ज्यों ही मैं उनके कमरे में घुसा, उन्होंने पूछा-‘तुम किसके आदमी हो?’ मैंने भी तुरत-फुरत जवाब दिया-‘हजूर मैं तो आपका ही आदमी हूं।’

उन्होंने फिर कहा-‘झूठ क्यों बोलते हो? मेरी तो तुमने ऊपर शिकायत की है और इसी कारण तुम्हें मैंने बुलाया है, सच सच बताओ तुम किसके आदमी हो?’
मैंने इस बार सच-सच बता दिया-‘मैं मुख्यमंत्री का आदमी हूं।’
‘अफसरजी की हवा निकल गई। मुझे कुर्सी पर बैठने को कहा। मंत्रीजी आपका तबादला
नहीं चाहते थे और इसी कारण मैंने आपके आवेदन पर विचार नहीं किया था।’
अक्सर दैनिक जीवन में ऐसे अनेक अवसर आते हैं जब कोई न कोई आप से पूछ
बैठता है, ‘आप किसके आदमी हो ? मोहल्ले में दादा तक पूछता है-आप
किसके आदमी हैं,और अगर आप थानेदार के आदमी हो तो दादा आपको कुछ
नहीं कहता। इसी प्रकार कॉलेज में एक बार मैंने एक बिगडैÞल छात्र से पूछा था- ‘तुम किसके आदमी हो ?’ वह तुरंत बोल पड़ा-‘पापा पुलिस में एसपी हैं।’

मेरी सिट्टी-पिट्टी गुम हो गई। वह होनहार छात्र आगे जाकर प्रथम श्रेणी में पास हुआ और विश्वविद्यालय छात्रसंघ का अध्यक्ष बना।

एक शोध छात्रा से मैंने यही प्रश्न पूछा था, ‘तुम्हारे पास किसका जैक है?’ छात्रा ने विभाग के कबीना मंत्री का नाम लिया। मैं चुप हो गया। उस सुंदर छात्रा की थीसिस मैंने ही लिखकर दी और विश्वविद्यालय से पास कराई।

अगर आप किसी बड़े आदमी के आदमी हैं तो आपके लिए कोई भी काम मुश्किल नहीं है। मुन्ना भाई एमबीबीएस ही नहीं एमडी भी हो सकते हैं। विश्वविद्यालयों में संस्थानों में सरकारों में यहां तक कि एनजीओ में भी ऐसे आदमी भरे हैं जो किसी न किसी के आदमी हैं। वे स्वतंत्र नहीं है, बस किसी के पिछल्लगू हैं और इसी कारण वे पावरफुल हैं। अगर आप डाक्टर हैं और किसी मंत्री के आदमी हैं तो आपको यह अधिकार है कि आप मरीज की बार्इं टांग के बजाय दार्इं टांग का आॅपरेशन कर दें। आप प्रसूति के बाद बच्चा भी बदल सकते हैं, आपका बाल भी बांका नहीं होगा क्योंकि आप चिकित्सा मंत्री के आदमी है। छोटे पदों पर काम करने वाले बड़े लोगों के क्या कहने। विभागाध्यक्ष का चपरासी विभागाध्यक्ष के अलावा किसी को कुछ समझता ही नहीं है। कई आरएएस मुख्य सचिव या कबीना सचिव के आदमी हो कर रहते हंै।

अगर आप संपादक के आदमी हैं तो क्या कहने। आपकी तीसरे दर्जे की घाटिया रचना भी छप जाती है, पारिश्रमिक भी डबल मिलता है सो अलग। अगर आप डाकू गब्बर सिंह के आदमी हैं या थानेदार के आदमी हैं तो पूरा कस्बा आपके हवाले है, कहीं से भी लूटपाट शुरू कर सकते हैं। अगर आप मुंबई के किसी भाई के आदमी हैं तो सब खून माफ है, जितनी चाहिए उतनी सुपारी लीजिए। समीक्षकों का आदमी होना भी साहित्य, संस्कृति और कला के क्षेत्र में काफी मायने रखता है। आप रातोंरात बड़े लेखक, कलाकार या नाटककार बन जाते हैं। किसी को भी बाप बना लीजिए।

किसी बड़े आदमी की पूंछ पकड़ लीजिए और ट्रांस्फर-पोस्टिंग, नौकरी दिलाने जैसे महान कार्यों में दोनों हाथों लूटिए। अगर आपने अनाचार, हत्या, अपहरण कर लिया है तो किसी बड़े आदमी की शरण में चले जाइए, वह आपको अपना आदमी घोषित कर दे तो मजाल है कोई आपको हाथ भी लगा सके। किसी का आदमी बन जाइए। बस फिर आपके सौ खून माफ हैं। बाप पुलिस में है तो बेटा अपराधी हो सकता है। बाप कबीना मंत्री है तो बेटे को हत्या, बलात्कार का हक स्वयं मिल जाता है। सामाजिक सरोकार बदल जाते हैं। मीडिया के सुर बदल जाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिंट मीडिया विज्ञापन सबको चाहिए।

अगर आज तक अभी आम आदमी हैं और किसी के आदमी नहीं बन सके हैं तो यह आपका, समाज का और देश का दुर्भाग्य है, तुरंत किसी पावरफुल सत्ताधारी का आदमी बन जाइए। या स्वयं को उसका आदमी घोषित कर दीजिए और अगर वह ना-नुकर करे तो विपक्षी खेमे की ओर रुख करने की धमकी दे दीजिए। आपका काम तुरंत हो जाएगा, आपको बचाने की गारंटी उस बड़े आदमी की खुद हो जाएगी। आपका बाल भी बांका नहीं होगा। बस आका बदल लीजिए। आका बदलते ही आपके लिए सब रास्ते खुद खुल जाते हैं। आजकल आकाओं का जमाना है। एक आका से काम नहीं चलता। बस बदलते रहिए जब तक सफलता नहीं मिलती है।

आपको ऋण लेना है, बैंक प्रबंधक घास नहीं डाल रहा है, तुरंत बैंक में अफवाह फैला दीजिए कि आप वित्त मंत्री के आदमी है आप का काम चुटकियों में हो जाएगा। आपको शास्त्रीय संगीत या पुरस्कार सामारोह का कार्ड नहीं मिला है, तुरंत स्वयं को कलाकार या अध्यक्ष का रिश्तेदार घोषित कर दीजिए। दस कार्ड आपकी सेवा में उपस्थित हो जाएंगे। मैं ऐसे सैकड़ों लोगों को जानता हूं जो इसी प्रकार आदमियों के सहारे स्वयं बड़े बन गए। इतिहास गवाह है कई मंत्रियों के पीए स्वयं मंत्री बन गए। कई अफसरों के पीए आगे जाकर स्वयं अफसर बन गए। इस कार्य के लिए नियम बदल दिए गए। अगर आप किसी बड़े आदमी से जुड़े हैं तो क्या कहने, फिर तो बस आप ही आप हैं। चरित्र की चाट चटनी का चमत्कार देखते ही बनता है। चरित्र का इस देश में इतना ही उपयोग हैं। आप तरक्की की सीढ़ियां चढ़ना चाहतें हैं, तुरंत बास को अपना बना लीजिए। तरक्की पक्की।

आप अयोग्य हैं, कमजोर हैं समय पर नहीं आते, काम नहीं करना चाहते? चिंता की कोई बात ही नहीं है। स्वयं को कार्यालयाध्यक्ष का विश्वस्त आदमी घोषित कर दीजिए। अब कोई आपका क्या कर लेगा । पूर्व लेखक हैं या पूर्व कवि हैं, अपने आपको संपादक का आदमी घोषित कर दीजिए। संपादक न माने आपकी बला से मगर आप साहित्य की सड़क पर धुआं देते रहिए। प्रदूषण फैलाते रहिए।

जो बड़े आदमी का आदमी नहीं होता वह दो दो कौड़ी का होकर रह जाता है। लेकिन कभी-कभी आप जिसके आदमी होते हैं, सामने वाला उससे भी बड़े आदमी का आदमी होता है, ऐसी स्थिति में आप अपने बड़े आदमी को छोड़िए और उससे भी बड़े आदमी का पल्ला पकड़ लीजिए। सफलता के लिए इतना तो करना ही पड़ता है। जो लोग भवसागर को पार करने के लिए ईश्वर पर आश्रित हैं वे अपने मामले में पुनर्विचार करें और किसी बड़े आदमी के आदमी बन जाएं ताकि भौतिक संसार में प्रगति होती रहे और आध्यात्मिक संसार किसने देखा है?