समांतर
अकसर ढूंढने चलती हूं कोई चीज
उसकी जगह मिल जाता है कुछ और
आज अचानक हटाया मेज पर से कोई
कागज और मिल गई नीचे
दबी एक नोटबुक
तो याद आया, नीचे दबी चीजों का भी
एक संसार है
सतह पर दिख रही चीजों के समांतर
जिसे भूलना हमारी कई भूलों में से एक है
मगर जो याद रखता है हमें सतत।
कच्चा-पक्का
देखो एक बार फिर
दोबारा देखने से सच की पक्की होती है परख
मगर मैंने नहीं देखा कभी
दोबारा तकते हुए तुम्हें इस तरफ
चूंकि जिस तरफ चल रहे होते हो तुम
शायद वही एक पक्का रास्ता है तुम्हारे लिए
मगर याद रखो, चलने से धारणाएं
पक्की होती हैं।