छायादार वृक्षों का हमारे यहां आदिकाल से ही महत्त्व रहा है। यहां प्रारंभ से ही घरों के आगे और सड़कों के किनारे वृक्ष लगाने की परंपरा रही है। गुलमोहर एक ऐसा ही छायाकार वृक्ष है, जो शोभा और छाया दोनों की दृष्टि से उपयोगी है।

दूर से भी पेड़ पर लगे ये फूल आकर्षण का केंद्र होते हैं। पेड़ का कोई भाग ऐसा नहीं होता है। जहां फूल नहीं लगते हैं। लेकिन धीरे-धीरे इसी माह में वृक्ष पर पत्तियां निकलने लगती हैं और इनका आना जुलाई तक रहता है। पत्तियों और फूलों से पेड़ इतना भर जाता है कि एकदम घनेरा हो जाता है। गरमी के दिनों में इसकी छाया इतनी घनी और शीतल होती है कि राहगीर बहुत राहत महसूस करते हैं।

पत्तियों के बीच खिले सुर्ख लाल फूलों के गुच्छे इतने भव्य होते हैं कि शोभा देखते ही बनती है। इस वृक्ष पर लंबी हरी फलियां भी लगती हैं, जो कालांतर में सूखकर काली पड़ जाती हैं और वे कई माह तक वृक्ष में लटकी रहती हैं। लेकिन ये फलियां सामान्य रूप से पत्तों में छिपी रहती हैं लेकिन पतझड़ के समय ये लटकी हुई दिखती हैं।

फूल बड़े गुच्छेदार और पंद्रह सेंटीमीटर तक के होते हैं। यह वृक्ष मिट्टी का उपजाऊपन स्वयं समेट लेता है और दूसरे पेड़-पौधों को नहीं पनपने देता, क्योंकि यह वृक्ष पृथ्वी की ऊपरी सतह से भोजन ग्रहण करता है। यह वृक्ष ज्यादा मोटा नहीं होता लेकिन इसका तना चिकना और लंबी शाखाओं वाला होता है। यह वृक्ष अपनी जड़ें भली-भांति नहीं जमा पाता। इसलिए अनेक बार तेज आंधी में यह उखड़ जाता है और धराशायी हो जाता है। सजावटी वृक्षों में यह पेड़ पूरे देश में अपना स्थान बना चुका है और यह ज्यादा भारी न होने से कम जगह में भी उगा लिया जाता है।

गुलमोहर वृक्ष की पत्तियां छोटी-चिकनी और करीने से सजी दिखाई देती हैं। ये सघन, हरी और हवा के झोंकों से लहराती रहती हैं। गुलमोहर विदेशी वृक्ष है, लेकिन अब यह इतना छा गया है कि गांव-गांव तक इसकी पहुंच हो गई है। पहले पलाश, अशोक और आशा पाला वृक्षों को जो माहात्म्य हमारे यहां मिलता रहा है। उसका स्थान अब यह वृक्ष लेता जा रहा है। पार्कों और बागों की शोभा रूप में यह वृक्ष सर्वत्र उगाया जा रहा है।

बड़े-बड़े बंगलों और घरों के लॉन में भी इस वृक्ष को लगाने का शौक फैल गया है। उद्यान नर्सरियों में इसकी नस्लें विकसित की जाती हैं और लोग इसे बेचकर अपनी जीविका जुटाते हैं। दिनोंदिन बागवानी का शौक जन-सामान्य में प्रचारित हो रहा है और यह वृक्ष इस शौक में अग्रणी बना हुआ है। इसकी टहनियां इतनी कमजोर होती हैं कि हल्के से दबाव से ही टूट जाती हैं।

गुलमोहर वृक्ष की बढ़ोतरी अल्प समय में ही हो जाती है। यह वृक्ष कुछ ही समय पतझड़ का शिकार रहता है। बाकी पूरे साल यह पत्तियों से आच्छादित रहता है। वर्षा के मौसम में यह वृक्ष लगाया जाए तो जल्दी उग आता है, लेकिन इसकी कलम भी लगाई जा सकती है। फूलों की अशर्फी से लदा यह वृक्ष करीब सत्रहवीं शताब्दी में आया, तब से निरंतर उष्ण तटीय क्षेत्रों में बहुतायत से पल्लवित हुआ है। उष्ण तटीय क्षेत्रों में यह वृक्ष आसानी से उग आने से वहां यह ज्यादा संख्या में दिखाई देता है। इसके फूलों से मधुमक्खियाँ मकरंद ग्रहण करती हैं और इनसे परागण भी होता है। इसके फूल सब्जी बनाने के काम भी आते हैं।

गुलमोहर की सुंदरता का बखान नहीं किया जा सकता। इस वृक्ष को शगुनी भी माना जाने लगा है। इसलिए यह वृक्ष लगाना मन की पवित्रता से जुड़ गया है। सजावटी वृक्षों में गुलमोहर जैसा वृक्ष अन्य कोई नहीं है। इसके फूलों की शोभा का वर्णन साहित्य में भी उपलब्ध होता है।