रविन्द्र त्रिपाठी
चोर और सिपाही की कहानी है साहो। पर कौन है चोर और कौन है सिपाही ये समझने में वक्त लगता है। और इसमें इंटरवल हो जाता है। और इस वक्त तक लगता है कि जो चोर है वो पुलिस है। और हां, एक और बात। जो चोर है ना वही असली हीरो है इस फिल्म का। बाहुबली के चर्चित अभिनेता प्रभाष इसमें साहो बने है। आधे समय तक वे पुलिस बने है। दोनों ही रोल में उनकी भूमिका गजब की है। एक्शन भी शानदार है। पर जितना हंगामा इस फिल्म का है क्या वो ऐसी फिल्म है? कतई नहीं।
इसकी कहानी में जान नहीं है। एक राय नाम का शख्स है जो एक इंटरनेशनल क्राइम सिंडिकेट चलाता है। एक दिन उसकी हत्या हो जाती है। अब इस सिंडिकेट में इस बात की लड़ाई शुरू हो जाती है कि कौन लेगा राय की जगह? क्या राय का बेटा उसके स्थान पर सिंडिकेट का काम संभालेगा? पर राय का बेटा कौन है ये भी रहस्य का मसला है। जिसे शुरू में राय का बेटा बताया गया है वो तो राय के एक वफादार का बेटा निकलता है। पर ये सब नाटक बाजी किसलिए? इसलिए कि कहानी को घुमावदार बनाना है और एक्शन के नए नए सीक्वेंस डालने हैं। मुंबई से लेकर दूसरे देशों के सीन भी दिखाने है। पश्चिम से लेकर अफ्रीकी देशों के गुंडों और मावलियों को दिखाना है।
बाहुबली की वजह से प्रभाष की पूरे देश में प्रशंसक है। हिन्दी के दर्शकों में भी उनकी बड़ी फैन फॉलोइंग है। पर इस फिल्म में वे जम नहीं पाते। इसका कारण ये है कि उनके संवाद प्रभावशाली नहीं है। कहने का मतलब ये कि वो हिन्दी के एक्टर के संवाद नहीं लगते। ये संवाद किसी से डब कराए गए हैं। फिर भी तलिया मिली हैं। फिल्म के गाने भी लबों पर बसने वाले नहीं हैं। श्रद्धा कपूर और प्रभाष पर फिल्माए गए गाने चमत्कार तो पैदा करते हैं लेकिन दिल को नहीं छूते।
साहो एक महंगी फिल्म है। 350 करोड़ इसकी लागत है। क्या इतना कमा लेगी? शायद कमा भि ले क्योंकि ये हिन्दी के अलावा तेलगु और तमिल में भी बनी है। और इसकी मेकिंग तो लाजवाब है। बहरहाल कुल मिलाकर ये कहा जा सकता है की सा हो कुछ मामलों में दमदार है तो कुछ में औसत।

