जून का महीना था। तेज गर्मी पड़ रही थी। बारिश का कोई अता-पता न था। जंगल का तालाब लगभग सूखने को था। सारे जानवर पानी की कमी को लेकर परेशान थे। हाथी दादा ने एक सभा बुलाई। हाथी दादा ने कहा, ‘अभी तक अच्छी बारिश हो रही थी। तालाब में खूब पानी था। हमने जैसा चाहा, जितना चाहा वैसे पानी का उपयोग किया। मगर इस बार अब तक बारिश का कोई पता नहीं है। इसलिए हमें पानी का इस्तेमाल संभालकर करना होगा और उसे बचाने का उपाय भी खोजना होगा।

सभी जानवर चिंता में डूब गए। फिर मिट्ठू तोता बोला, ‘जंगल की दूसरी ओर एक सूखा तालाब भी है। अगर हम उस तालाब को खोदकर और गहरा बना दें तो बारिश का पानी उसमें रुक जाएगा और हमें दोनों तालाबों से पानी मिल सकेगा।’ सभी ने तालियां बजाकर तोते की बात का समर्थन किया। यह तय हुआ कि सभी जानवर बारी-बारी से तालाब खोदने का काम करेंगे। खुदाई का काम शुरू हुआ। उसी जंगल में एक मुर्गा रहता था। वह बड़ा ही आलसी और कामचोर था। उसे जब भी खुदाई करने के लिए कहा जाता, वह कभी सिरदर्द का बहाना बनाता तो कभी पेटदर्द का और अपने घर में लेटा रहता। कभी रिश्तेदारों से मिलने के बहाने खुदाई के समय जंगल से बाहर चला जाता। सारे जानवर उसकी चालाकी समझ गए और उन्होंने हाथी दादा से मुर्गे की शिकायत की। हाथी दादा ने उन्हें उचित समय का इंतजार करने को कहा।

देखते ही देखते तालाब बहुत गहरा हो गया और उसमें पानी भरने के लिए बारिश का इंतजार करना ही नहीं पड़ा। जमीन से निकाले पानी से पूरा तालाब लबालब हो गया। अब तक जंगल का पुराना तालाब सूख गया था और बारिश अब तक शुरू नहीं हुई थी । जंगल के सारे जानवर अब नए तालाब की ओर जाने लगे। प्यास से बेहाल मुर्गा भी नए तालाब की ओर भागा। उसने जैसे ही पानी पीना चाहा हाथी दादा ने गरजकर कहा, ‘रुक जाओ…तुम यह पानी नहीं पी सकते।’
‘क्यों? मुर्गा भोलेपन से बोला, ‘ये सारे जानवर भी तो पानी पी रहे हैं?’
इन सभी ने तालाब खोदने में सहायता की है, मगर तुमने एक दिन भी इसमें काम नहीं किया है इसलिए तुम यह पानी नहीं पी सकते।’ हाथी दादा ने उत्तर दिया ।

‘हां-हां यह कामचोर है, इसे पानी नहीं मिलेगा। इसे पानी नहीं। मिलेगा।’ सारे जानवर एक स्वर में चिल्लाए।
मुर्गा प्यास से बेहाल हो रहा था। वह रो-रोकर अपनी कामचोरी पर माफी मांगने लगा। हाथी दादा को उस पर दया आ गई। उन्होंने कहा-‘ठीक है.. हम तुम्हें एक शर्त पर माफ कर सकते हैं। और पानी पीने दे सकते हैं।’
‘कौन सी शर्त?’ मुर्गा बोला।
‘ कल से रोज सुबह सबसे जल्दी जागोगे और बांग देकर हम सबको जगाओगे और सारा दिन तालाब की रखवाली करोगे।’
मुर्गे ने हाथी दादा की बात मान ली। तबसे मुर्गा रोज सुबह सबसे पहले उठता है और कुकडूं-कूं बांग देकर सबको जगाता है। ’