आम सुनहरी पिचकारी लिए खड़ा है और सहजन सफेद
आमड़े ने हरा रंग घोल रखा है
सेमर ने लाल
कनेर ने पीला
वे रंग रहे हैं धरती को
धरती खिलखिला रही है
सरसों की तरह
झूम रही है
जौ की बालियों की तरह
रस से भर रही है शहतूत की तरह
महक रही है
नीबू के फूलों की तरह
और अपनी टोली के साथ
उछाल रही है उन पर रंग और गुलाल
कुलफा और मरसा के पास है लाल गुलाल
धनिए के पास हरा
गाजर के पास नारंगी और बैंगनी रंग है
तो मूली लिए हुए है सफेद वार्निश
जो नहीं छूटती आसानी से
हरी मटर तो रंग-भरा गुब्बारा लिए
चढ़ आई है मेढ़ पर
अरहर पर इतना ज्यादा हरा रंग चढ़ा है
कि वह काली दीखने लगी है
कोयल चिड़ियों के साथ गा रही है फाग
कलियां उड़ा रही हैं सुगंधित रंगीन गुलाल
हवा चूमती फिर रही है सबके गाल
सबकी अपनी-अपनी टोली है
लगता है आज होली है।
दूल्हा बसंत
जंगली घास-फूस और पौधों ने
पहन लिए हैं
रंग-बिरंगे फूलों वाले कपड़े
मूली ने हरी
पोस्ते ने लाल
तो तीसी ने ओढ़ रखी है
हल्की नीली ओढ़नी
पेड़ों की नई फुनगियां
तिलक लगाए यों उमग रही हैं
मानो छू ही लेंगी आकाश
मंजरियां पहन रही हैं
नए नमूने के नथ, टीके और झुमके
हवा गले में हंसुली खनखनाती
गा रही है फाग
पगडंडियों ने हरी साड़ी पहनकर
घूंघट निकाल लिया है
पर झांक लेती हैं
कभी-कभी ओट से
तन्वंगी लताओं ने खुद को
सजा रखा है फूलों से
और उझक रही हैं
छतों, कंगूरों और मुंडेरों से
बिछ गई है चारों तरफ हरी कालीन
पेड़ फूलों की मालाएं लिए खड़े हैं
सज गए हैं बंदनवार
तितलियां, मधुमक्खियां
गा रही हैं मंगलाचार
उल्लसित है दिग्दिगंत्
बारात लेकर आया है
दूल्हा बसंत।
निबोरियों के दिन
झर रहे हैं
नन्हें श्वेत सुकुमार नीम के फूल
हवा खेल रही है उनसे
आइस-पाइस का खेल
थके फूलों को
सुला रही है धरती अपने आंचल में
हंस रहा है नीम का पेड़
पक्षी आश्वस्त हैं
जल्द आएंगे
निबौरियों के दिन।