दीपू को नही। पता था मां का सुख क्या होता है? वह नही। जानता था रूठना-क्यो।कि उसे मनाने वाला कोई नही। था। वह जब पा।च साल का था उसकी मां चल बसी, पिता का साया तो पैदा होते ही उसके ऊपर से हट चुका था। उसके चाचा ने उसकी परवरिश की। मरते समय मां अपने लाडले को अपने देवर के हाथ में सौंप गई। चाचा ने अपनी भाभी के आगे वादा किया था कि वह दीपू की अच्छी देखभाल करेगा। उनकी भाभी त्याग की मूरत थी। भाभी ने अपना सब कुछ अपने देवर की परवरिश में निछावर कर दिया था। रात-दिन एक करके अपने देवर की सेवा की थी फिर ऐसी भाभी को भला कौन भूल सकता था?
चाचा जितना प्यार दीपू से करते थे। चाची बिलकुल उल्टी थी। वह दीपू के साथ बड़ा सौतेला व्यवहार करती थी। अपने दो बच्चों को ठूंस-ठंूस कर खिलाती। और दीपू को रूखी-सूखी रोटी दे देती, अपने बच्चो के फटे हुए कपड़े दीपू को दे देती। उसे जमीन पर सुला देती। चाचा टोकते तो कलह करने लगती। हां मैं तो सौतेली हूं। मै तो उसका ध्यान ही नहीं रखती। सब मुझे ही टोकोगे और चिल्लाने लगती।
चाचा मन मसोस कर रह जाते। क्या करते? चाची से छिप-छिप कर दीपू को मिठाई आदि खिला लाते। पर दीपू के कारण दुखी रहते। जब दीपू उनकी गोद में सिर रखता उसकी चाची उसे लताड़ लगाती कि बेचारा दीपू मन मसोस कर रह जाता। एक बार दीपू बहुत बीमार पड़ा। डॉक्टर ने तुरंत आपरेशन करने के लिए कहा। उसके लिए खून की जरूरत थी। दीपू की चाची और दीपू का ब्लड ग्रुप एक ही था। डॉक्टर ने कहा अगर तुरंत आपरेशन नहीं हुआ तो दीपू की जान को खतरा है। चाचा ने बहुत मिन्नतें कीं। लेकिन चाची नहीं मानीं ‘मर ही तो जाएगा अच्छा है उससे पीछा तो छुटेगा। वह जिंदा रहकर भी क्या करेगा?’ चाचा को बहुत गुस्सा आया। पर वह हाथ मलकर रह गए।
पर चाचा ने हार नहीं मानी। उन्होंने हर संभव प्रयास करके दीपू को बचा लिया। वक्त बीतता गया। कुछ समय बाद व्यापार के काम से चाचा को बाहर जाना पड़ा। एक दिन, रात में चाची की तबियत खराब हो गई। चाची ने दीपू को आवाज लगाई। बेटा मेरी तबियत बहुत खराब हो गई है। मुझे डॉक्टर के पास लेकर चल। पहले तो दीपू को बहुत गुस्सा आया। उसने आंख मीचकर ऐसे बहाना बना दिया जैसे उसने कुछ सुना ही न हो। लेकिन उसकी आंखों से नींद बिलकुल गायब हो गई।
चाची दर्द से तड़प रही थी। दीपू बिस्तर से उठा। उसके पैर खुद ब खुद चाची की तरफ बढ़ गए। वह अपने को रोक नहीं पाया। वह जैसे ही दौड़ा कि गिर गया, उसके बहुत गहरी चोट लग गई। खून बहने लगा। उसने चोट की परवाह किए बिना चाची को उठाया और डॉक्टर के पास ले गया। ठीक होने पर जब चाची ने आंखें खोलीं तो चाची ने दीपू के बारे में डॉक्टर से पूछा तो डॉक्टर ने बताया कि कैसे अपनी जान पर खेलकर दीपू ने उनकी जान बचाई । चाची को आज पहली बार आत्मग्लानि हुई। उन्होंने दीपू के साथ कैसा व्यवहार किया और दीपू ने फिर भी मुझे बचा लिया। डॉक्टर के मना करने पर भी चाची अपने को रोक नहीं पाई। आंखों में पछतावे के आंसू लिए उनके कदम दीपू की तरफ बढ़ रहे थे।
