Varuthini Ekadashi Vrat Vidhi, Significance, Importance, Story: हिंदू परंपरा में एकादशी को पुण्य कार्य और भक्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। हर माह में दो एकादशी पड़ती हैं जिनमें भक्त उपवास रखते हैं। एकादशी का व्रत मोक्षदायक माना जाता है। वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की तिथि को आने वाली एकादशी को वरूथिनी एकादशी कहा जाता है। इस बार यह पुण्य अवसर 18 अप्रैल को आने वाला है। पुराणों में इस एकादशी में बहुत महत्व बताया गया है। यह पुण्य और सौभाग्य प्रदान करने वाली एकादशी है। वरूथिनी एकादशी का व्रत धारण करने से एक दिन पहले अर्थात् दशमी तिथि से ही उपवास रखने वाले व्यक्ति को नियमों का अनुपालन करना पड़ता है। आइए जानते हैं क्या है इस एकादशी की विशेषता-

क्यों खास है वरूथिनी एकादशी: शास्त्रों के अनुसार इस व्रत को करने से दुखियारों को सुख मिलता है तथा राजा के लिए स्वर्ग का मार्ग खुलता है। सूर्य ग्रहण के समय दान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल इस व्रत को करने से प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य लोक और परलोक दोनों में सुख पाता है और अंत समय में स्वर्ग जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को हाथी के दान और भूमि के दान करने से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है। इसके अलावा, वरूथिनी शब्द संस्कृत भाषा के ‘वरूथिन्’ से बना है, जिसका मतलब है- प्रतिरक्षक, कवच या रक्षा करने वाला। मान्‍यता है कि इस एकादशी का व्रत करने से विष्‍णु भगवान हर संकट से भक्‍तों की रक्षा करते हैं।

ये है वरूथिनी एकादशी व्रत कथा: काफी समय पूर्व नर्मदा नदी के किनारे राजा मांधाता का राज्य हुआ करता था। वो बेहद दानी व तपस्वी राजा थे। एक बार वे जंगल में तपस्या कर रहे थे, ठीक उसी वक्त एक भालू आया और उनके पैर खाने लगा। मांधाता तपस्या करते रहे। उन्होंने भालू पर न तो क्रोध किया और न ही उसे मारने की कोशिश की। दर्द असहनीय होने पर उन्होंने भगवान विष्णु को याद किया। तब भगवान विष्णु ने वहां प्रकट होकर राजा की रक्षा की। पर तब तक काफी देर हो चुकी थी और भालू ने राजा के पैरों को बहुत ज्यादा नुकसान पहुंचा दिया था। ये देखकर राजा बहुत दुखी हुए। तब भगवान विष्णु ने उससे कहा कि राजन् दुख न करें। भालू ने जो तुम्हें काटा है, यह तुम्हारे पूर्व जन्म के बुरे कर्मों का फल है। तुम मथुरा जाओ और वहां वरुथिनी एकादशी का व्रत विधि-विधान से करो। तुम्हारे पैर फिर से ठीक हो जाएंगे। राजा ने भगवान की आज्ञा का पालन किया और फिर से उसके पैर ठीक हो गए।

इन बातों का रखें ध्यान: वरूथिनी एकादशी का व्रत करने वाले भक्तों को इस दिन कांसे के बर्तन में भोजन नहीं करना चाहिए। इसके साथ ही नॉन वेज, मसूर की दाल, चने व कोदों की सब्‍जी और शहद का सेवन न करें। वहीं, व्रत वाले दिन जुआ नहीं खेलना चाहिए। रात को सोना नहीं चाहिए, अपितु सारा समय शास्त्र चिन्तन और भजन-कीर्तन आदि में लगाना चाहिए। इस दिन व्रतियों को पान खाने और दातुन करने की मनाही है। क्रोध करना या झूठ बोलना भी वर्जित है, साथ ही दूसरों की निन्दा तथा नीच पापी लोगों की संगत भी नहीं करनी चाहिए।