हिन्दू पंचांग में राहु का जिक्र किया जाता है। राहु काल में किसी भी प्रकार के शुभ कार्य करने की मनाही होती है। क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस समय में कोई भी शुभ कार्य करने से वह सफल नहीं होता है। वहीं ज्योतिष शास्त्र में राहु को नवग्रहों में से एक माना गया है। साथ ही इसे एक क्रूर ग्रह भी कहा जाता है। परंतु क्या आप जानते हैं कि राहु काल को अशुभ क्यों माना जाता है? साथ ही इस समय पर कोई भी शुभ कर सफल क्यों नहीं होते हैं? यदि नहीं तो आगे हम इसे जानते हैं।
राहु नवग्रहों में से एक ग्रह है। पौराणिक कथा के अनुसार राहु की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई थी। कहते हैं कि जब समुद्र मंथन हुआ था तो अमृत के लिए देवताओं और असुरों के बीच लड़ाई छिड़ गई। जिसके बाद भगवान विष्णु मोहिनी का रूप लेकर आए और उन्होंने अमृत का कलश लेकर देवताओं को अमृत पिलाते थे और जब असुरों के पास जाते थे तो कलश बदल लिया करते थे। ताकि असुर अमर न हो पाए और पृथ्वी पर पाप न बढ़ पाए। इसी बीच एक असुर ने यह देख लिया कि कलश बदल जा रहा है। उस असुर ने देवता का रूप धारण करके देवताओं के बीच में जाकर बैठ गया। भगवान विष्णु जब मोहिनी का रूप लिए उसके पास पहुंचे और उसे अमृत पिलाया। उसी समय भगवान विष्णु की नजर उसके ऊपर पड़ी।
फिर भगवान विष्णु सारी बात जान गए और जैसे ही उन्होंने उसकी ओर देखा तो दोनों की नजरें मिल गई। इसके बाद उस असुर को यह पता चल गया कि भगवान विष्णु ने उन्हें पहचान लिया है तो वह भागने लगा। उसी समय भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र निकाला और उसका सिर धर से अलग कर दिया। असुर ने अमृत तो पी लिया था जो उसके गले तक ही पहुंचा था। ऐसे में उसका सिर जीवित रह गया है सिर डीएचआर से अलग हो गया। दरअसल जिस समय राहु काल चलता है उस समय राहु बहुत बलवान स्थिति में होते हैं। उस समय जो भी कार्य किए जाते हैं वे असफल होते हैं। इसलिए हमें इस इस समय कोई भी नए कार्य करने से बचना चाहिए।