सावन का पवित्र महीना प्रारंभ हो चुका है। सावन में शिव भक्त बड़ी ही श्रद्धाभाव के साथ शिव जी की उपासना में लग गए हैं। ऐसे में आज हम आपको शिव जी की पूजा से जुड़ा एक बड़ा ही दिलचस्प सवाल लेकर आए हैं। वह यह कि आखिर भोले बाबा की पूजा में शंख का इस्तेमाल क्यों नहीं किया जाता है। चलिए जानते हैं इस बारे में। मालूम हो कि शंख समुद्र मंथन से निकला एक महत्वपूर्ण रत्न बताया गया है। इसे प्रत्येक पूजा का अति आवश्यक उपकरण माना गया है। इसके साथ ही भगवान विष्णु ने स्वयं इसे अपने हाथों में धारण किया है। इसलिए शंख को वरदायक बताया गया है। यानी कि पूजा में शंख का इस्तेमाल करने से वरदान की प्राप्ति होती है।
कथा के मुताबिक एक बार राधा गोकुल से कहीं बाहर गई थीं। उस समय कृष्ण जी अपनी एक सखी (विर्जा) के साथ विहार कर रहे थे। बताते हैं कि राधा वहां पर आ गईं और कृष्ण को किसी और स्त्री के साथ देखकर क्रोधित हो गईं। राधा की बातों से विर्जा लज्जित होकर नदी बनकर बहने लगीं। इस पर कृष्ण के मित्र सुदामा राधा से क्रोध पूर्वक बात करने लगे जिससे राधा नाराज हो गईं। राधा ने सुदामा को दानव रूप में जन्म लेने का शाप दे दिया। इस पर सुदामा ने राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का शाप दिया।
कहते हैं कि राधा के शाप से सुदामा शंखचूड नाम का दानव बने। कहते हैं कि एक समय शंखचूड अपनी शक्तियों के दम पर तीनों लोकों का स्वामी बन चुका था। और साधु-संतों को सताने लगा था। इस पर शिव जी ने क्रोधित होकर शंखचूड का वध कर दिया। बताते हैं कि शंखचूड भगवान विष्णु का भक्त था। शंखचूड की मौत के बाद विष्णु ने उसकी हड्डियों से शंख का निर्माण किया। कहते हैं कि शिव के शंखचूड की वध करने की वजह से शंख को उनकी पूजा में वर्जित माना गया।


