Mohenjo Daro cast: ऋतिक रोशन, पूजा हेगड़े

Mohenjo Daro director: आशुतोष गोविरकर

आशुतोष गोवारीकर की छवि के मुताबिक मोहेंजो दारो’ में भव्यता है। कुछ कुछ राजामौली के बाहुबली’ की तरह। पर कुछ कुछ ही। और ऋतिक रोशन की छवि के मुताबिक इसमें चपलता भी है। रोशन मार्का शानदार नृत्यशैली की वजह से। दोनों के मेल से फिल्म में एक खास तरह का सम्मोहन और आकर्षण है। लेकिन अगर आप नाम के मतलब पर गए और समझा कि फिल्म में आपको पुरातात्विक युग के दर्शन होंगे तो निराशा हो सकती है। इतिहास की किताबों में हजारों साल पुराने मोहेंजोदारो से नाम की समानता होने पर भी फिल्म मोहेंजोदारो’ किसी भी तरह से पुराततत्व केंद्रित नहीं है। हां, यहां पुरातत्व के आवरण में लिपटी और उससे अलंकृत प्रेम कथा जरूर है। जैसा कि खबरे आईं है, गोवारीकर ने इस फिल्म के लिए भी शोध किया है और पुरातत्वविदों से परामर्श भी है। किया होगा, लेकिन कुल मिलाकर मोहेंजोदारो’ एक प्रेम कहानी है। ऐसी प्रेम कहानी है जो आपको लगभग अज्ञात इतिहास की याद भी दिला देती है। ये भी कह सकते हैं कि आज की किसी प्रेम कहानी को पुरातत्विक वेशभूषा और माहौल में दिखाया है। आखिर इसमें प्रेमी और प्रेमिका के साथ साथ क्रूर खलनायक भी हैं और इसी कारण दर्शक के मन में बार बार प्रश्न उठ सकता है कि कहानी तो आज की लग रही है लेकिन सेट डिजाइन से लेकर कपड़े पुराने तरह के क्यों हैं?

ऋतिक ने भारत के लगभग चार हजार साल पहले भारत के पश्चिमी इलाके में रहनेवाले एक ग्रामीण नौजवान शरमन की भूमिका निभाई है। वह स्वभाव से मस्त है। और जाबांज भी। एक दिन वह चाहता है कि पास वाले इलाके मोहेंजो दारो जाए। उसके परिवार वाले आनाकानी करते हैं पर बाद में तैयार हो जाते है। मोहेंजो दारो जाकर शरमन की कई चीजों को पहली बार देखता है पर उसे सबसे ज्यादा आकर्षित करती है एक युवती चानी (पूजा हेगड़े) जो एक पुजारी (मनीष चौधरी) की बेटी है। वह चानी पर पहली ही नजर में फिदा हो जाता है। क्या करता उस जमाने में कॉलेज या रेस्तरां तो थे नहीं कि निर्देशक उनके कई बार मिलने का माहौल बनाता। खैर, दोनों के बीच रिश्ते पनपते हैं। जब हीरो हीरोइन दोनों है तो ऐसे में खलनायक की इंट्री तो होगी ही। पर यहां एक नहीं बल्कि दो दो खलनायक है। एक तो मोहेंजो दारो का शासक माहम (कबीर बेदी) और दूसरा बेटा मूंजा (अरुणदोय सिंह)। माहम एक अत्याचारी शासक है और अपनी प्रजा का दमन भी करता है। ऐसे में हीरो का कर्तव्य होता है कि वह जुल्मी का अंत करे। यानी शरमन के पास दो दो काम है- जुल्मी शासक का अंत और अपनी प्रेमिका को किसी कीमत पर पाना। इसी दोनों काम में वो लग जाता है और उसका क्या नतीजा होता है इसे जानने के लिए लगभग ढाई घंटे हॉल में लगाने पड़ते है।
गोवारीकर इतिहास की गलियों में गए तो हैं लेकिन वहां से निकलना उनके लिए भारी पड़ गया है। ठीक उसी तरह जिस तरह आप लखनऊ की भूलभूलैया में जाएं और फिर निकलने समय रास्ता भूल जाएं। इसलिए शायद ही ये जोधा अकबर’ या लगान’ जैसी सफलता पा सके। फिर भी ऋतिक रोशन के जादू, जो अभी भी बरकरार है, के कारण फिल्म दर्शक को इतिहास के भूलभूलैये से बाहर निकाल के डिजनीलैंड में पहुंचा देती है। फिल्म की हीरोइन पूजा हेगड़े हिंदी फिल्मों में अभी नई हैं। हालांकि दक्षिण की फिल्मों में वे आ चुकी है। कुछ दृश्यों में वे काफी मासूम और मोहक लगी हैं। गोवारीकर ने कई तरह के विजुअल इफेक्ट का सहारा लिया है। ये जरूरी भी था क्योंकि इसके बिना फिल्म को भव्यता देना (या उसका भ्रम पैदा करना) कठिन था। फिल्म के गाने ठीकठाक हैं। खासकर सरसरसिया’ के बोल वाला। पर ये पक्ष भी लगान’ और जोधा अकबर’ के मुकाबले का नहीं है।