भाग्य के रहस्य

भाग्य एक बहुचर्चित और अति दिलचस्प विषय है, पर इसके बाबत बहुत ही कम ज्ञात है। ‘भाग्य’ शब्द, उसकी कार्यप्रणाली तथा मनुष्य-जीवन पर पड़ने वाले उसके प्रभाव के बाबत अनगिनत सवाल खड़े होते हैं। लेकिन भाग्य वाकई में है क्या? क्या भाग्य का वास्तव में कोई अस्तित्व है? क्या भाग्य लिखा हुआ है? क्या भाग्य संयोग मात्र है या फिर चुनाव मात्र? क्या हमें भाग्य का इंतजार करना चाहिए या फिर उसके पीछे दौड़ना चाहिए? ऐसे ही कई सवालों के जवाब दीप त्रिवेदी की इस किताब ‘भाग्य के रहस्य’ में देखने को मिलते हैं। त्रिवेदी इस किताब में न सिर्फ भाग्य के रहस्यों और हमारे अस्तित्व को चलाने वाले भाग्य के नियमों पर से परदा उठाते हैं, बल्कि वे हमें अपना भाग्य खुद रचने की कला भी सिखाते हैं। मनुष्य जीवन की गहरी-से-गहरी सायकोलॉजी पर दीप त्रिवेदी की पकड़ का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि मनुष्य के जीवन, सायकोलॉजी, आत्मा, प्रकृति के नियम, भाग्य तथा अन्य विषयों पर सर्वाधिक कोटेशन लिखने का रेकार्ड उन्हीं के नाम पर दर्ज है। यदि सफलता के शिखर छूना और आनंद और मस्ती से जीना आपके जीवन का उद्देश्य है, परंतु उसके लिए आपको कोई उचित मार्ग नहीं दिख रहा तो यह किताब आपके लिए है।

भाग्य के रहस्य: दीप त्रिवेदी, आत्मन इनोवेशन्स, 7वीं मंजिल, तनिश्क शोरूम के ऊपर, न्यू लिंक रोड, अंधेरी (वेस्ट), मुंबई; 245 रुपए।

मीडिया और बाजार

आज शासन व्यवस्था के बाद देश को सर्वाधिक प्रभावित करने वाली शक्ति के माध्यम हैं, ‘मीडिया और बाजार’। इनमें भी बाजार का प्रभाव पिछले कुछ दशकों में इस प्रकार से बढ़ा है कि प्रत्येक अनुशासन इससे प्रभावित होने को मजबूर है। बेहद सचेत और जागरूक मीडियाकर्मी वर्तिका नंदा उन गिने-चुने लोगों में एक हैं, जो भारत में पहले निजी चैनल की शुरुआत में ही उससे जुड़ गए थे। तबसे अब तक स्थिति यह हो आई है कि एक तरफ मीडिया है और दूसरी तरफ बाजार। पिछले कुछ सालों में मीडिया पर बाजार के दबाव के चलते सूचनाओं के स्वरूप को लेकर काफी चर्चा होती रही है। ज्यादातर लोग मीडिया को बाजार के दबाव से मुक्त करने पर जोर देते रहे हैं, पर यह एक जटिल बन गया काम है। इस एक पुस्तक में ही अपने समय के सक्रिय और महत्त्वपूर्ण पत्रकारों और मीडियाकर्मियों में शामिल दिलीप मंडल, श्वेता सिंह, सारिका कालरा, जयसिंप, रेखा सेठी, जयदीप कर्णिक, प्रियभांशु रंजन, बागेश्री चक्रधर और प्रियदर्शन ने मीडिया और बाजार के अनेक पक्षों पर अपने गंभीर आलेख प्रस्तुत किए हैं। संपादक वर्तिका नंदा का कौशल यही है कि उन्होंने विषय को हर कोण से समझने-समझाने का प्रयास किया है। इस दृष्टि से यह पुस्तक बहुत ही महत्त्वपूर्ण बन गई है।
मीडिया और बाजार : सामयिक बुक्स, 3320-21, जटवाड़ा, दरियागंज, एनएस मार्ग, नई दिल्ली; 400 रुपए।