सिक्कों का प्रचलन सभी देशों में है। मगर ऐसे-ऐसे सिक्के प्रचलन में रहे हैं, जो किसी अजूबे से कम नहीं। नेपाल में 1740 में 1/4 यव के चांदी के सिक्के चलते थे, जो दुनिया में सबसे हल्के सिक्के थे, जिनका वजन मात्र 0.002 ग्राम था। इसके विपरीत स्वीडन में 1644 में 10 डालेर के तांबे की स्लेट पर ढले सिक्के सबसे भारी थे, जिनका वजन 19.71 किलोग्राम था। जहां तक भारत का प्रश्न है, सोने का सबसे बड़ा ज्ञात सिक्का 1654 में शाहजहां ने जारी किया था। दो सौ मोहर का व्यास 13.7 सेंटीमीटर था । आधुनिक भारत में टकसाल से जारी किया गया सबसे बड़ा सिक्का 100 रुपए का था जिसका भार 35 ग्राम था और व्यास 44 सेंटीमीटर था। पुराने सिक्कों के लिए काफी ऊंची कीमत चुकाई जाती है। 1804 के अमेरिका के सिक्के के एक सेट की कीमत 10 लाख डॉलर दी गई थी। इसे 1979 में एक व्यापारी ने खरीदा था। सबसे महंगे सिक्के के सेट का मूल्य 31.9 लाख डॉलर है। सोने का सबसे बड़ा सिक्का विएना में जून 2010 में एक नीलामी में लगभग 18 करोड़ रुपए में बिका। 52 सेंटीमीटर व्यास के इस सिक्के का वजन 100 किलोग्राम है। सबसे शुद्ध सोने के सिक्के के रूप में यह गिनीज बुक में दर्ज है। तुर्की के राजा गीजस के इलेक्ट्रम के बने लगभग 670 ईसापूर्व के सिक्के विश्व में सबसे पुराने माने गए हैं। सम्राट अशोक के काल में चलाया गया दुर्लभ सिक्का मिला है, जो दुनिया का पहला सिक्का माना जा रहा है। तांबे के इस सिक्के की खासियत यह है कि इस पर भगवान बुद्ध की योगमुद्रा में प्रतिमा अंकित है, जो अब तक मिले किसी सिक्के पर नहीं है। पुराने सिक्कों का खजाना यों तो निराला है लेकिन जो सिक्का हाल ही में पहचाना गया है, वह बड़ा दुर्लभ है। बुद्ध की ध्यानस्थ मुद्रा के अलावा इस पर उज्जयिनी नगरी का चिह्न भी अंकित है। यह सिक्का उज्जैन में गढ़कालिका क्षेत्र से मिला है। पुराने जमाने के दुर्लभ सिक्कों का संग्रह करने वाली संस्था अश्विनी मुद्रा शोध संस्थान ने काफी अध्ययन के बाद इसकी पहचान की है ।
पुराने समय में गोल या चौकोर सिक्कों का प्रचलन अधिक था लेकिन यह जानकर हैरत हो सकती है कि क्लिप यानी हेयरपिन आकार के लंबे सिक्के भी प्रचलन में थे। दक्षिण बीजापुर राज्य के शासक आदिलशाह ने 1657-72 के मध्य अपने शासनकाल में चलाए ऐसे सिक्के थे। सम्राट विक्रमादित्य के समय में चलने वाली विक्रम मुद्रा भी संस्थान ने खोज निकाली है। इन पर ब्राह्मी लिपि में राजा विक्रम अंकित है। किंवदंती है कि चौसा के युद्ध में हुमायंू जान बचाकर गंगा में कूदा था, तब निजाम किश्ती ने उसकी जान बचाई थी। हुमायूं जब बादशाह बना तब उसने निजाम किश्ती से उसकी इच्छा पूछी, तो उसने एक दिन का बादशाह बनने की इच्छा जाहिर की। हुमायंू ने उसे एक दिन का बादशाह बनाया। इस एक दिन के शासनकाल में निजाम किश्ती ने चमड़े के सिक्के चलाए। ये सिक्के उसी दिन ढाले गए और एक ही दिन चलन में रहे। लेकिन इस घटना से निजाम किश्ती का नाम इतिहास में दर्ज हो गया।
