हिंदू धर्म में पूजा-पाठ के समय चावल का प्रयोग विशेष रुप से किया जाता है। चावल जिसे अक्षत भी कहा जाता है जिसका मतलब होता है जो टूटा हुआ ना हो। पूजा के कार्यों में चावल का काफी महत्व होता है। किसी भी पूजा में गुलाल, हल्दी, अबीर और कुमकुम के साथ ही अक्षत भी चढ़ाए जाते हैं। देवी-देवताओं की पूजा के साथ-साथ तिलक लगाते हुए भी अक्षत का प्रयोग किया जाता है। इसका रंग सफेद है जो कि शांति का प्रतीक होता है जिसे चढ़ाकर इस बात की प्रार्थना की जाती है कि व्यक्ति के हर कार्य पूर्ण रुप से और शांति के साथ संपन्न हो जाएं।

अक्षत पूर्णता का प्रतीक होता है क्योंकि यह टूटा हुआ नहीं होता है। इसलिए पूजा में इसे चढ़ाने का भी मतलब यही होता है कि हमारी पूजा इस अक्षत की तरह पूर्ण हो। अन्न में श्रेष्ठ होने के कारण जब यह भगवान को चढ़ाया जाता है तो मन में यही भाव होता है कि जो कुछ हमें प्राप्त हो रहा है वह भगवान के माध्यम से ही हो रहा है। लेकिन पूजा में इसे चढ़ाते समय एक बात का ध्यान मुख्य रुप से रखना चाहिए कि चावल बिल्कुल भी टूटा हुआ ना हो यानी एक भी चावल खंडित नहीं होना चाहिए। इससे पूजा पूर्ण नहीं मानी जाएगी। साथ ही पूजा में इस्तेमाल किया जाने वाला चालव साफ सुथरा होना चाहिए। शिवलिंग पर भी चावल चढ़ाना अच्छा माना जाता है।

पूजा में अक्षत चढ़ाते हुए पंडित इस मंत्र का उच्चारण करते हैं-

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठ कुंकुमाक्ता: सुशोभिता:।
मया निवेदिता भक्त्या: गृहाण परमेश्वर॥

इस मंत्र का अर्थ यही होता है कि हे भगवान कुमकुम के रंग से सुशोभित यह अक्षत आपको समर्पित हैं, कृपया आप इसे स्वीकार करें। इसका यही भाव है कि अन्न में अक्षत जिसे सबसे श्रेष्ठ माना गया है। जिसे देवान्न भी कहा जाता है साथ ही यह सभी देवताओं का प्रिय अन्न होता है। इसलिए इसे सुगंधित द्रव्य कुंकुम के साथ आपको अर्पित कर रहे हैं। इसे ग्रहण करें, आप भक्त की भावना को स्वीकार करें।