रत्ना शाह शादी में जरूर आना के जरिए डायरेक्टर के तौर पर डेब्यू कर रही हैं। इस फिल्म में एंटरटेनमेंट के सारे मसाले मौजूद हैं जिसकी अपेक्षा आपको किसी भी बॉलीवुड फिल्म से होती है। इसमें रोमांस, ड्रामा, बदला सब है। लेकिन इसके अलावा फिल्म आपको लिंग असमानता, दहेज और भ्रष्टाचार के आइने से भी रुबरू करवाएगी। फिल्म की कहानी एक लव स्टोरी है जो बाद में इंतकाम की दास्तान बन जाती है।
कहानी कानपुर में रहने वाले दो परिवारों की है जो अपने बच्चों सत्येंद्र मिश्रा (राजकुमार राव) और आरती शुक्ला (कृति खरबंदा) के लिए सही जीवनसाथी ढूंढ रहे हैं। दोनों परिवार जबर्दस्ती आरती और सत्येंद्र उर्फ सत्तू को मिलाते हैं। सत्तू सरकारी कार्यालय में एक क्लर्क हैं। वहीं आरती कॉलेज टॉपर है जोकि शादी नहीं करना चाहती बल्कि एक आईएएस अधिकारी बनना चाहती है। दोनों एक-दूसरे को जानने के लिए बाहर मिलते हैं और एक जैसे सपने की वजह से प्यार में पड़ जाते हैं। शादी तय होती है और बारात घर आ जाती है और यहीं से कहानी में ट्विस्ट आता है।
आरती शादी वाले दिन घर छोड़कर चली जाती है क्योंकि लड़के के पिता बहुत ज्यादा दहेज मांगते हैं। जिसके लिए उसके पिता को अपनी जमीन बेचनी पड़ती है। सालों बाद जब सत्तू और जया की मुलाकात होती है तो प्यार नफरत में बदल जाती है। ऐसे में क्या सत्तू जया की बात को समझ पाएगा? क्या सत्तू दहेज को लेकर जारी अपने घरवालों की सोच को बदल पाएगा? क्या सत्तू और जया नफरत को भुलाकर प्यार करेंगे? यही है फिल्म की कहानी।
फिल्म की कहानी आपको भारत में जारी दहेज प्रथा का एक परफेक्ट आइना दिखाएगी। हालांकि फिल्म में कुछ जगहों पर आपको लगेगा कि मेलोड्रामा कुछ ज्यादा है। कहीं-कहीं पर कहानी कमजोर लगेगी लेकिन इसके बावजूद निर्देशक ने एक अच्छी कोशिश की है। वहीं एक हैंडसम युवा लड़के के किरदार में राजकुमार काफी जंच रहे हैं।