Super 30 Movie Review and Rating: ये तो पहले से प्रचारित है कि `सुपर 30’ बिहार के चर्चित कोचिंग सेंटर चलाने वाले शख्स आनंद कुमार के जीवन से प्रेरित है। लेकिन फिल्म देखने के बाद धीरे-धीरे ये भी खुलता जाता है कि ये शिक्षा की जरूरत और दैनिक जीवन में विज्ञान की अहमियत बताने भी फिल्म भी है। `सुपर 30’ ये संदेश देने वाली फिल्म भी है कि कुछ लोग अभी भी समाज में हैं जो जान और कैरियर की बाजी लगातार भी दूसरों के लिए और खासकर गरीबों की भलाई के लिए काम करते हैं। ये फिल्म आनंद कुमार की जीवन से प्रेरित जरूर है लेकिन निर्देशक ने कई जगहों पर कल्पना का सहारा लिया है। खासकर अस्पताल वाले और शोले के एक अंश को अंग्रेजी में नाटकीय रूपांतर करने वाले दृश्य।
फिल्म का संक्षिप्त किस्सा तो ये है कि घोर गरीबी में जीने वाले पर खुशमिजाज पोस्टमैन का बेटा आनंद कुमार गणित में इतना प्रवीण हैं कि उसका एक रिसर्च पेपर एक विदेशी गणित-पत्रिका में छपता है और उसे कैंब्रिज में आगे के शोध के लिए बुलाया भी जाता है। लेकिन वो वहां जाए कैसे? पिता अपने पीएएफ से सारा पैसा निकाल भी लेता है। फिर भी आधे पैसे का ही जुगाड़ हो पाता है। जो मंत्री (पंकज त्रिपाठी) उसे कभी मदद करने का आश्वासन दिया करता था वो भरे जनता दरबार में अलोवीरा का जूस पीता रहता है और आनंद की तरफ ध्यान भी नहीं देता।
बेटे का सपना टूट जाता है और पिता ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाता और उसकी मृत्यु हो जाती है। आनंद कुमार परिवार का खर्च चलाने के लिए पापड़ बनाने और बेचने का धंधा शुरू कर देता है। ऐसे ही वक्त में वो जा टकराता है कोचिंग सेटर बिजनेस के एक माफिया ललनसिंह (आदित्य श्रीवास्तव)से। अब वो लंलन सिंह के कोचिंग सेटर में पढ़ाना शुरू करता है। पर इस कोचिंग सेंटर में पैसेवालों के बच्चे आते हैं। लेकिन आनंदकुमार तो चाहता है कि कचरा उठाने वाले, बर्तन साफ करने वाले और मजदूरों के बच्चें भी आईआईटी में दाखिला लें। इसलिए ललन सिंह से अलग होकर आनंदकुमार अपना कोंचिग सेंटर शुरू करता है और इसमें बिना फीस दिए गरीब बच्चें पढ़ते हैं। क्या कोचिंग सेंटर के धंधे में माफिया राज चलाने वाले आनंद कुमार को ऐसा करने देंगे? उसकी राह में रोड़े नहीं खड़ा करेंगे? जरूर करेंगे। ये रोड़े किस तरह के होंगे? यही आगे की कथा है।
निर्देशक में फिल्म में बिहारी लहजा बरकार रखा है। आम बिहारियों में पाए जानेवाले भाषा प्रयोग,जैसे `बिजली जलता है’ और `चिड़िया उड़ता है’ इस फिल्म में हैं जो इसके बिहारीपन को बनाए ऱखते हैं। फिल्म इस दिशा की तरफ भी संकेत करती है कि बिहार की शिक्षा व्यवस्था कई वर्षों से ध्वस्त हो गई है और उस पर पूरी तरह माफिया का नियंत्रण हो गया है। मगर `सुपर 30’ सिर्फ बिहार तक केंद्रित नहीं हैं। इसमें विज्ञान भी हैं और साधारण जीवन में विज्ञान का प्रयोग कैसे करें फिल्म ये भी बताती है। वास्तविक वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या हो, निर्देशक ने ये बताना भी जरूरी समझा है।
ऋतिक रोशन की भूमिका नए तरह की है। एक साधारण युवक की जो ज्ञान के प्रति समर्पित है और सिर्फ ज्ञान पाना नहीं चाहता बल्कि उसे बांटना और फैलना भी चाहता है। यानी ज्ञान और विज्ञान का लोकतांत्रीकरण दोनों उसके लक्ष्य हैं। ऋतिक अभी तक फिल्मों में या तो एक जबर्दस्त डांस के लिए जाने जाते हैं या निश्चल और भोले इंसान की भूमिका आए हैं। यहां तक की माफिया सरदार की भूमिका `अग्निपथ’ में वे भोले ही लगे थे। पर इस फिल्म से उनकी एक नई छवि बनती है। एक आम और संघर्षरत नौजवान की। `क्वीन’ के बाद विकास बहल ने फिर से साबित किया है कि एक नए तरह का ऐसा नायक (हालांकि ` क्वीन’ में नायिका थी) रच सकते हैं जो पांरपरिक हो लेकिन अलग तरह का भी हो। नैतिकता से भरपूर। दूसरे शब्दों में कहें तो नई नैतिकता लिए हुए। फिल्म में हल्का सा रोमांस भी है। आनंद कुमार की प्रेमिका में मृणाल ठाकुर की भूमिका छोटी है लेकिन मासूमियत से भरी। फिल्म में एक जगह नाटक भी होता है जिसमें हास्य भी है और जज्बा भी। जोश भी और जीवन दर्शन भी। `सुपर 30’ 2019 की अब तक की सबसे अच्छी बॉलीवुड फिल्म है। शायद ऋतिक रोशन की भी सबसे अच्छी।