वेलेंटाइन दिवस नजदीक है। यह हमारे देश में अब महज एक दिवस यानी डे नहीं रह गया है। यह धीरे-धीरे एक लाभप्रद व्यवसाय में तब्दील हो चुका है। युवाओं को शायद इस दिवस का इतना इंतजार नहीं रहता होगा, जितना इसके विरोधियों को रहता है। युवा तो शायद एक दूसरे से इसके अलावा भी साल के 364 दिन मिल ही लेते होंगे, लेकिन विरोधियों के लिए तो यह मात्र एक बार उनको अपना जौहर दिखाने वाला सुनहरा दिन है।

शाम के समय सुनसान स्थान पर विचरण करते समय अनायास मेरा ध्यान कुछ दूरी पर मैदान की ओर गया। मैदान में पंद्रह-बीस व्यक्तियों की कोई बैठक चल रही थी। नजदीक से देखने पर मालूम हुआ कि मोहल्ले के बाटूभाई बैठक को संबोधित कर रहे थे। बाटूभाई का इतना ही परिचय काफी कि वे मोहल्ले के अघोषित सर्वेसर्वा हैं। हमने जब से इस मोहल्ले में मकान लिया है, किसी भी प्रकार की समस्या का हल हमें बाटूभाई के माध्यम से ही मिला। कभी-कभी तो मेरा मन करता था कि उनका नाम बदलकर गूगल रख दूं सभी तो पता है उन्हें खैर…

मैंने देखा कि बाटू भाई बैठक समाप्त कर हौले-हौले मेरी ओर ही आ रहे थे। मैंने चेहरे की मुस्कुराहट को हैसियत से ज्यादा खींचते हुए पूछा और भाई क्या तैयारी चल रही है। बाटू भाई ने अपनी थोड़ी बहुत शेष बची जूल्फों को संवारते हुए कहा- वेलेंटाइन आ रहा है न, विरोध करने के लिए आज चिंतन शिविर का पहला दिन था। मैंने कौतूहल से पूछा आप और विरोध? आप तो सदा लोगों के साथ रहने वाले व्यक्ति हो। विरोध से आपको क्या लेना-देना? वे बोले-अरे आप, तो बिलकुल नादानों की तरह बात कर रहे हैं, चिंतन में आज सब चिंतक यही कह रहे थे कि देश की संस्कृति इस वेलेंटाइन की वजह से भ्रष्ट हो रही है, युवा गलत दिशा में जा रहा है। कुल मिला कर विरोध नहीं किया तो परिणाम गलत होना है।

मैंने अपने अल्पज्ञान की लौ को थोड़ा तेज करते हुए कहा- साल भर तो लड़के-लड़कियां इसी प्रकार से घूमते रहते हैं। फिर साल भर विरोध क्यों नहीं ? इस एक दिन को ही ऐसा क्या हो जाता है? वे अपने चेहरे पर आश्चर्य मिश्रित भाव लाते हुए बोले- मुझे लगा था आप पत्र-पत्रिकाओं में लिखते रहते हो, शायद आप में थोड़ी समझ होगी…मुझे ऐसा लगा कि उन्होंने मुझे पद्मभूषण दिया और फिर छीन लिया। मैंने असहज रूप से सहज होते हुए कहा-आपने मेरी बात का जवाब नहीं दिया ?

वे बोले- अरे भई युवाओं के पास तो मजे मारने और मिलने-जुलने के 365 दिन हैं लेकिन हमें अपनी राजनीतिक छाप छोड़ने के लिए जो चंद दिन मिलते हैं वेलेंटाइन उनमें से एक महत्त्वपूर्ण अवसर है। उनका बोलना जारी रहा। विरोध जितना तीखा होगा, परिणाम उतना ही मीठा होगा। आज की चिंतन बैठक में स्थानों का चिह्नांकन कर लिया है, उद्यान, रेस्त्रां, मॉल, सिनेमागृह, बियाबान, रास्ते, छोटे-मोटे गार्डन और बीयरबार। सभी जगह कार्यकर्ता लगाना है। पिछले साल वेलेंटाइन के विरोध में वह आठ नंबर गली वाला बंटी ज्यादा छा गया था और उसका समाचार राष्ट्रीय चैनल वालों ने भी दिखा गया था। वार्ड की अध्यक्षता उसको उसी विरोध के फलस्वरूप मिली थी। इस बार मेरा लक्ष्य चुनावी टिकट है और ये वेलेंटाइन ही वह साधन है जो मुझे मेरे लक्ष्य तक पहुंचाएगा। मैं घर वापसी पर यही सोच रहा था कि विरोध जिसका भी हो, परिणाम जो भी हो, अगर बाटू भाई को टिकट मिला तो घर के सामने वाली ट्यूबलाइट तो ठीक करा ही लूंगा।