स्कूटर स्टैंड पर गाड़ी खड़ी करके रोहिणी जैसे ही पीछे की ओर मुड़ी, तो उसकी नजर खुद-ब-खुद एक कोने में बैठी तीन-चार वर्षीय बच्ची पर अटक गई। वह जमीन पर बैठी हुई, एक हाथ से अपने चेहरे पर आए भूरे बेतरतीब बालों की लटों को कान के पीछे ले जाने का विफल प्रयास कर रही थी और दूसरे हाथ की नन्ही हथेली मेले में आने-जाने वालों के आगे फैलाए हुई थी। रोहिणी के कदम भीड़ को चीरते हुए अनायास ही उसकी ओर मुड़ गए और वह उसके सामने जाकर खड़ी हो गई। उस बच्ची ने रोहिणी की तरफ मुंह ऊपर कर के देखा और अपना रटारटाया शब्द तुतलाते हुए बोली- ‘पैछा।’
शांत और ठहरी नदी में अचानक जैसे किसी ने कंकर फेंक दिया हो, वैसी ही हलचल रोहिणी के सूने मन में हुई। वह पंजों के बल बैठ गई, ताकि उस बच्ची के सामने बैठ कर उसकी बात सुन सके, जो लाउडस्पीकरों की कानफोडूÞ आवाजों में सुन सकना बहुत मुश्किल था। उसे इस तरह उकड़ूं बैठा देख कर बच्ची मुस्कुराई।
रोहिणी ने पहली बार उसे गौर से देखा। दूधिया रंग में जैसे किसी ने केसर घोल दिया हो। पर उसका पूरा चेहरा धूल से भरा हुआ था। एक नीली छींटदार फ्रॉक जगह-जगह से फटी हुई थी। वह फ्रॉक की फटी हुई बांह से बार-बार पसीने में लथपथ अपना चेहरा पोंछ रही थी। शायद इसी रगड़ के कारण उसका चेहरा गुलाबी से लाल भभूका हुआ जा रहा था। रोहिणी के समझ में नहीं आया कि वह क्या करे। बच्ची को पैसे देकर बाकी सब लोगो की तरह आगे बढ़ ले या फिर उसकी फीकी मुस्कान के पीछे छिपे आंसुओं की बूंदों को पोंछने की कोशिश करे। रोहिणी विचारों का ताना-बना बुन ही रही थी कि बच्ची तुतलाते हुए बोली- ‘बौत भूत लदी है।’
हूं… वह जैसे नींद से जागी, और उसने खड़े होते हुए उस बच्ची का हाथ पकड़ कर उसे खींच लिया।
‘क्या खाओगी बेटा’, रोहिणी ने बड़े प्यार से उससे पूछा।
बच्ची अचरज से उसका मुंह देखने लगी। उसे शायद विश्वास ही नहीं हो रहा था कि कोई उसे भी उसकी मनपसंद चीज खिला सकता है।
उसने सूखे होंठो पर जीभ फेरते हुए सामने चमकीली और सुनहरी झालरों से सजे पाव-भाजी के ठेले की ओर ऊंगली दिखाई।
रोहिणी ने उसका हाथ पकड़ा और बोली- ‘जल्दी से अपनी चप्पल पहन लो, वरना इस तेज धूप में तुम्हारे पैर जल जाएंगे।’
बच्ची ने सिर झुका कर नीचे कर लिया और दाएं पैर के नाखून से मिट्टी खोदने लगी। थोड़ा रुक कर उसने रोहिणी की ओर देखा तो उसकी पलकें भीगी थीं और आंखें आंसुओं से लबालब थीं।
‘क्या हुआ बेटा?’ रोहिणी जैसे उन दर्द भरी आंखों का सामना नहीं कर पा रही थी।
‘तप्पल नई है मेले पाश…’ कहते हुए दो बूंद आंसू बच्ची के धूल भरे चेहरे पर रास्ता बनाते हुए रोहिणी के हाथ पर गिर पड़े।
रोहिणी सन्न खड़ी रह गई। उसे लगा जैसे दो जलते हुए अंगारे उसकी हथेली को जला रहे हैं और उनकी तपिश में वह पिघलती चली जा रही है।
रोहिणी ने तुरंत उसे गोद में उठा लिया और पर्स से रूमाल निकाल कर उसके आंसू पोंछने लगी।
उस तपन से बाहर आने में जैसे पल भर में ही उसने बरसों का सफर तय कर लिया।
उसने थूक गटकते हुए पुछा- ‘तुम्हारा नाम क्या है?’
‘राधा।’ कहते हुए बच्ची धीरे से शर्माती हुई हंसी, जिससे उसके आगे के दो टूटे हुए दूध के दांत झांक उठे। रोहिणी यह देख कर मुस्करा उठी।
राधा ने फिर ठेलेवाले की ओर इशारा करते हुए अपना नन्हा हाथ आगे बढ़ा दिया। रोहिणी तेज कदमों से पाव-भाजी के ठेले की तरफ चल पड़ी और ठेले वाले से बोली- ‘एक प्लेट पाव-भाजी देना, और मिर्च मत डालना।’
ठेले वाले के हाथ फुर्ती से चलने लगे और गरम तवे पर मक्खन पड़ते ही उसकी महक चारों ओर फैल गई।
राधा बोली- ‘मैं भोत देल पेले बी आई थी, पल इछने मुझे जोल छे धत्ता देकल गिला दिया था।’ यह कहते हुए उसने अपनी बांह ऊपर उठाई।
कोहनी से लेकर बांह तक का हिस्सा बुरी तरह छिला हुआ था और उसमें से झलकता खून अब लाल पपड़ी की शक्ल लेकर वहीं जम गया था।
रोहिणी ने आग्नेय नेत्रों से ठेलेवाले की ओर देखा। वह कुछ बोलती इससे पहले ही ठेलेवाला सकपकाते हुआ बोला- ‘मैडम, ये लड़की एक रुपए में बीस रुपए की पाव-भाजी खाने की जिद कर रही थी।’
रोहिणी का दुख के मारे गला भर आया। उसने सोचा, यह फूल सी बच्ची इस चिलचिलाती दोपहरी में सुबह से भूखी और प्यासी बैठी है।
वह चीख-चीख कर ठेलेवाले से पूछना चाहती थी कि न देते अपनी पाव-भाजी पर बच्ची को धक्का क्यों दिया? पर वह यह सोच कर रुक गई कि कहने से भी क्या होगा? मानवता तो जन्मजात गुण होती है। अगर किसी के सिखाने से आती तो क्या इस बच्ची के मां-बाप ने इस मासूम को इस तपती दोपहरी में अकेले नंगे पांव भेज दिया होता।
वह अपने विचारों में खोई थी कि तभी ठेलेवाले की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी, जो पावभाजी के पैसे मांग रहा था।
उसने राधा की तरफ देखा, जो पावभाजी खाने के बाद बड़े आराम से प्लेट को चारों तरफ से जीभ से चाट रही थी।
रोहिणी का जी भर आया। उसने राधा से पूछा- ‘कहां रहती हो?’
राधा चहकते हुए बोली- ‘चलो, हम तुम्हें अपनी मां से मिलवाएंगे। वैसे तो हम उन्हें यहां भी ला सकते थे, पर वो बहुत बीमार हैं न, इसलिए ज्यादा चल-फिर नहीं सकती।’
रोहिणी ने राधा की ओर भरपूर नजरों से देखा, जो मां के बारे में बताते हुए रुआंसी हो गई थी।’
रोहिणी ने बड़े ही प्यार से उसे गोदी में उठाते हुए कहा- ‘चलो, अब जल्दी से अपने घर का रास्ते बताओ।’
कई घुमावदार गलियां और नाले पार करती हुई राधा एक छोटी-सी झोपड़ी के आगे जाकर रुक गई।
दरवाजे पर ही बुझा हुआ चूल्हा पड़ा था, जिसकी लकड़ियों में कुछ चिनगारियां शेष थीं। दरवाजे के ठीक बाहर बैठा आदमी अंदर देख-देख कर गालियां दे रहा था। तभी अंदर से किसी के चीखने की आवाज आई। रोहिणी लगभग भागते हुए झोपडी के अंदर पहुंची। वहां का दृश्य देख कर उसका कलेजा मुंह को आ गया और डर के मारे उसकी आंखों के आगे अंधेरा छा गया।
एक टूटी खटिया पर एक गर्भवती कृशकाय औरत लेटी हुई थी, जिसका चेहरा बिल्कुल पीला पड़ा हुआ था। आखों के चारों ओर के स्याह घेरों पर बहते आंसू उसका दर्द बयान कर रहे थे। उसके मुंह में शायद कपड़ा ठुंसा हुआ था, जो उसने बिल्कुल अभी ही निकाला था। वहां खड़ी एक बुढ़िया जोर-जोर से उसके पेट पर डंडे मार रही थी। वह औरत खड़ी होने की बहुत कोशिश कर रही थी, पर टूटी खटिया और लगातार उसके पेट पर पड़ते डंडों के कारण वह सिर्फ तड़प कर रह जा रही थी।
मां, मां कहते हुए राधा जोर से चिल्लाती हुई उस औरत के पास पहुंची।
रोहिणी जैसे नींद से जागी। उसने बिजली की गति से जाकर उस बुढ़िया से डंडा छीन लिया, पर तब तक बहुत देर हो चुकी थी, क्योंकि ताजा खून साड़ी और पैरों को भिगोते हुए अब कच्ची जमीन पर गिर रहा था। रोहिणी की रुलाई फूट पड़ी और वह कांपते हाथों से राधा की मां को उठाने के लिए झुकी।
पर तब तक उसने रोहिणी का हाथ पकड़ लिया और सारी ताकत लगा कर धीरे से बोली- ‘लड़कियां ही थीं पहले भी तीनों, तो इन लोगों ने जड़ी-बूटी खिला कर पेट में ही मार दी। इस बार मैंने नहीं खाई तो…’ कहते हुए उस औरत की जोरदार रुलाई फूटी और यह कहते हुए उसने राधा को अपनी छाती से भींच लिया। वह जिंदगी से पूरी ताकत के साथ जद्दोजहद कर रही थी, पर मौत जैसे उसे जबरदस्ती अपने साथ लिए जा रही थी। उसकी उलटी सांसों के साथ ही उसका मुंह एक ओर लुढ़क गया।
राधा की सिसकियों से वह कमरा दहल उठा।
तभी राधा का बाप अंदर आया और बोला- ‘एक बेटा न दे सकी… पता नहीं कैसा पेट है कि हर बार लड़की ही लेकर आती थी।
क्रोध और घृणा से रोहिणी का सर्वांग सुलग उठा। वह उसकी शर्ट खींचते हुए बोली- ‘इसका भी जिम्मेदार तू ही है राच्छस… ’
‘चल भाग यहां से, ज्यादा ज्ञान बघारने की जरूरत नहीं है’, कहते हुए उसने रोहिणी को जोर से धक्का दिया, जिससे उसका सिर एक नुकीले पत्थर पर जा लगा और उसके माथे से खून की धार बह निकली।
‘किसलिए लड़का चाहते हो तुम…’ रोहिणी ने माथे पर बह रहे खून को पोंछते हुए शेरनी की तरह बिफर कर पूछा।
शायद राधा का बाप भी इसका जवाब नहीं जानता था, इसलिए उसने चिंतित होते हुए अपनी मां की तरफ देखा।
राधा की दादी हड़बड़ाते हुए बोली, ‘अरे वंश चलता है लड़कों से… क्या तुझे नहीं पता?’
‘कौन-सा वंश?’ रोहिणी गुस्से से बोली ‘…जब तुम्हीं लोग इस दुनिया में नहीं रहोगे तो वंश चले या न चले, कौन सा फर्क पड़ता है और वैसे भी किसी को आज तक दो पीढ़ी पहले का नाम भी याद रहता है?’
यह सुन कर राधा की दादी निरुत्तर हो गई और इधर-उधर देखने लगी।
‘तुमको पता है कि मौजूदा कानून में लिंग परीक्षण करने वाले डॉक्टर और तुम्हें पांच साल की कैद हो सकती है और पचास हजार रुपए का जुर्माना अलग भरना पड़ेगा।’
यह सुन कर राधा का बाप अपनी मां की ओर देखते हुए बोला- ‘मेरी कोई गलती नहीं हैं, इसी को पोता चाहिए था।’
‘गलती कैसे नहीं है, तुम दोनों ने मिल कर तीन लड़कियां कोख में ही मार डाली, अब तुम दोनों के साथ-साथ वह डॉक्टर भी जेल जाएगा और फिर उसका डॉक्टरी का लाइसेंस रद्द होगा सो अलग…’ कहते हुए रोहिणी ने राधा को गोदी में उठा लिया।
मुफ्त का तमाशा देखने ले लिए आसपास के लोगो का वहां जमघट लग गया। उन्हीं में से किसी ने तब तक पुलिस को बुला लिया था। रोहिणी से दरिंदगी की पूरी बात सुनने के बाद राधा के पिता को तो पुलिस ने धक्का देते हुए जीप में बैठाया और महिला कॉन्स्टेबल राधा की दादी को डंडे से पीटते हुए बोली- ‘जो पैदा भी नहीं हुआ उस लड़के के प्यार में तू इतनी अंधी हो गई कि तूने तीन लड़कियों को मारने के बाद अपनी बहू को भी मार डाला। अब मुझे मार के बता, मैं भी तो लड़की हूं…’
महिला सिपाही के तेवर देख कर वह रहम की भीख मांगने लगी, पर तब तक महिला कॉन्स्टेबल ने उसे धकियाते हुए जीप में ठूंस दिया। जीप तुरंत आगे बढ़ गई और पीछे रह गया धूल भरा गुबार, जिसमें रोहिणी राधा को गोद में मजबूती से पकड़े हुए उसके सुनहरे भविष्य का सपना संजो रही थी।