हिंदू धर्म ग्रंथों के अनुसार जब कभी देवताओं या मनुष्यों पर किसी तरह का संकट आया है तब भगवान विष्णु ने किसी न किसी रूप में उनकी रक्षा की है। भगवान विष्णु को जगत का पालनहार भी कहा जाता है। शास्त्रों और ग्रंथों में भगवान विष्णु के अनेकों रूपों का उल्लेख मिलता है। भगवान विष्णु ने जहां नृसिंह अवतार में अपने भक्त प्रहलाद को बचाया तो वहीं क्रूर हिरण्यकश्यपु से प्रजा को मुक्ति भी दिलाई थी। उसी तरह अपने वराह अवतार से उन्होंने असुर हिरण्याक्ष का वध करके देवताओं, मानवों और अन्य को भयमुक्त किया था। यहां आप जानेंगे भगवान विष्णु के उस अवतार के बारे में जब देवताओं के कल्याण के लिए उन्हें एक स्त्री का रूप लेना पड़ा था…

एक पौराणिक कथा अनुसार जब इन्द्र असुरों के राजा बलि से युद्ध में हार गए थे तब वे अपने स्वर्गलोक की वापसी के लिए भगवान विष्णु की शरण में पहुंचे। इंद्र की परेशानी का हल निकालते हुए भगवान हरि ने समुद्र मंथन का मार्ग निकाला। जिससे निकला अमृत देवताओं को अमर बनाकर फिर से स्वर्ग दिला सकता था। इंद्र भगवान हरि द्वारा सुझाए गए रास्ते का प्रस्ताव लेकर दैत्यों के राज बलि के पास गए और समुद्र मंथन का प्रस्ताव रखा और अमृत की बात बताई। अमृत के लालच में आकर दैत्यों ने देवताओं का साथ देने का वचन दिया।

मदरांचल को मथानी और विष्णु के वासुकि नाग को रस्सी बनाकर समुद्र मंथन शुरु किया गया। इस समुद्र मंथन से बहुत सी चीजें निकली लेकिन सबकी नजर थी तो उस अमृत पर जो किसी को भी अमर बना सकता था। अंत में जैसे ही अमृत कुंभ निकला जिसे लेकर धन्वन्तरिजी आए तो तुरंत असुरों ने उनके हाथों से यह अमृत कलश छीन लिया। दैत्यों के बीच कलश को लेकर झगड़ा शुरू हो गया और देवता निराश खड़े थे।

देवताओं की हताशा और दैत्यों के बीच में अमृत को लेकर हो रहे झगड़े को देखकर भगवान विष्णु ने एक सुंदर नारी का रूप लिया और असुरों के पास जाकर अमृत को समान रूप से बांटने की बात कही। असुरों ने हरि के मोहिनी रूप को देखकर अमृत का कलश उन्हें सौंप दिया। इस तरह से भगवान विष्णु ने सारा अमृत देवताओं को पिला दिया।