27 और 28 जुलाई की मध्य रात्रि में चंद्र ग्रहण लगने वाला है। इस चंद्र ग्रहण की चर्चा दुनियाभर में हो रही है। क्योंकि इस बार का चंद्र ग्रहण बेहद ही खास है। खगोलविदों का ककहना है कि यह 21वीं सदी का सबसे लंबा चंद्र ग्रहण होगा। ऐसे में इस चंद्र ग्रहण को देखने की उत्सुकता हर किसी में बढ़ती जा रही है। बता दें कि इस बार का चंद्र ग्रहण भारत में भी दिखाई देगा। भारत के अलावा यह चंद्र ग्रहण ऑस्ट्रेलिया, एशियाई देश और रूस में भी देखा जा सकता है। ऐसे में कहा जा सकता है कि दुनियाभर के लोग इस ऐतिहासिक चंद्र ग्रहण को देखने के लिए उत्सुक हैं। इस चंद्र ग्रहण की एक और खास बात यह है कि इसे ‘ब्लड मून’ के नाम से भी जाना जा रहा है। लेकिन क्या आपको पता है कि इस ऐतिहासिक चंद्र ग्रहण को ‘ब्लड मून’ क्यों कहा जा रहा है। यदि नहीं तो हम आपको इस बारे में विस्तार से बताने जा रहे हैं।
‘ब्लड मून’ के बारे में साधारण सी बात यह है कि ऐसा चंद्रमा के लाल रंग का दिखाई देने की वजह कहा जा रहा है। दरअसल, पूर्ण चंद्रग्रहण के दौरान चंद्रमा जब धरती की छाया में रहता है तो इसकी आभा रक्तिम(लाल) हो जाती है जिसे ब्लड मून (लाल चांद) कहा जाता है। ऐसा उस समय होता है जब चांद पूरी तरह से धरती की आभा में ढक जाता है। ऐसे में भी सूरज की ‘लाल’ किरणें ‘स्कैटर’ होकर चंद्रमा तक जाती हैं।
क्या आप जानते हैं कि चंद्र ग्रहण किस दशा में लगता है? यदि नहीं तो हम आपको इसके बारे में भी बता देते हैं। दरअसल पृथ्वी निरंतर सूर्य के चारों ओर परिक्रमा करती रहती है। जबकि चंद्रमा पृथ्वी के चारों ओर घूमता रहता है। ऐसे में कई बार पृथ्वी एक सीध में चंद्रमा और सूर्य के बीच आ जाती है। ऐसी दशा में सूर्य की किरणें चंद्रमा तक नहीं पहुंच पातीं। इस स्थिति में पृथ्वी से चंद्रमा का दिखना बंद हो जाता है। इस खगोलीय घटना को चंद्र ग्रहण कहा जाता है।

