कृति स्कूल में दोपहर का खाना खाने के बाद अकेली ही पिछवाड़े के पार्क में टहलने के लिए चल दी। आज स्कूल में आने के बाद पहले पीरियड से ही उसका मूड बहुत खराब था। इसका कारण थी उसकी सहेली दीप्ति। दरअसल इसमें दीप्ति का भी कोई दोष नहीं था। दीप्ति कृति की सबसे घनिष्ठ सहेली थी। दीप्ति पूरे स्कूल की शान थी। वह अच्छे नंबरों से तो पास होती ही थी, साथ ही अन्य गतिविधियों में भी वह बहुत तेज थी। कृति पढ़ाई में तो ठीक थी, लेकिन अन्य गतिविधियों में वह इतनी तेज नहीं थी। दूसरे उसमें कई अवगुण थे। मसलन, वह बात-बात में झूठ बोलती थी, अपने को सबसे खूबसूरत व अमीर समझकर उन्हें नीचा दिखाती थी और अध्यापिका से बेवजह सबकी शिकायत कर उन्हें डांट पड़वाती थी। दीप्ति उसे बहुत बार समझाती थी कि वह ऐसा न करे, लेकिन कृति उसकी बात नहीं मानती थी।
उस दिन पहले पीरियड में गणित की अध्यापिका सबका टैस्ट ले रही थी। कृति को दो-तीन सवालों के हल नहीं आ रहे थे। उसने दीप्ति को कई बार इशारा किया, लेकिन दीप्ति मैडम के लगातार आस-पास होने के कारण कृति को हल नहीं बता पाई। नजर बचाकर जब दीप्ति उसे एक सवाल का हल बताने लगी तो मैडम ने कृति को बहुत डांटा और उसका टैस्ट पेपर भी छीन लिया। तब से कृति, दीप्ति पर बहुत गुस्सा थी और बेवजह उसे ही अपनी गलती का कसूरवार मान रही थी। लंच भी उस दिन उसने अकेले ही किया और स्कूल के पिछवाड़े के पार्क में अकेली ही चली गई।
अधिकतर बच्चे स्कूल के सामने वाले पार्क में खेलते थे क्योंकि सामने वाला पार्क बहुत ही खूबसूरत था और उसका नियमित रखरखाव होता था जबकि पिछवाड़े वाले पार्क का रखरखाव काफी दिनों बाद किया जाता था। इसलिए वहां पर बड़ी-बड़ी घास उग आती थी। वहां पर बच्चे भी कम ही खेलते थे।
कृति पार्क के पिछवाड़े में अकेली रो रही थी, तभी झाड़ियों में से एक छोटा सा जोकर निकल कर आया और बोला, ‘कृति, रोने से कुछ नहीं होगा। आज अगर मैडम ने डांटा है तो उसमें तुम्हारी ही गलती है, दीप्ति का उसमें कोई कसूर नहीं है।’ कृति छोटे से जोकर को अपने बारे में सब कुछ जानते देख कर हैरत से भर उठी और अपने आंसुओं को पोंछते हुए बोली, ‘क्या आप मुझे जानते हैं?’ ‘हां मैं तो तुम्हें ही क्या इस संसार के हर बच्चे को जानता हूं। बस जब भी कोई बच्चा दुखी या उदास होता है तो मैं उसकी उदासी दूर करने चला आता हूं।’ कृति उसकी बातें सुनकर बोली, ‘क्या आप मेरी परेशानी भी झटपट दूर कर देंगे।’
‘हां, इसलिए तो मैं झटपट तुम्हारे पास आया हूं और तुम्हें मेरा नाम सुनकर और भी हैरानी होगी क्योंकि मेरा नाम भी झटपट है।’
उसका नाम सुनकर कृति बहुत हैरान हुई। अब उसे भी झटपट की बातों में मजा आने लगा था। झटपट बोला, ‘कृति वास्तव में अधिकतर परेशानी इसलिए होती है क्योंकि हम खुद, खासतौर से बच्चे गलती पर होते हैं। अगर बच्चे अपनी गलती पर बहस न करें तो वे परेशानी के साथ बेवजह होने वाले नुकसान से भी बच सकते हैं। अगर मैं तुम्हें तुम्हारी गलती बताऊं तो तुम बुरा तो नहीं मानोगी। झटपट उससे इतने प्यार से बात कर रहा था कि कृति भी उससे प्यार से बोली, ‘नहीं झटपट, मैं बुरा नहीं मानूगीं।’
‘अच्छा, ठीक है। अगर तुम्हें मेरी दोस्त बनना है तो तुम्हें मेरी बातें माननी पड़ेंगी। इसके बाद मैं हमेशा तुम्हारी मदद करूंगा और तुम्हें हर परेशानी से बचाऊंगा।’
कृति झटपट पर मोहित सी हो गई थी। वह हामी भरते हुए बोली, ‘हां मैं तुम्हारी सारी बात मानूंगी ।’
कृति की बात सुनकर झटपट बोला, ‘कृति, तुम बहुत प्यारी हो । तुम्हारी सहेली दीप्ति भी बहुत अच्छी है। पर तुममें कुछ कमियां हैं जिससे लोग तुम्हें कम पसंद करते हैं। अगर तुम अपनी इन कमियों को दूर कर लो तो तुम दुनिया की सबसे अच्छी लड़की बन सकती हो।’
‘हां, मुझे दुनिया की सबसे अच्छी लड़की बनना है। आप मुझे मेरी कमियां बताइए। आप जैसे परेशानी दूर करने वाले दोस्त के लिए मैं अपनी कमियां जरूर दूर करूंगी।’
झटपट बोला, ‘शाबास कृति। अब ध्यान से सुनो। पहली बात, तुम खुद को दूसरों से अच्छा समझती हो। यह बात बिल्कुल गलत है। खुद को दूसरों से सर्वश्रेष्ठ समझने वाला व अपने घमंड में रहने वाला बच्चा जीवन में कामयाब नहीं हो सकता। हर बच्चे को खुद को आम बच्चों जैसा बन कर अपने गुणों को उभारना चाहिए तभी उसके गुण आम बच्चों से अलग और सर्वश्रेष्ठ नजर आते हैं। तुम आज से ही बल्कि अभी से खुद को सब बच्चों जैसा समझोगी।’ झटपट की बातें सुनकर कृति ने सोचा, ‘हां, यह सच है कि मैं अपने आगे किसी को सर्वश्रेष्ठ नहीं समझती और अपने अच्छे घर, दौलत और रूप-रंग पर अभिमान भी करती हूं ।
जबकि दीप्ति तो मुझसे भी अधिक गुणवान है, लेकिन वह तब भी सबसे बड़े प्यार और सम्मान के साथ बात करती है इसलिए तो सब उसे इतना अधिक पसंद करते हैं।’ यह सोचकर कृति ने झटपट ‘झटपट’ की बात मान ली । इसके बाद झटपट बोला, ‘दूसरे, तुम बात-बात में झूठ बोलती हो। बचपन के तुम्हारे यही झूठ तुम्हारे अंदर रच-बस जांएगे और तुम उन्हें अपनी दिनचर्या में शामिल कर झूठी तो कहलाओगी ही साथ ही कोई भी बुद्धिजीवी व सत्य प्रिय व्यक्ति तुम्हारा साथ पसंद नहीं करेगा। इसलिए तुम झूठ बोलने की आदत छोड़ दो। एक झूठ इंसान से सैकड़ों झूठ बुलवाकर उसका व्यक्तित्व ही झूठा बना देता है।’
झूठ बोलना कितना गलत साबित हो सकता है, यह आईना आज उसे झटपट ने ही दिखाया था। उसने भविष्य को ध्यान में रखते हुए झटपट की यह बात भी मान ली। फिर झटपट बोला, ‘और आखिरी बात यह कि तुम किसी की गलती व बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहती हो । यह भी गलत है । बस आज से तुम इन बातों को अपने दिमाग से निकाल दो और सप्रेम को हर दम अपने साथ लेकर चलो।’
‘सप्रेमह्ण यह क्या है ? कृति हैरानी से बोली । कृति के हैरानी भरे चेहरे को देखकर झटपट प्यार से उसके सिर पर हाथ मारते हुए बोला, ‘यह तुम जैसे नटखट बच्चों के याद रखने के लिए छोटा सा शब्द और ढेर सारा सार। यानी सत्य बोलो, प्रसन्नता से रहो, मेहनत करते जाओ और प्रगति को अपनी मुट्ठी में लेते जाओ।’
यह सुनकर कृति खुशी से बोली, ‘वाह झटपट, आज तुमने मुझसे दोस्ती कर के मुझे कितनी काम की बातें बताई हैं।’ यह कहकर उसने झटपट की ओर देखा। उसे झटपट कहीं नजर न आया। असल में झटपट तो कहीं था ही नहीं। यह तो उसके अपने मन की ही उधेड़बुन थी। मन ही मन उसने झटपट नामक एक चरित्र गढ़ लिया था। यह चरित्र ही उसे कुछ सुझा गया।