वो कभी दर्द का चर्चा नहीं होने देता
अपने जख्मों का वो जलसा नहीं होने देता
मेरे आंगन में गिरा देता है पत्ते अक्सर
पेड़ मुझको कभी तन्हा नहीं होने देता
इतना पेचीदा है ये वक्त हमारा यारो!
किसी बच्चे को भी बच्चा नहीं रहने देता
नुक्ताचीं कोई चला आए अगर महफिल में
फिर वो माहौल को अच्छा नहीं होने देता
मेरे अंदर भी है छोटा-सा मुसाफिरखाना
जो किसी शख्स को तन्हा नहीं होने देता
तुम मेरी बेघरी पे बड़ा काम कर गए
कागज का शामियाना हथेली पर धर गए
बोगी में रह गया हूं अकेला मैं दोस्तो!
एक एक करके सारे मुसाफिर उतर गए
गरमी में खोलते थे जो पानी की गुमटियां
तिश्नालबो! वो लोग न जाने किधर गए
यारो, सियासी शहर की इतनी-सी बात है
नकली मुकुट लगा के सभी बन-संवर गए
अक्वेरियम में डाल दीं जब मछलियां तमाम
तो यूं लगा कि सारे समंदर ठहर गए

