हिंदुओं के चार धामों में एक बद्रीनाथ धाम भी है। यह उत्तराखंड राज्य में स्थित अलकनंदा नदी के किनारे है। बद्रीनाथ धाम को लेकर लोगों के बीच मान्यता है कि यहां कभी भगवान शिव और माता पार्वती का वास हुआ करता था। लेकिन बाद में भगवान शिव को वह स्थान छोड़कर केदारनाथ जाना पड़ा। आखिर क्या कारण था कि भगवान बद्रीनाथ धाम को छोड़कर केदारनाथ चले गए? साथ ही भगवान विष्णु को यह स्थान क्यों अच्छा लगा? पौराणिक ग्रन्थों में आई कथा के अनुसार जानते हैं यह प्रसंग।
पुराणों में दर्ज कथा के अनुसार एक बार सतयुग में जब भगवान श्री नारायण बद्रीनाथ आए तब यहां बद्रियों बेर का वन था। यहां भगवान शंकर माता पार्वती के साथ आनंदपूर्वक रहते थे। कहते हैं कि एक दिन श्रीहरि विष्णु बालक का रूप धरण कर जोर-जोर से रोने लगे। इसके रोने की आवाज सुनकर माता पार्वती को बहुत कष्ट हुआ और वे सोचने लगीं कि इस बीहड़ वन में यह कौन बालक रो रहा है? यह आया कहां से और इसकी माता कहां है? यह सब सोचकर माता पार्वती को उस बालक पर दया आ गई। जिसके बाद पार्वती जी उस बालक को लेकर अपने घर पहुंची। यह देखकर भगवान तुरंत समझ गए कि यह भगवान श्रीहरि विष्णु की लीला है।
उन्होंने पार्वती से इस बालक को घर से बाहर छोड़ने का आग्रह किया और कहा वह कुछ देर रोकर अपने घर चला जाएगा। लेकिन माता पार्वती ने उनकी बात नहीं मानीं और बालक को घर ले जाकर चुप कराकर सुलाने लगी। कुछ ही देर में बालक सो गया तब माता पार्वती बाहर आ गाई और शिव जी के साथ कुछ दूर घूमने के लिए चली गई। कहते हैं कि भगवान विष्णु को इसी मौका का इंतजार था। उन्होंने उठकर घर का दरवाजा अंदर से बंद कर लिया। भगवान शिव और पार्वती जब घर लौटे तो दरवाजा अंदर से बंद था। जब उन दोनों ने बालक से दरवाजा खोलने को कहा तब अंदर से भगवान विष्णु ने कहा कि अब आप भूल जाइए। यह स्थान मुझे बहुत पसंद आ गया है। मुझे यहीं विश्राम करने दीजिए। अब आप यहां से केदारनाथ चले जाइए। कहते हैं कि तब से लेकर आज तक बद्रीनाथ यहां पर अपने भक्तों को दर्शन दे रहे हैं। साथ ही भगवान शिव केदारनाथ में दर्शन दे रहे हैं।


