बदलाव प्रकृति का नियम भी है और इंसानी जिंदगी और विकास के लिए जरूरी भी। मगर कुछ बदलाव ऐसे भी हैं जो या तो कुछ मजबूरियों के कारण हमारे जीवन में घुसपैठ करके आ गए या फिर हमने आधुनिक जीवन शैली के नाम पर उन्हें अपना लिया। ऐसा ही बदलाव है खानपान संबंधी आदतों का। यह यों तो ऊपरी तौर पर गंभीर मामला नहीं लगता मगर आज के ही कुछ उदाहरण उठा कर देखें या अपने ही जीवन पर गौर करें तो समझ आ जाएगा कि खानपान संबंधी रोजमर्रा की हल्की-फुल्की आदतों ने कई तरह की गंभीर बीमारियों को हमारे जीवन में जगह दी है। कुछ अध्ययन बताते हैं कि बदलते खान पान का प्रभाव हमारी उम्र पर भी पड़ रहा है। लोग समय से पहले बूढ़े हो रहे हैं और अपनी उम्र से ज्यादा बूढ़े दिखने लगे हैं। इसकी वजह है असंतुलित आहार लेना। ज्यादातर लोगों को पता ही नहीं होता कि उन्हें किस तरह का आहार लेना चाहिए। उनके शरीर की प्रकृति क्या है और उनके शरीर को किस पोषक तत्त्व की अधिक जरूरत है। अंधाधुंध कुछ भी, कभी भी खा लेना ऐसा कारण है जो शरीर के लिए धीमे जहर के तौर पर है और धीरे-धीरे बीमारियों का शिकार बना देता है। वहीं बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी के दबाव में भी अक्सर वे पोषक तत्त्व शरीर को नहीं मिल पाते जिनकी जरूरत होती है। ऐसे में कई तरह के दबाव, चिंताओं ने भी कहीं न कहीं हृदय और रक्तचाप संबंधी समस्याओं को बढ़ाया है।
विश्व के सबसे युवा देश भारत में आज बड़ी संख्या में युवक बीमारियों से ग्रस्त हो रहे हैं। कम उम्र में ही वे हृदय संबंधी रोगों, गठिया, दमा जैसी बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। ऊपरी तौर पर देखें तो यह आम बात नजर आती है मगर कई तरह के शोध और विषेशज्ञों की राय के बाद यह निष्कर्ष निकाला गया है कि आज की भागम-भाग भरी जीवन शैली और इसमें असंतुलित खानपान एक बड़ी वजह है। इन गंभीर बीमारियों के पनपने की।इसके अलावा भी अगर गौर करें तो त्वचा संबंधी कई समस्याओं के लिए भी किसी न किसी रूप में हमारा असंतुलित खानपान ही जिम्मेदार है। वहीं फास्ट फूड का प्रतिदिन सेवन युवाओं में मोटापा, ईटिंग डिसआॅर्डर जैसे रोगों की बढ़ोतरी का कारण भी बन रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट इस ओर ध्यान आकर्षित करती है कि अधिकतर फास्ट फूड और सॉफ्ट ड्रिंक का सेवन युवाओं में हृदयरोग, हड्डियों से संबंधित रोग, मधमेह और मोटापे के अहम कारण बन रहे हैं। अक्सर समय बचा लेने और पेट भरने की जल्दबाजी में इस आहार को आदत में शामिल कर लिया जाता है। इससे समय तो बच जाता है मगर कई शारीरिक दिक्कतों को हावी होने का मौका भी मिल जाता है।
विशेषज्ञ युवाओं कीबड़ी संख्या में हृदयाघात और हृदय संबंधी बीमारियों से पीड़ित होने की वजह उनकी अनियमित दिनचर्या और मसालेदार भोजन और तला-भुना खाने की आदत को मानते हैं। साथ ही धूम्रपान की आदत इस रोग की भयावहता को और बढ़ा देती है। कुछ शोध बताते हैं कि आज लोगों की जो जीवन शैली है और इसका उनके जीवन पर जो प्रभाव पड़ रहा है उससे अगले करीब एक दशक में भारत की आबादी के लगभग बीस फीसद युवा हृदय संबंधी बीमारियों से ग्रस्त होंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के अनुसार 2020 तक भारत में सबसे अधिक मृत्यु हृदय संबंधी रोगों के कारण होंगी। ऐसा नहीं है कि सिर्फ फास्ट फूड या बाहरी खानपान से स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों को बल मिल रहा है बल्कि अक्सर हमारे खाने का तरीका और समय भी स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं। यही कारण है कि अक्सर घर में बना पारंपरिक भोजन भी पेट संबंधी समस्याओं को जन्म देता है। घर में बने आहार में शक्कर और वसा की अधिक मात्रा भोजन को हानिकारक बनाती है। बदलती जीवन शैली ने आहार में बड़ा परिवर्तन किया है। इससे भले ही कुछ ऊपरी फायदे दिखाई दे रहे हों मगर सच यह है कि खानपान की इन आदतों ने कई स्तरों पर स्वास्थ्य को प्रभावित किया है। आज युवाओं में तेजी से अस्थमा यानी दमा रोग जड़ें फैला रहा है। चिकित्सक इसकी बड़ी वजह आहार में पोषक तत्त्वों की कमी और तले-भुने भोजन, स्नैक्स और चिकनाईयुक्त भोजन को बता रहे हैं। इस तरह का आहार स्वास्थ्य के लिए बेहतर साबित होने की बजाय उस पर विपरीत प्रभाव डालता है। इसके अलावा शहरी क्षेत्रों में वाहन प्रदूषण और ग्रामीण क्षेत्रों में बड़ी-बड़ी मिल, कारखाने सांस संबंधी रोगों को बढ़ावा दे रहे हैं। अगर महिलाओं की समस्याओं पर भी गौर करें तो कहीं न कहीं इनके बढ़ने का कारण भी आहार संबंधी त्रुटियां ही हैं।
खानपान के बदलते तरीकों और बदलती जीवनशैली का नतीजा है कि आज ज्यादातर महिलाएं गर्भावस्था के दौरान मुश्किल हालात से गुजरती हैं। खराब, असंतुलित आहार और जीवनशैली में बदलाव का ही परिणाम है कि आज करीब पंद्रह फीसद से अधिक महिलाएं बांझपन की समस्या से ग्रस्त हैं। हालांकि इसकी वजह यह भी है कि अब महिलाएं नौकरीपेशा हैं और देर से शादी करने का विकल्प चुन रही हैं। वहीं कुछ स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतों की वजह से भी उन्हें संतानसुख प्राप्त नहीं होता। मगर इस बीच इस समस्या को भी दरकिनार नहीं किया जा सकता। आधुनिक जीवन शैली ने स्वास्थ्य के साथ ही प्रजनन क्षमता को भी प्रभावित किया है। इससे पुरुषों में प्रजनन क्षमता घटने लगी है। शोध बताते हैं कि नशे की आदत के साथ-साथ असंतुलित खानपान ने पुरुषों में इस समस्या को बढ़ाया है। वहीं आज पुरुषों में गंजे होने और महिलाओं में बाल गिरना भी कहीं न कहीं आहार संबंधी आदतों से जुड़ा हुआ है। अक्सर किसी पोषक तत्त्व को किसी आहार के माध्यम से अधिक सेवन कर लेना और कभी किसी पोषक तत्त्व की कमी रह जाना बालों के गिरने का बड़ा कारण है। प्रोटीन, विटामिन और खनिज पोषक तत्त्वों के इसी असंतुलन से गंजापन का खतरा बढ़ता है।
वहीं खानपान में लापरवाही व विटामिन डी और कैल्शियम की कमी व आज के हमारे आहार में इनकी कमी से हड्डी संबंधी दिक्कतों में इजाफा हुआ है। लंबे समय तक आहार में प्रोटीन, कैल्शियम, फास्फोरस, विटामिन डी की कमी से इन रोगों की आशंका कई गुना बढ़ गई है। आज अवसाद भी एक समस्या बनकर उभर रहा है। खासकर, शहरी क्षेत्रों में इसे बदलती जीवन शैली का नतीजा माना जा रहा है।पहले किसी भी घर में सुबह नाश्ता रोटी, पराठा से होता था, लेकिन आज शहरों से लेकर ग्रामीण परिवारों तक में सुबह में बे्रड, बिस्कुट, मैगी, जैम आदि का चलन बढ़ा है। इस तरह के खाद्य पदार्थों से मिलने वाले पोषक तत्त्वों में कमी हुई है। वहीं आहार के प्रति लापरवाही ने हालात इतने भयावह कर दिए हैं कि युवाओं पर एक साथ कई बीमारियों का खतरा मंडरा रहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की ओर से कई ऐसी रिपोर्ट जारी की गई हैं जिनमें स्पष्ट तौर पर भारत में बढ़ते रक्तचाप के मामलों और मधुमेह जैसे रोगों की ओर ध्यान दिलाया गया है और यहां तक कहा गया है कि अगर हालात यही रहे तो आने वाले वर्षों में भारत में यह रोग महामारी का रूप ले लेंगे।
इसलिए जरूरी है कि कम से कम दिन में तीन बार भोजन करने की पुरानी परंपरा को तरजीह दी जाए। सादा नाश्ता और आहार हो और जल्दी सोना और जल्दी उठना दिनचर्या में शामिल हो। इसके अलावा आज खासकर शहरों में लड़कियों का डायटिंग पर रहने का जो चलन है उससे भी स्वास्थ्य को हानि पहुंचती है। मोटापे की समस्या अक्सर फास्ट फूड या असंतुलित भोजन से बढ़ती है इसलिए इसओर ध्यान देना चाहिए। भारत में आज इटैलियन, मैक्सिकन, थाई और चाइनीज फूड का चलन बढ़ा है। लोग बिना यह समझे कि यह उनके शरीर की प्रकृति के मुताबिक है भी या नहीं, इनको खा रहे हैं। वहीं वह यह भी जानना जरूरी नहीं समझते कि जो विदेशी आहार उन्हें परोसा जा रहा है उसमें पोषक तत्त्व हैं भी या नहीं और इनको बनाने में किस तरह की तकनीक अपनाई गई है। कोल्ड ड्रिंक के मामले में अक्सर चौंकाने वाले आकड़े सामने आते ही रहते हैं कि इनमें मानक से अधिक कुछ तत्त्वों का इस्तेमाल किया जा रहा है जो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। इसके बावजूद लोग नजरअंदाज करके इनको बेखौफ पीते हैं। हाल में कुछ शोध में यह भी बताया गया कि प्लास्टिक की बोतल में देर तक रखा या धूप से गरम हुआ पानी जहरीला हो जाता है और प्लास्टिक के कप में चाय पीना कैंसर का कारण बन सकता है। कुछ भारतीय पकवान भी ज्यादातर तले और तेज मसालों से युक्त होते हैं।
इनमें बेसन से बने पकौड़े, बे्रड पकौड़े और समोसा शामिल हंै। इनके माध्यम से शरीर में न सिर्फ जरूरत से ज्यादा मिर्च-मसाले पहुंचते हैं बल्कि नमक भी अधिक मात्रा में पहुंचकर शरीर को कई तरह से नुकसान पहुंचाता है। नमक यों तो स्वास्थ्य और पाचन के लिए जरूरी है, लेकिन जरूरत से ज्यादा शरीर में पहुंचने से हृदय रोग का खतरा बढ़ता है। अत्यधिक नमक से गुरदे में पथरी होने की आशंका भी रहती है। आज बड़े-बड़े कपों में चाय पीने का चलन बढ़ गया है। अक्सर थकान में चाय को चुस्ती-फुर्ती लाने के चमत्कारी पेय के तौर पर देखा जाता है। सुबह खाली पेट, दिन में तली चीजों के साथ बार-बार चाय शरीर में शर्करा और टैनिन, कैफीन जैसे हानिकारक पदार्थ भी पेट में चले जाते हैं। कैफीन का प्रभाव दिल की धड़कन पर भी पड़ता है। इससे वह तेज हो जाती है। नतीजा हृदय संबंधी समस्याओं का बढ़ना। वहीं भोजन को चबाकर न खाना, रात के खाने के बाद एक दम लेट जाना ऐसे कारण हैं जिनसे भोजन पेट में देर से पचता है या अपचा रह जाता है।
इससे पहले तो पेट संबंधी समस्याएं जैसे गैस, बदहजमी, जलन आदि होती है और जब यही दिनचर्या में शामिल हो जाता है तो धीरे-धीरे कई तरह की बीमारियों को बढ़ावा देने लगता है। रोगों के बढ़ने का बड़ा कारण पानी कम पीना या फिर भोजन के एकदम बाद में ज्यादा पानी पीना भी है। आजकल युवा जिस तरह का आहार लेना पसंद कर रहे हैं, उससे शरीर में खून की कमी हो रही है। नतीजा यह है कि आज गर्भावस्था के दौरान खून की कमी से महिलाओं को कई बीमारियां हो रही हैं। यहां तक कि उनकी मृत्यु का कारण भी यही बन रहा है। दरअसल, आधुनिक जीवन शैली में एक तरफ खानपान का जो नया रिवाज-सा चल गया है कि कभी भी, कुछ भी खा लिया, उससे भले ही पेट भर रहा हो, लेकिन इससे रक्ताल्पता जैसी बीमारी बढ़ रही है।हमारे आहार से जरूरी पोषक तत्त्व गायब हुए हैं। अमेरिका जैसे विकसित देशों के साथ-साथ भारत में भी मोटापा एक बीमारी का रूप लेता जा रहा है और यहां जीवनशैली से जुड़ी बीमारियां तेजी से फैल रही हैं। वहीं दूसरी ओर शहरी बच्चों के मुकाबले ग्रामीण इलाकों के बच्चों में पोषक तत्त्वों की कमी से कुपोषण और इसकी वजह से बीमारियों में इजाफा हो रहा है। शहरी जीवनशैली में रेड मीट और प्रसंस्कृत पदार्थ और नशे का अत्यधिक सेवन आम बात हो गई है। यह स्वास्थ्य के लिए हानिकारक साबित हो रहा है। पश्चिमी देशों की तरह भारतीय युवाओं की जीवनशैली जैसे-धूम्रपान का आदी बनना भारतीय जलवायु और वातावरण के अनुकूल नहीं है।
मनलुभावन विज्ञापनों में जिस तरह से बाहरी उत्पादों, फास्ट फूड की तरफ किशोर उम्र से ही युवाओं को आकर्षित कर इनका आदी बनाया जा रहा है। यह भी एक बड़ा कारण है कि समय से पहले बच्चे बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं और युवा गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं। इसमें कोई शक नहीं कि इससे बाजार तो बढ़ रहा है, लेकिन युवाओं के स्वास्थ्य की लगातार अनदेखी हो रही है। वहीं मनमोहक पैकेज में दिनों तक रखी व मिलावटी खाद्य पदार्थों ने भी स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालना शुरू कर दिया है। यह बात अलग है कि लोग इसे इतनी गंभीरता से नहीं लेते, लेकिन कहीं न कहीं यह गंभीर मामला है। इसी गंभीरता को देखते हुए अब दूध में मिलावट करने वालों के लिए भी कड़ी सजा का प्रावधान किया गया है, इसलिए इस ओर संजीदगी से सोचने की जरूरत है। कई बार यह बात सामने आई है कि बाजार में बिकने वाले ज्यादातर पैक खाद्य पदार्थों को बनाने में लापरवाही से काम लिया गया और उनमें कैंसर बढ़ाने वाले रसायन पाए गए हैं। आज बाहरी और पैक्ड फूड लेने का जो चलन बढ़ा है इसके पीछे कुछ मजबूरियां भी है। अपने परिवार से दूर दूसरे राज्यों, शहरों में नौकरी करने वाले लोगों को बाहर कम कीमत में तैयार खाना मिल जाता है। इससे समय और रुपयों दोनों की बचत तो होती है मगर साथ ही स्वास्थ्य के साथ लापरवाही अक्सर गंभीर रूप धारण कर लेती है। वहीं खाने-पीने संबंधी कुछ आदतें भी हैं जो अच्छे-भले आहार को भी स्वास्थ्य के लिए कारगर साबित नहीं होने देतीं। अक्सर हमें यह तो पता होता है कि हमें किन-किन खाद्य पदार्थों से पोषण मिलता है, लेकिन हम यह तय करना जरूरी नहीं समझते कि इनको लेने का सही समय क्या है।