One Day Justice Delivered Movie Review: वैसे तो ये फिल्म झारखंड सरकार के सहयोग से बनी है लेकिन इसमें झारखंड नाम की चीज है वो सिर्फ सड़कों या भवनों के रूप में है। यानी बोलचाल से लेकर जो जीवन दिखाया गया है उसमें झारखंडीपन नहीं है। यहां तक कि जो पुलिस अधिकारी इंस्पेक्ट्रर लक्ष्मी राठी (ईशा गुप्ता) जाबांजी दिखाती है वो हरियाणवी लगती है। भाषा में औरअपनी अदाओं में। फिर झारखंड सरकार ने इसे क्यों सहायता की ये समझ में नहीं आता।

खैर, `वन डे: जस्टिस डिलिवर्ड’ उस तरह की फिल्म है जिसे अंग्रेजी में `विजिलांते’ कहते हैं यानी जिसमें इंसाफ दिलाने के लिए न्याय व्यवस्था के बाहर के तरीके इस्तमाल किए जाते हैं। इस फिल्म में भी जस्टिस त्यागी (अनुपम खेर) हाईकोर्ट से रिटायर होने के बाद उन अपराधियों को सजा देता है जो सबूतों की कमी की वजह से उसकी अदालत से छूट गए थे। और वो इसके लिए लोगों को अगवा करता है, उनको टार्चर करता है और फिर उनसे गुनाह कबूलवाला है।

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रांची शहर में पुलिस परेशान है कि आखिर एक एक कर रसूख वाले और कुछ शातिर भी लोग गायब हो रहे हैं और उनका पता ठिकाना नहीं मिल रहा है। शुरू में पुलिस तफ्तीश ठीक से नहीं करती तो क्राइम ब्रांच की पुलिस अधिकारी राठी को कमान सौंपी है और आखिरकार वो तह तक पहुंच जाती है। हां, अत में राज की बात ये खुलती है कि जस्टिस राठी का कोई छिपे छिपे सहयोग भी कर रहा था। कौन था ये सहयोगी ये जानकारी दर्शक को चौंकती जरूर है। इस फिल्म में एकमात्र यही सकारात्मक पहलू है।

फिल्म में कई खामियां हैं। अगवा हुए डॉक्टर का बेटा पुलिस वालों से बेहद बदतमीजी से बात करता है हालांकि न उसकी कोई हैसियत है और न उसके गायब पिता की, इंसपेक्टर राठी कोलकाता मे एक रेस्तरां में डांस करती है, जस्टिस राठी अकेले पांच छह लोगों को अगवा कर लेता- ये सारे पहलू फिल्म को थोड़ा कमजोर करते हैं। फिल्म में आतंकवाद और बम धमाकों को भी जिक्र है लेकिन उनके पीछे कौन सा संगठन है ये भी कहीं जताया नहीं गया है।