सुना था

किसी को किसी पर
यकीन ही नहीं
अजीब सी हो
चली है यह दुनिया
शब्दों की दुनिया
संवेदनाओं की दुनिया
भरोसे, उम्मीद की नजर से
देखी जाती थी यह दुनिया
कहे-सुने जाते सुना था हमने भी!


कैसे गाएं वह गीत

नहीं, यह वह सुबह नहीं
पंछियों की चहचह के गीत को
सुनने को तरसने लगे हैं कान
शीतल हवा की चाह में
मन मारे बैठा मन
हिलना-डुलना ही नहीं चाहते
न हरे-हरे पत्ते, न हाथ-पांव
नहीं, यह वह सुबह नहीं
चाहत में जिसकी खाई थीं-
लाठी-गोलियां, त्यागे थे प्राण
ओह, बनते गए तबके दर तबके
टूटते गए एकता के गान
नहीं, यह वह सुबह नहीं
दिन-ब-दिन बढ़ते जा रहे जिंसों के दाम
दिन-दिन होता जा रहा जीना हराम
हर रिश्ते पर भारी पड़ने लगा पैसा
हाय, आ गया अब यह दौर कैसा
नहीं, इस सुबह की तो नहीं की तमन्ना
जिसकी की थी, क्या पता आए कि न आए
कैसे गाएं ,वह सुबह कभी तो आएगी!