हिंदू धर्म में तुलसी विवाह का प्रावधान है। कहा जाता है कि तुलसी विवाह कराने से कन्यादान के बराबर फल की प्राप्ति होती है। साथ ही तुलसी विवाह करने से दांपत्य जीवन में खुशियां आने की बात भी कही गई है। मान्यता है कि तुलसी विवाह कराने से कई जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं। इससे व्यक्ति को शुभ फल की प्राप्ति होती है। साथ ही इस दिन व्रत रखने से अनन्त पुण्य मिलने की बात भी कही गई है। कहते हैं कि जिन प्रेमी जोड़ों का विवाह न हो रहा हो उन्हें भी तुलसी विवाह जरूर कराना चाहिए। इससे शीघ्र विवाह हो जाने की बात कही गई है।
कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को कार्तिक स्नान कर तुलसी और शालिग्राम जी का विवाह कराया जाता है। शालिग्राम जी को विष्णु जी का प्रतिरूप बताया गया है। तुलसी को विष्णु का प्रिय बताया गया है। इसलिए तुलसी की पूजा के बिना शालिग्राम जी की पूजा अधूरी मानी गई है। इसलिए तुलसी पूजा करते समय भी इस बात का ध्यान रखने के लिए कहा जाता है।
तुलसी विवाह विधि: जो लोग तुलसी विवाह में शामिल हो रहे हैं, वह स्नान करके साथ-सुथरे कपड़े पहनें। इसके बाद व्रत का संकल्प लें। मुहूर्त के दौरान तुलसी के पौधे को घर के आंगन में या छत पर या मंदिर में रखें। तुलसी विवाह के लिए उस स्थान पर गन्ने के साथ लाल चुनरी से मंडप सजाएं। फिर एक गमले में शालिग्राम पत्थर रखें। तुलसी और शालिग्राम की हल्दी का तिलक लगाएं। इसके बाद दूध में हल्दी भिगोकर लगाएं। अब गन्ने पर भी हल्दी लगाएं। गमले पर कोई फल चढ़ाएं। पूजा की थाली से तुलसी और शालिग्राम की आरती करें। आरती करने के बाद तुलसी की 11 बार परिक्रमा करें और वहां मौजूद लोगों में प्रसाद बांट दें।
