सूख रहा है समय
इसके हिस्से की रेत
उड़ रही है आसमान में
सूख रहा है
आंगन में रखा पानी का गिलास
पंखुरी की सांस सूख रही है
जो सुंदर चोंच मीठे गीत सुनाती थी
उससे अब हांफने की आवाज आती है
हर पौधा सूख रहा है
हर नदी इतिहास हो रही है
हर तालाब का सिमट रहा है कोना
यहीं एक मनुष्य का कंठ सूख रहा है
वह जेब से निकालता है पैसे और
खरीद रहा है बोतल बंद पानी
बाकी जीव क्या करेंगे अब
न उनके पास जेब है न बोतल बंद पानी!
बोलने के दिन
जिसके पास आवाज नहीं
वह बोलना चाहता है हर समय
असंख्य बातें हैं उसके पास जन्म से अब तक
हर भाषा बोलना चाहता है
कह देना चाहता है सब कुछ साफ साफ
लेकिन उसके भीतर कोई सोता पानी का दब गया शायद
बोलने के दिन वह बाहर आएगा
या फिर भीतर ही सूख जाएगा तमाम भाषा में
यह कितना अजीब होगा कि इतिहास में उसकी चुप्पी दर्ज होगी
बोलना कहीं दर्ज नहीं होगा।
रंग बिना
इन दिनों रंग बिना सादा है उम्मीद
स्वप्न बहुत हैं
पर वे आंखें फुर्सत में नहीं कि देख सकें जरा सा स्वप्न
जो वसंत में बहुरंगी था मौसम
वही इतना सपाट हो गया कि
देखना मुश्किल लगता है बाजार के चकाचौंध में
मिलने के बाद रंग से पैदा हुए रंग और
जब कहीं नहीं लगे वे तो उसी पानी वाली कटोरी में सूख गए।
जरा-सी जगह
बीघा भर जमीन नहीं
बस दो हाथ जगह खाली थी घर के बाहर
पहले तो लगा कि इसे बेकार ही खाली छोड़ दिया
पर बाद में लगाए उसमें फूल के तीन चार गाछ
खूब सींचा उसे खूब देखभाल हुई उसकी और जानवरों से बचाया
कल खिले हैं चार फूल!
बच्चे का चेहरा
दुर्दिन में भी उम्मीद है बच्चे का चेहरा
हर बार नुकसान हुआ
हारा कई बार
गिरा एक पत्ते की तरह
थक गया इतना कि लगा अब उठना असंभव होगा
ठीक तभी खिल गया बच्चे का चेहरा।