जिस जमाने में महिलाओं के प्रति समाज का रुख बहुत कठोर हुआ करता था, उनका पढ़ना-लिखना दूभर था, उस वक्त आनंदीबाई जोशी घर की दहलीज लांघ कर महाराष्ट्र से अमेरिका गई और भारत की पहली महिला चिकित्सक बनीं। इस तरह आनंदीबाई ने भारत की अन्य महिलाओं के लिए घर से बाहर निकलने के लिए द्वार खोल दिए। उन्होंने ही सिखाया कि महिलाओं का काम केवल घर संभालना नहीं, वे लोगों को जीवनदान भी दे सकती हैं। आनंदीबाई जोशी का मूल नाम यमुना था, जिसे बदल कर उनके पति ने आनंदी कर दिया था।
प्रारंभिक जीवन
महाराष्ट्र के कट्टरपंथी परिवार में जन्मी आनंदीबाई जोशी का विवाह नौ साल की उम्र में गोपालराव जोशी से कर दिया गया था। गोपालराव जोशी आनंदीबाई से बीस साल बड़े थे और विधुर थे। वे डाक बाबू थे। वे प्रगतिशील विचारों वाले व्यक्ति थे, महिलाओं की शिक्षा के हिमायती थे।
निर्णायक मोड़
आनंदीबाई जोशी चौदह साल की उम्र में मां बन गईं थीं, पर दस दिनों के भीतर ही उनके बच्चे का निधन हो गया। इससे आनंदीबाई को बहुत दुख हुआ। उस बच्चे के जाने के बाद आनंदीबाई ने डॉक्टर बनने की सोची। फिर 1886 में अमेरिका से चिकित्सा की डिग्री ली।
पति का साथ और शिक्षा
आनंदीबाई जोशी के पति गोपालराव जोशी ने हमेशा आनंदीबाई को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया। 1880 में गोपालराव ने एक प्रसिद्ध अमेरिकी मिशनरी रॉयल वाइल्डर को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने औषधि अध्ययन में आनंदीबाई की रुचि के बारे में बताया। थॉडीसिया कार्पेंटर ने जोशी की अमेरिका में रहने की व्यवस्था की। 1883 में गोपालराव को सेरामपुर में स्थानांतरित कर दिया गया था और उन्होंने कमजोर स्वास्थ्य के बावजूद मेडिकल अध्ययन के लिए आनंदीबाई को अमेरिका भेजने का फैसला किया। थोर्बोर्न दंपति ने आनंदीबाई को पेनसिल्वानिया के महिला चिकित्सा महाविद्यालय में आवेदन का सुझाव दिया था। आनंदीबाई ने वहां से मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई की।
महिलाओं की प्रेरणास्रोत
आनंदीबाई ने पश्चिम बंगाल के सेरामपुर कॉलेज के विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए अपने अमेरिका जाने और मेडिकल डिग्री प्राप्त करने के फैसले के बारे में बताया। उन्होंने भारत में महिला डॉक्टरों की जरूरतों पर बल दिया और महिलाओं के लिए एक मेडिकल कॉलेज खोलने के अपने लक्ष्य के बारे में बताया। आनंदीबाई के सामने अनेक समस्याएं आईं, लेकिन कभी उन्होंने हार नहीं मानी। अमेरिका में पढ़ाई के दौरान आनंदीबाई का स्वास्थ्य बिगड़ने लगा था। वहां का मौसम भारत से अलग था, जो जोशी को अनुकूल नहीं बैठ रहा था। फिर भी वे हार नहीं मानीं और स्नातक किया। उनके स्नातक पूरा करने पर रानी विक्टोरिया का बधाई संदेश उन्हें आया था। 1886 में आनंदीबाई भारत वापस लौट आईं और कोल्हापुर में अलबर्ट एडवर्ड अस्पताल की महिला वार्ड के चिकित्सक प्रभारी के रूप में काम संभाला।
सम्मान
आनंदीबाई को सम्मानित करने के लिए भारत में विभिन्न स्तरों पर प्रयास हुए। महाराष्ट्र सरकार ने महिलाओं के स्वास्थ्य पर काम करने वाली युवा महिलाओं के लिए उनके नाम पर एक फैलोशिप की शुरुआत की है। दूरदर्शन पर उनके जीवन पर आधारित ‘आनंदी गोपाल’ नाम की एक हिंदी शृंखला शुरू की गई। इसी साल फरवरी में उनके जीवन पर आधारित एक मराठी फिल्म आनंदी गोपाल आ चुकी है। निधन: तपेदिक की वजह से 26 फरवरी, 1887 को उनकी मृत्यु हो गई थी।

