हिंदू धर्म में तमाम देवी-देवता किसी ‘वाहन’ की सवारी करते हैं। जैसे कि गणेश जी मूषक की, मां दुर्गा शेर की, शिव जी नंदी बैल की इत्यादि। लेकिन क्या आप जानते हैं कि देवी-देवताओं को ‘वाहन’ की जरूरत क्यों पड़ी? यदि नहीं तो हम आपको इस बारे में बताने जा रहे हैं। माना जाता है कि देवी-देवाताओं के इन ‘वाहनों'(सवारियों) की पूजा से भी उतना ही फल प्राप्त होता है जितना कि इन्हें धारण करने वाले प्रभु की। इसीलिए आपने कई बार भक्तों के द्वारा इन ‘वाहनों’ की पूजा किए जाते हुए देखा होगा। पौराणिक तथ्यों के मुताबिक इन ‘वाहनों’ को उसे धारण करने वाले देवी-देवता से भी जोड़ा गया है। कहते हैं जिस ‘वाहन’ का जैसा स्वभाव होता है, वैसा ही स्वभाव उसे धारण करने वाले देवी-देवता का भी है।
भगवान शिव नंदी बैल की सवारी करते हैं। नंदी बैल को आस्था और शक्ति का प्रतीक माना गया है। कहते हैं कि शिव जी भी ऐसे ही स्वभाव के हैं। वह उनमें आस्था रखने वाले भक्तों की मदद जरूर करते हैं। माता दुर्गा शेर की सवारी करती हैं।शेर को शक्ति और सामर्थ्य का प्रतीक माना गया है। कहा जाता है कि मां दुर्गा का स्वभाव भी ऐसा ही है। ठीक यही बात गणेश जी व अन्य पर भी लागू होती है।
देवी-देवताओं के द्वारा पशु-पक्षियों को अपने ‘वाहन’ के रूप में इस्तेमाल करने की एक वजह प्रकृति की रक्षा भी बताई जाती है। कहते हैं कि यदि देवी-देवताओं ने इन पशुओं व पक्षियों को अपना ‘वाहन’ नहीं बनाया होता तो इनके ऊपर हिंसा बढ़ सकती थी। माना जाता है कि देवी-देवताओं के द्वारा इन्हें धारण करने से लोगों में इनके प्रति आस्था पैदा हुई और इनकी(पशु-पक्षियों) की महत्ता पता चली। कहा जाता है कि विद्वानों ने लगभग प्रत्येक पशु-पक्षी को देवी-देवाताओं से जोड़कर उनकी रक्षा का गुप्त संदेश दिया है।