पूरी दुनिया में पिछले कुछ सालों में धूम्रपान और उससे पीड़ित लोगों की संख्या में लगातार वृद्धि हुई है। इस लत ने हजारों लोगों को विभिन्न बीमारियों के साथ अकाल मौत के मुंह में धकेल दिया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने तंबाकू और धूम्रपान के दुष्परिणामों को देखते हुए हर साल 31 मई को धूम्रपान निषेध दिवस मनाने का निर्णय किया गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस दिन धूम्रपान से होने वाली हानियों और खतरों से विश्व जनमत को अवगत करा कर इसके उत्पाद और सेवन को कम करने की दिशा में आधारभूत कार्यवाही करने का प्रयास किया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया के करीब सवा सौ देशों में तंबाकू पैदा होता है और हर साल करीब साढ़े पांच खरब सिगरेट का उत्पादन होता है। एक अरब से ज्यादा लोग इसका सेवन करते है। धूम्रपान का घातक प्रभाव खांसी, गले में जलन, सांस लेने में परेशानी और कपड़ों की दुर्गंध के साथ आरंभ होता है। इसकी वजह से त्वचा पर धब्बे और दांतों का रंग खराब (पीलापन) हो जाता है। धूम्रपान और तंबाकू के कारण दुनिया में प्रतिवर्ष लगभग चालीस लाख से अधिक लोग मौत का शिकार हो जाते हैं। भारत में भी यह संख्या लगभग आठ लाख से अधिक है। अनुमान के मुताबिक नब्बे प्रतिशत फेफड़े के कैंसर, तीस प्रतिशत अन्य प्रकार के कैंसर, अस्सी प्रतिशत ब्रोंकाइटिस, इन्फिसिमा और बीस से पच्चीस प्रतिशत घातक हृदय रोगों का कारण धूम्रपान है। एक रिपोर्ट के अनुसार बीसवीं सदी के अंत तक सिगरेट पीने के कारण छह करोड़ बीस लाख लोग जान से हाथ धो बैठे हैं। विकसित देशों में हर छठी मौत सिगरेट के कारण होती है। महिलाओं में सिगरेट पीने के बढ़ते चलन के कारण यह आंकड़ा और बढ़ सकता है। पुरुषों की हर पांच मौतों में से एक और महिलाओं की हर बीस मौतों में से एक मौत धूम्रपान और तंबाकू के अन्य पदार्थों के कारण होती है।

तंबाकू के आगमन से पहले, मध्य पूर्व में भांग का चलन आम था और यह एक सामान्य सामाजिक गतिविधि थी, जो एक पानी के पाइप के इर्द-गिर्द केंद्रित थी, जिसे हुक्का कहते थे। तंबाकू की शुरूआत के बाद विशेष रूप से, धूम्रपान, मुस्लिम समाज और संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण अंग बन गया और यह कई महत्त्वपूर्ण रस्मों जैसे शादियों, जनाजे के साथ जुड़ गया। धूम्रपान से होने वाले नुकसान पर सबसे पहले 1930 में संगठित रूप से चर्चा हुई, मगर कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आया। इस विषय पर निरंतर चर्चा होती रहती है, फिर भी संपूर्ण विश्व के आंकड़ों को देखें तो धूम्रपान से मरने वालों की संख्या में निरंतर वृद्धि हो रही है। एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया में हर साल पचास अरब रुपए धूम्रपान पर खर्च होते हैं। सर्वेक्षण में यह भी कहा गया कि अगर यही स्थिति रही तो 2020 तक धूम्रपान के कारण मरने वालों की संख्या एक करोड़ सालाना हो जाएगी।

धूम्रपान एक ऐसी बुराई है, जो व्यक्ति को समय से पहले ही मृत्यु के द्वार तक ले जाती है। तंबाकू सेवन केवल शरीर के लिए हानिकारक नहीं है, बल्कि यह व्यक्ति की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को भी कमजोर बनाता है। कई बार इसकी वजह से लोगों का घर-परिवार तबाह हो जाता है। तंबाकू के सेवन से मुख कैंसर जैसी खतरनाक बीमारी होती है। इससे फेफड़े और गुर्दे की भी गंभीर बीमारियां होती हंै। इसके अलावा अस्थमा, श्वास की नली में अवरोध, तपेदिक और निमोनिया भी होता है। हर प्रकार का धूम्रपान नब्बे प्रतिशत से अधिक फेफड़े के कैंसर, ब्रैन हैमरेज और पक्षाघात का महत्त्वपूर्ण कारण है। लंबे समय तक सिगरेट सेवन के दूसरे दुष्परिणाम मुंह, गर्भाशय, गुर्दे और पाचक ग्रंथि के कैंसर हैं।
विभिन्न शोधों से जो परिणाम सामने आए हैं वे इस बात की पुष्टि करते हैं कि धूम्रपान, रक्त संचार की व्यवस्था पर हानिकारक प्रभाव डालता है। धूम्रपान का सेवन और न चाहते हुए भी उसके धुएं का सामना, हृदय और मस्तिष्क की बीमारियों का महत्त्वपूर्ण कारण है। इन अध्ययनों में पेश किए गए आंकड़े इस बात के सूचक हैं कि कम से कम सिगरेट का प्रयोग भी जैसे एक दिन में पांच सिगरेट या कभी-कभी सिगरेट का सेवन या धूम्रपान के धुएं से सीधे सामना न होना भी हृदय की बीमारियों से ग्रस्त होने के लिए पर्याप्त है। धूम्रपान के धुएं में मौजूद आक्सीडेशन करने वाले निकोटीन, कार्बन मोनो आक्साइड जैसे पदार्थ हृदय, ग्रंथियों और धमनियों से संबंधित रोगों के कारण हैं। धूम्रपान का सेवन इस बात का कारण बनता है कि शरीर पर इन्सूलीन का प्रभाव नहीं होता और इससे ग्रंथियों और गुर्दे को क्षति पहुंच सकती है।

धूम्रपान से केवल लोगों के स्वास्थ्य को खतरा नहीं है, बल्कि इससे आर्थिक क्षति भी पहुंचती है विशेषकर यह निर्धन लोगों की निर्धनता में वृद्धि का कारण है। बीस सिगरेट या पंद्रह बीड़ी पीने वाला और करीब पांच ग्राम सुरती, खैनी आदि के रूप में तंबाकू प्रयोग करने वाला व्यक्ति अपनी आयु को दस वर्ष कम कर देता है। सिगरेट, बीड़ी पीने से मृत्यु संख्या न पीने वालों की अपेक्षा पचास से साठ वर्ष की आयु वाले व्यक्तियों में पैंसठ प्रतिशत अधिक होती है। यही संख्या साठ से सत्तर वर्ष की आयु में बढ़ कर 102 प्रतिशत हो जाती है।
भारत में किए गए अनुसंधानों से पता चला है कि गालों में होने वाले कैंसर का प्रधान कारण खैनी या जीभ के नीचे रखने, चबाने वाला तंबाकू है। इसी प्रकार ऊपरी भाग में, जीभ में और पीठ में होने वाला कैंसर बीड़ी पीने के कारण होता है। सिगरेट गले के निचले भाग में कैंसर करता है और अंतड़ियों के कैंसर की भी संभावना पैदा कर देता है। अगर हमें स्वस्थ और खुशहाल जिंदगी जीनी है, तो हमें धूम्रपान और तंबाकू का प्रयोग हर हाल में छोड़ना ही होगा। ऐसा करना कोई मुश्किल काम नहीं है। तंबाकू का प्रयोग दृढ़ निश्चय करके ही छोड़ा जा सकता है। धूम्रपान के खतरे को देखते हुए सरकार को भी इसे प्रतिबंधित कर देना चाहिए, ताकि न रहेगा बांस और न बजेगी बांसुरी। ०