फिल्मः थप्पड़
निर्देशक- अनुभव सिन्हा
कलाकार- तापसी पन्नू,,पवैल गुलाटी, रत्ना पाठक शाह, कुमुद मिश्रा, तन्वी आजमी, मानव कौल, माया रवाल, विद्या ओहलियान, संदीप यादव।
तापसी पन्नू को इस बात का मलाल था कि ‘बदला’ फिल्म का क्रेडिट अमिताभ बच्चन को मिल गया, उनको नहीं। ‘थप्पड़’ के बाद अब ये मलाल नहीं रहेगा। ये पूरी तरह से तापसी की फिल्म है। पति की भूमिका में पवैल गुलाटी बॉलीवुड के बड़े सितारे नहीं है इसका भी लाभ तापसी को ही मिलेगा। बहरहाल ‘थप्पड़’, आज के वक्त ऐसी फिल्म है जो स्त्रियों के प्रति घरेलू हिंसा का मामला सामने लाती हैं और ये कहती है कि पैतियों, अब बहुत हुआ और तुम अपनी पत्नियों पर हाथ नहीं उठा सकते। और हां, अगर हाथ उठाया तो नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहो। गए वो पुराने दिन जब तक किसी बात पर अपनी पत्नियों को पीट देते थे और उसके बाद उसके नाराज होने पर कह देते थे, भूल जाओ, परिवार में तो ये सब होता रहता है। और पत्नियां जो हुआ इसे भूल-भालकर घर संभालने में लग जाती थीं।
तापसी पन्नू ने इसमें अमृता नाम की ऐसी महिला की भूमिका निभाई है जो एक समर्पित हाउस वाइफ है। हालांकि वो एक नृत्यांगना रही है लेकिन वो सब कुछ छोड़-छाड़कर पूरी तरह गृहस्थी में रम गई है। अपनी सास का ब्लड शुगर लेवेल रोज नापती है, पति के लिए रोज चाय बनाती है, जब वो ऑफिस जाता है तो घर से बाहर कार तक आकर उसे रोज बटुआ, पानी का बॉटल और लंच बॉक्स पकड़ाती है। यानी पूरी तरह से गृहिणी है। जीवन ऐसा ही चल रहा होता है। पर तभी एक वाकया होता है। पति ने घर में पार्टी दी है और उसी दौरान उसे खबर मिलती है उसका प्रमोशन नहीं हुआ और इसी गुस्से में भरी पार्टी में अमृता को थप्पड़ मार देता है। उसके बाद तो अमृता की पूरी दुनिया उलट जाती है। क्या अब वो अपने पति के साथ रहेगी या उसका घर छोड़ देगी?
फिल्म में अमृता की कथा मुख्य ही है लेकिन समानांतर रूप से घरेलू हिंसा की और भी कहानियां चलती हैं। अमृता की नौकरानी, जिसकी भूमिका विद्या ओहलियान ने निभाई है, को रोज उसका पति पीटता है। अमृता की सास (तन्वी आजमी) भी पति की उपेक्षा का शिकार रही है। अमृता की वकील माया रवाल भी अपने घर में अपने पति से दबी दबी रहती है। फिल्म ये भी दिखाती है घर में महिलाओं पर होनेवाली हिंसा सिर्फ तात्कालिक वजहों से नही होती बल्कि लंबे समय से चली आ रहे उस रिवाज के कारण भी होती है जिसमे औरतों को यही सिखाया जाता है कि घर चलाने के लिए औरत को सहना पड़ता है। यानी एक थप्पड़ पड़ गया तो कोई बात नही, इसे भूलकर रोजाना की तरह काम करते रहो।
‘थप्पड़’ एक धीमे धीमे चलने वाली फिल्म है। कोई ड्रामा नहीं है। बस थप्पड़ के वाकये को छोडकर। बाकी सब आहिस्ता आहिस्ता है। हालांकि मुकदमेबाजी होती है लेकिन कोई अदालती ड्रामा नही हैं। हां, ये संकेत मिलता है कि अदालतों में मुकदमे जीतने के लिए वकील तरह-तरह के हथकंडे अपनाते हैं। तापसी पन्नू ने जिस औरत की भूमिका निभाई है वो थप्पड़ खाने के बाद दुखी है और किसी तरह की नाटकीयता का प्रदर्शन नहीं करती है बल्कि शांत मन और दृढ़ता के साथ अपने फैसले करती है। अमृता के पिता के रूप में कुमुद मिश्रा ने जो भूमिका निभाई है वो ऐसे पुरुष की है जो अपनी बेटी के साथ खड़ा है और ये कभी नहीं कहता कि ‘तुमको अपने पति के पास लौट जाना चाहिए। रत्ना पाठक शाह ने बिल्कुल साधारण गृहकाज करने वाली औरत लगी हैं। अनुभव सिन्हा की ये फिल्म सदियों से चली आ रही समझ और रिवाज को आईना दिखानेवाली है।