अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फीफा रैंकिंग में सुधार, देश की पेशेवर फुटबाल प्रतियोगिता आई लीग में एक छोटे से राज्य मिजोरम की टीम का नई बुलंदियों को छूना, मेजबान होने के नाते इस साल अक्तूबर में होने जा रहे फीफा अंडर-17 विश्व कप में पहली बार भारतीय टीम को खेलने का अवसर मिलना। क्या ये सब संकेत भारतीय फुटबाल के चमकदार दिनों की वापसी के हैं? क्या इससे भारतीय फुटबाल की तस्वीर बदलेगी? क्या इससे खेल के प्रति उभरती प्रतिभाओं का रुझान बढ़ेगा? ऐसे कई सवाल हैं जो उठ रहे हैं। इन सब सवालों के बीच सबसे ज्यादा सुकूनदेह बात है कि मिजोरम की टीम आइजल एफसी का आई लीग चैंपियन बनना। देश की प्रीमियर लीग में प्रवेश के दूसरे साल ही खिताब जीत लेना किसी चमत्कार से कम नहीं है। बड़े बजट और बड़े सितारों वाली टीमें बेंग्लुरु, एफसीए ,मोहन बागान और ईस्ट बंगाल जैसी टीमों के रहते इस सफलता को अंजाम देना निश्चित ही काबिले-तारीफ है। कामयाबी के इस सफर में कोलकाता की दिग्गज टीमों- मोहन बागान और ईस्ट बंगाल को हराना भी बड़ी उपलब्धि है।

मिजोरम की फुटबाल के लिए यह ऐतिहासिक पल है। इस जीत का महत्त्व इसलिए भी ज्यादा है क्योंकि इस क्षेत्र से आइजल एफसी पहली ऐसी टीम बनी है जिसने आई लीग खिताब जीता है। इस पल को यादगार बनाने में स्थानीय खिलाड़ियों के अलावा बाहरी राज्यों के और विदेशी खिलाड़ियों की भूमिका भी अहम रही। पर इससे सीमित खेल सुविधाओं वाले राज्य की टीम के खिलाड़ियों की मेहनत, समर्पण और सफलता को कमतर नहीं आंका जा सकता। कोच खालिद जमील की छत्रछाया में खिलाड़ियों ने सकारात्मक खेल और टीम भावना की अनूठी मिसाल पेश की है। मिजोरम में जहां गांवों और जिला स्तर पर खेल के प्रति दीवानगी है, वहीं खिलाड़ियों का जज्बा और प्रशंसकों का समर्थन भी गजब का रहा।सबसे दिलचस्प बात यह है कि आइजल एफसी में राज्य के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी नहीं खेल रहे थे। माना जाए तो दूसरी पंक्ति के खिलाड़ी भी नहीं थे। इस राज्य के 54 सितारा फुटबालर तो देश के विभिन्न आई लीग क्लबों में अपने कौशल का रंग जमा रहे थे। इसलिए आइजल एफसी के लिए इस जीत के मायने ज्यादा हैं। यह कहना ज्यादा उपयुक्त है कि बिना सुपरस्टार खिलाड़ियों के आइजल एफसी ने यह ऐतिहासिक सफर तय किया है। इत्तेफाक देखिए कि जिस टीम को पिछले साल रेलीगेट होना पड़ा था, वह आज चैंपियन है। रेलीगेट किए जाने को कुछ ने अनुचित भी माना था। आइजल की टीम डीसके शिवाजियंस से अंक तालिका में ऊपर रही थी लेकिन अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन के साथ जो सहमति बनी थी, उससे कॉरपोरेट टीम को रेलीगेट नहीं किया जा सकता था। इसलिए मिजोरम के इस क्लब पर कहर बरपा।

आइजल एफसी के लिए गोवा के तीन क्लबों- सलगांवकर, डेंपो स्पोर्ट्स क्लब और स्पोर्टिंग क्लब, डि गोवा का लीग से नाम वापस लेना वरदान बन गया। इससे उन्हें प्रीमियर लीग में खेलने का मौका मिला और नतीजा सभी के सामने है। गोवा के क्लब अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन के आई लीग के आईएसएल टूर्नामेंटों में विलय को लेकर खफा थे। इसलिए उन्होंने विरोधस्वरूप यह कदम उठाया।खैर, आइजल एफसी की इस जीत से मिजोरम की फुटबाल और ताकतवर होगी। इससे पूरे उत्तरपूर्वी राज्यों को प्रेरणा मिलेगी। यों तो मणिपुर, मेघालय, नगालैंड और असम की टीमें सुब्रत कप फुटबाल टूर्नामेंट और जूनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप में धमाका करती रही हैं लेकिन इस जीत का असर गहरा होगा। जूनियर और सीनियर स्तर के बीच जो खाई बनी हुई है, उसे पाटने में इससे मदद मिलेगी। 2014 में मिजोरम की टीम ने राष्ट्रीय फुटबाल की प्रतिष्ठा की प्रतीक संतोष ट्राफी को जीता था। फिर द्वितीय डिवीजन आई लीग की चैंपियन बनकर आइजल एफसी ने 2015 में प्रीमियर लीग में जगह बनाई। खराब प्रदर्शन से टीम का लुढ़काव हुआ और इस सीजन के लिए खेलने का मौका मिलना, विचित्र घटनाक्रम का हिस्सा बन गया। मिजोरम का जूनियर राष्ट्रीय चैंपियन बनना और आइजल एफसी का फेडरेशन कप फाइनल खेलना यह दर्शाता है कि मिजोरम को केवल खिलाड़ियों की नर्सरी मानना गलत होगा, यह राज्य फुटबाल की ताकत बन गया है।

जो टीम ताकतवर बन जाती है, उसके लिए चुनौतियां भी बढ़ जाती हैं। अब मिजोरम को अपने खिलाड़ियों को संभाले रखना बड़ी चुनौती होगी। इस सफलता से राष्ट्रीय स्तर पर उसके खिलाड़ियों की मांग बढ़ेगी। बड़े क्लबों से मोटी रकम का प्रलोभन खिलाड़ियों को दूसरे क्लबों से खेलने को मजबूर कर सकता है। मिजोरम से बाहर के खिलाड़ियों में जायेश राणा, आशुतोष मेहता, कामो स्टीफन बायी, महमूद अल आमना, एलफ्रेड जारयान और किंग्सले जैसे खिलाड़ी थे। कोच खालिद जमील को टीम बनाने के लिए पूरी छूट मिली, क्लब का हस्तक्षेप नहीं रहा और नतीजन सफलता हाथ लगी। आखिरी मैच में अंत तक टीमों के समर्थकों की धड़कनें बढ़ी रहीं। चैंयिपन का फैसला अंतिम दो मैचों मोहन बागान बनाम चेन्नई एफसी और आइजल एफसी बनाम शिलांग लाजोंग के बीच मुकाबले के परिणाम पर निर्भर था।देरी से मिले बराबरी के गोल ने आइजल एफसी का खिताबी सपना साकार किया। पर अफसोस की बात है कि आई लीग चैंपियन बनने के बाद भी यह तय नहीं कि आइजल की टीम अगले साल नई फुटबाल लीग का हिस्सा होगी भी या नहीं। आई लीग और इंडियन साकर लीग (आईएसएल) के विलय का जो खाका बन रहा है, उसमें आइजल एफसी को खपाने पर कोई चर्चा नहीं हुई। हां, मोहन बागान और ईस्ट बंगाल की टीमें इसका हिस्सा बन सकती हैं बशर्ते वह पंद्रह करोड़ की फीस दे। कोलकाता के इन दो दिग्गजों ने इस फीस को छोड़ देने के लिए अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन के पदाधिकारियों से मिलने का फैसला किया है। आइजल एफसी क्लब आर्थिक रूप से मजबूत नहीं है। ऐसे में उसे नई लीग में स्थान नहीं देना दुर्भाग्यपूर्ण होगा। वैसे यह कितना हास्यास्पद होगा कि आइजल की टीम एएफसी चैंपियंस लीग क्वालीफायर तो खेलेगी पर अपनी ही घरेलू लीग में उसके खेलने पर सवालिया निशान है।

आई लीग की सफलता के बावजूद इस तरह की अनिश्चितता होने से आइजल एफसी के मालिक राबर्ट रायटे निराश हंै। उन्होंने फुटबाल विकास की खातिर युवा खिलाड़ियों को लेकर क्लब बनाया है। इस क्लब से मुनाफा कमाना भी उनका मकसद नहीं है। रायटे ने पहल कर दी है। हो सकता है कि इस सफलता से उनके प्रायोजकों की कतार लग जाए। वैसे खेल में पैसा आता है तो खिलाड़ियों का भी भला होता है। मिजोरम के खिलाड़ियों ने पिछले चार वर्षों में अपने प्रदर्शन से साबित कर दिया है कि खेल अब पश्चिम बंगाल, गोवा, केरल, पंजाब या कर्नाटक की बपौती नहीं है। हर स्तर पर उसके खिलाड़ी मुकाबले के लिए तैयार हैं।राष्ट्रीय स्तर पर इस बदलाव के साथ ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी भारतीय छवि सुधरी है। कुछ मैचों में अच्छे प्रदर्शन के बूते भारतीय टीम रैंकिंग में 101वें स्थान पर पहुंच गई है। एक समय टीम 170वीं रैंकिंग के करीब फिसल गई थी। फीफा रैंकिंग में सुधार टीम की प्रतिष्ठा के साथ जुड़ी होती है। जीत और हार के साथ इसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। अखिल भारतीय फुटबाल फेडरेशन अपनी पीठ थपथपा सकता है क्योंकि करीब दो दशक में यह टीम की सर्वश्रेष्ठ रैंकिंग है। पर रैंकिंग में सुधार का यह कतई मतलब नहीं कि इससे फुटबाल के सुनहरे दिन लौटेंगे ही। 1951 में जब हमने एशियाई खेलों की मेजबानी की थी तो मेवालाल के गोल ने भारत को चैंपियन बनाया था। पचास के उस शानदार दौर में भारतीय टीम ओलंपिक में भी खेली और 1962 के जकार्ता एशियाई खेलों में फुटबाल का ताज फिर भारतीय टीम को मिला। लेकिन तब एशिया के चैंपियन भारत की स्थिति अब इतनी दयनीय हो गई है कि हम एशिया में टीम शीर्ष दस टीमों में भी नहीं हैं। सार्क देशों के क्षेत्रीय फुटबाल टूर्नामेंट को जीतने में ही हमें संतोष मिलने लगा है। लेकिन इसमें भी गारंटी नहीं। मालदीव, बांग्लादेश और नेपाल जैसी टीमें भी हमें पटखनी देती रहती हैं। ०