाब-किताब पर एक वीडियो बनाया था और बताया कि कैसे अलग-अलग फीस के नाम पर ये ऐप्स आम लोगों को गरीब बना रहे हैं। ‘How 5-Min DELIVERY Is Making You POOR’ टाइटल वाले एक वीडियो में उन्होंने इस बारे में बात की है और समझाया है कि कैसे 2 रुपये से शुरू होने वाली हैंडलिंग चार्ज को Zepto, Blinkit, Swiggy Instamart जैसे पॉप्युलर ऐप्स ने 14 महीने में 10 रुपये तक बढ़ा दिया। और कैसे iPhone व Android यूजर्स के लिए ये प्लेटफॉर्म अलग-अलग प्रोडक्ट प्राइस दिखाते हैं। उनका कहना है कि आप सुविधा के नाम पर अपने आपको शारीरिक रूप से नुकसान पहुंचा रहे हैं, मानसिक तौर पर आदी बना रहे हैं और अपना ज्यादा पैसा खर्च कर रहे हैं व खुद को गरीब बना रहे हैं।

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आज हम आपको समझाएंगे कि कैसे अलग-अलग चार्ज के नाम पर ये इंस्टेंट डिलीवरी ऐप्स आपको सुविधा तो दे रहे हैं लेकिन तमाम तरह के चार्ज भी वसूल रहे हैं जो सीधे तौर पर आपको नहीं दिखते लेकिन आपके बिल में जरूर जुड़ जाते हैं।

1. हैंडलिंग चार्ज

हर ऑर्डर में 5 से 15 रुपये हैंडलिंग चार्ज

ऑर्डर करते समय आपको हर बार 5 से 15 रुपये हैंडलिंग चार्ज के तौर पर दिखते हैं। यह चार्ज हर ऑर्डर पर इंस्टेंट डिलीवरी ऐप्स लेते हैं।
यह सीधे आपके कार्ट की कीमत बढ़ा देता है। मान लीजिए महीने में 20 बार ऑर्डर करते हैं तो सिर्फ हैंडलिंग चार्ज में ही 300-400 रुपये आप चुका रहे हैं। इसका मतलब है कि सालभर में आप करीब 3-4000 रुपये हैंडलिंग चार्ज के तौर पर दे रहे हैं।

2. प्लेटफॉर्म फीस/कन्वीनियंस फीस

लगभग हर ऑर्डर में 2 से 5 रुपये की प्लेटफॉर्म फीस

पिछले कुछ समय से ब्लिंकिट, स्विगी इंस्टामार्ट और जेप्टो जैसे डिलीवरी ऐप्स ने प्लेटफॉर्म फीस लेना भी शुरू कर दिया है। सालभर में ये ₹1,000 से ज्यादा की एक्स्ट्रा लागत बन जाती है। और खास बात है कि आप इसे नगण्य मानकर चलते हैं।

3. प्राइस सर्ज (छिपी महंगाई)

कई बार कोई खास मौका जैसे दिवाली, होली या बारिश, तेज गर्मी या सर्दी के समय Price Surge फीस भी लगती है। इस दौरान प्रोडक्ट्स का दाम तो बढ़ता ही है, प्राइस सर्ज चार्ज भी लगता है।

ऑफलाइन दुकानों में मिलने वाला समान प्रोडक्ट ऑनलाइन अक्सर 5-15% महंगा मिलता है। 100 रुपये की चीज ₹110–₹115 तक मिल सकती है। यही इन ऐप्स का असली मार्जिन गेम है।

4. रेन फी / सर्ज फी

बरसात या पीक आवर्स में डिलीवरी करते समय ऐप्स ₹10-₹30 रेन फी/सर्ज फी लगा देते हैं। यानी खराब मौसम का बोझ भी ग्राहक पर ही पड़ता है।

5. डिस्काउंट का झांसा

‘₹200 की खरीद पर ₹50 ऑफ’ Buy one Get One जैसे ऑफर्स भी इन ऐप्स में दिए जा रहे हैं। लेकिन इन ऑफर्स की शर्तें इतनी सख्त होती हैं कि आखिर में आपको फायदा नहीं बल्कि नुकसान हो जाता है। डिस्काउंट का पैसा वसूलने के लिए ऐप्स प्रोडक्ट की MRP पर पहले से ही प्राइस सर्ज कर देते हैं।

अब पूरा गणित समझिए:

अगर आप महीने में औसतन ₹4,000–₹5,000 का ग्रॉसरी/स्नैक्स ऑर्डर करते हैं तो 500–700 रुपये सिर्फ चार्जेस और हिडन कॉस्ट में जा रहे हैं।

सालभर में ये रकम ₹6,000–₹8,000 तक पहुंच जाती है। यानी इन पैसों से आप एक नया बजट स्मार्टफोन या एक साल की ओटीटी प्रीमियम सब्सक्रिप्शन या ढेरों कपड़े खरीद सकते हैं।

चार्ज का प्रकारप्रति ऑर्डर लागत (₹)मासिक खर्च (₹)सालाना खर्च (₹)
हैंडलिंग चार्ज102002,400
प्लेटफ़ॉर्म/कन्वीनियंस फीस360720
रेन/सर्ज फी7.51501,800
प्रोडक्ट महंगाई (औसतन 8%)204004,800

तो असली सवाल अब यह है कि क्या 5 मिनट की यह सुविधा (Instant Delivery) आपकी बचत को खाने लायक है? या फिर स्मार्ट शॉपिंग का मतलब है- डिलीवरी तभी जब सचमुच जरूरी हो।

1. प्रोडक्ट प्राइसिंग का खेल

आपने गौर किया होगा कि वही बिस्कुट पैकेट, जो लोकल किराना में 10 रुपये का है, ऐप पर 12-15 रुपये तक मिल सकता है। कई बार MRP वही रहती है, लेकिन डिस्काउंट बहुत कम दिया जाता है। यानी असली कमाई प्रोडक्ट की कीमत से ही शुरू हो जाती है।

और बात करें सब्जी, फल-फूल जैसे उन आइटम की जिन पर MRP नहीं होती, उन्हें ये ऐप्स मनमाने दाम पर बेचते हैं। आपके घर के बाहर सब्जी विक्रेता अगर आलू 20 रुपये किलोग्राम पर बेच रहा है तो इन ऐप्स पर वह 30-35 रुपये प्रति किलोग्राम पर मिलता है।

2.छोटे-छोटे चार्ज, बड़ा नुकसान

-हैंडलिंग चार्ज: ₹5–₹15
-प्लेटफॉर्म/कन्वीनियंस फीस: ₹2–₹5
-रेन फी/सर्ज फी: ₹10–₹30

3. पैकिंग चार्ज (कभी-कभी): ₹5–₹20

कई बार पैकिंग चार्ज भी इन इंस्टेंट डिलीवरी ऐप्स द्वारा वसूला जाता है। आपको हर ऑर्डर में 30–50 रुपये तक एक्स्ट्रा देना पड़ सकता है।

4. मिनिमम ऑर्डर स्ट्रैटेजी

‘149 रुपये से ऊपर ऑर्डर करें, तभी डिलीवरी फ्री’ इस पॉलिसी से लोग जरूरत से अधिक सामान ले लेते हैं। हमें जरूरत होती है 50 रुपये के सामान की लेकिन फ्री डिलीवरी पाने के चक्कर में हम 150-200 का सामान मंगा लेते हैं।

ग्राहक सोचता है कि उसने डिलीवरी फीस बचा ली, लेकिन असल में उसने 50–100 रुपये का एक्स्ट्रा खर्च कर दिया।

5.पीक ऑवर्स में महंगाई

शाम 6–9 बजे और वीकेंड पर अक्सर प्राइसिंग बढ़ा दी जाती है। कंपनी इसे डिमांड-सप्लाई बैलेंसिंग कहती है, लेकिन असर सीधे आपकी जेब पर होता है।

6. डिस्काउंट और कूपन का भ्रम

‘200 रुपये पर 50 रुपये ऑफ’ या ‘पहले ऑर्डर पर 60% डिस्काउंट’, शुरुआत में कंपनी भारी सब्सिडी देती है।

जैसे ही यूजर्स को इसकी आदत हो जाती है, डिस्काउंट धीरे-धीरे कम कर दिए जाते हैं और चार्ज बढ़ जाते हैं। यह खेल इतनी खामोशी से होता है कि हमें पता भी नहीं चलता।

डिलीवरी बॉय की लागत कौन भरता है?
हमें लगता है कि हम सिर्फ सामान का पैसा दे रहे हैं। लेकिन ऐप्स की डिलीवरी इंफ्रास्ट्रक्चर लागत (राइडर्स, डार्क स्टोर्स, पेट्रोल, वेतन) का बोझ अप्रत्यक्ष रूप से चार्ज और प्राइस सर्ज के जरिए ग्राहक पर ही डाला जाता है।

इस उदाहरण से समझिए:

मान लीजिए आपने महीने में 20 बार ऑर्डर किया:

हैंडलिंग चार्ज: 200 रुपये

प्लेटफॉर्म फीस: 60 रुपये

रेन/सर्ज फी: 150 रुपये

प्रोडक्ट महंगाई (औसतन 8%): 400 रुपये

यानी आपने एक महीने में कुल 810 का एक्स्ट्रा खर्च कर दिए। और एक साल में यह हो गया 9,720 (एक पूरी मोटरसाइकिल की EMI या एक नए टीवी के बराबर)।

इन ऐप्स से बचें और घर से बाहर निकलें

हमारा कहना है कि इंस्टेंट डिलीवरी ऐप्स आपके टाइम को सेव करते हैं, लेकिन आपकी बचत को धीरे-धीरे खा जाते हैं। 5 मिनट की सुविधा का असली दाम आपकी सालाना सेविंग है। ये ऐप्स न केवल आपसे अतिरिक्त पैसा वसूल रहे हैं बल्कि आपको शारीरिक और मानसिक तौर पर आलसी और सामाजिक तौर पर अलग-थलग भी कर रहे हैं।

इसलिए हमारा कहना है कि इन ऐप्स को तभी इस्तेमाल करें जब बहुत ज्यादा जरूरी हो। जैसे अगर आप बीमार हैं और बाहर नहीं जा सकते तो ऑर्डर करें। लेकिन अगर आप फिट हैं और बस इस आलस में कि बाहर बहुत गर्मी है, ऐप्स से सामान मंगा रहे हैं तो सचेत हो जाइये। घर से बाहर जाइये, अपनी गली-मोहल्ले की दुकानों से सामान खरीदिए, लोगों से मिलिए और अपने पैसे भी बचाइये।