सबसे बड़ा सवाल यही था कि क्‍या इतने विवाद के बावजूद उड़ता पंजाब देखने लायक है। मैं कहूंगी बिलकुल।

सिर्फ इसलिए नहीं कि यह एक परफेक्‍ट फिल्‍म है। इसमें कमियां हैं। लेकिन यह उसी तरह की फिल्‍म है, जो कुछ कहना चाहती है। वो भी पूरे हुनर और दृढ विश्‍वास के साथ।

उड़ना एक रूपक है और ड्रग्‍स की हकीकत भी। किसी ने कभी अगर नशा किया हो तो उसे पता है कि इसका मतलब क्‍या है या ऐसी हालत में कैसा महसूस होता है। ‘उड़ता पंजाब’ अपने नाम को सही साबित करती है। जिस तरीके से यह फिल्‍म शुरू होती है, तभी पता चल जाता है कि फिल्‍म सही रास्‍ते पर बढ़ रही है। इसके चरित्र पंजाब से हैं। उनकी (अधिकतर चरित्रों की) भाषा में स्‍थानीय पुट है। सबसे ज्‍यादा अहम बात यह है कि फिल्‍म रहस्‍य की काली पर्तों को खोलने की इच्‍छुक दिखती है और बताना चाहती है कि ड्रग्‍स क्‍या कर सकतेे हैंं। ड्रग्‍स किसी को बर्बाद कर सकते हैं। ड्रग्‍स किसी की जान ले सकते हैं। ड्रग्‍स तो यही चाहते हैं कि आप जिंदा न रहें।

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टॉमी सिंह (शाहिद कपूर) किस्‍मत के भरोसे बना रॉकस्‍टार है, जो ड्रग्‍स का लती है। वह कोक और कॉक में तुकबंदी करता है और नशे के पाउडर में मदहोश युवा इसे पसंद भी करते हैं। उसे भी ऐसी ही जिंदगी पसंद है, जब तक पैसा है, नशे का पाउडर है और चिकनी चुपड़ी बात करने वाले हैं। ऐसे में एक दिन उसकी नजर पस्‍त और थकी हारी बिहारी मजदूर (आलिया भट्ट) पर पड़ती है। आलिया भी नशे के इस खेल का हिस्‍सा बन जाती है। इसके बाद, टॉमी को दुनिया दूसरी तरह से नजर आनी शुरू होती है।

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सरताज सिंह (दिलजीत दोसांज) एक भ्रष्‍ट पुलिसवाला है। वो ड्रग्‍स की तस्‍करी को लेकर आंखें मूंदे रहने में ही खुश है। एक दिन ड्रग्‍स की यह महामारी उसके बेहद करीब उसके घर तक पहुंच जाती है। उधर, नशा उन्‍मूलन केंद्र चलाने वाली डॉ प्रीत साहनी (करीना कपूर खान) भी सरताज के नजरिए में सकारात्‍मक बदलाव लाती है। इसके बाद फिल्‍म की दिशा बिलकुल से बदल जाती है। कोई अंधा शख्‍स भी यह बता सकता है कि यह फिल्‍म ड्रग्‍स का महिमामंडित नहीं करती। आलिया के निभाए चरित्र का शारीरिक और मानसिक पतन डराने वाला है। फिल्‍म में एक नशे की लत से परेशान किशोरी की हालत हमें एक बार फिर बताती है कि देखो, ड्रग्‍स आपके साथ क्‍या कर सकता है। फिल्‍म हमें उस बिंदु तक ले जाती है, जहां हम कहें कि हां तुम सही हो, हम समझ गए। अब आगे बढ़ते हैं।

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समस्‍या प्‍लॉट के आइडिया में है। करीना के स्‍टार पावर कोो इस्‍तेमाल करने के लिए उन्‍हें करीब-करीब जासूस में बदल दिया गया है। जिन दृश्‍यों में वे और उनका पुलिसवाला दोस्‍त अंधेरे से भरे गोदामों में भटकते हैं, बुरे लोगों का पीछा करते हैं, फिल्‍म की सबसे कमजोर कड़ी हैं। यह भी साफ है कि इतनी भलीबुरी चीजें दिखाए जाने के बावजूद पूरी फिल्‍म यह संदेश देती है कि ड्रग्‍स से दूर रहा जाए। पता नहीं, सेंसर बोर्ड किस बात का विरोध कर रहा था?

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हालांकि, शाहिद का किरदार टॉमी जरा से ढीलेपन के साथ परफेक्‍ट नजर आता है। हकलाते हुए, स्‍टेज पर कूदते हुए, उलझे हुए लंबे बाल, हमेशा विक्‍ट्री साइन दिखााते हुए, यह सब कुछ टॉमी के किरदार के साथ जाता है। उनके हिस्‍से में कुछ अच्‍छे संवाद आए हैं। हालांकि, जो दो किरदार इस फिल्‍म को उठाते हैं, वे दिलजीत और आलिया हैं। दिलजीत पंजाब के बड़े स्‍टार हैं और उनहोंने बॉलीवुड में एंट्री मारी है। कहना गलत नहीं होगा कि यह एंट्री बेहद अच्‍छी है। आलिया अपने बिहारी टोन में कुछ लड़खड़ाती हैं, लेकिन जिस तरीके से वे किरदार का दर्द जाहिर करती हैं और खतरनाक जगह में फंसने पर एक लड़की की ताकत को बयां करती हैं, वो देखने लायक है।

डायरेक्‍टर: अभिषेक चौबे
स्‍टार कास्‍ट: शाहिद कपूर, करीना कपूर खान, आलिया भट्ट, दिलजीत दोसांज, सतीश कौशिक