भगवान शिव के अनेकों स्वरूप हैं, जिसमें से एक नटराज स्वरूप है। कहते हैं कि शिव की यह आनंदित अवस्था है। माना जाता है कि शिव का यह स्वरूप का अपना एक खास धर्मिक और आध्यात्मिक रहस्य है। आगे जानते हैं कि आखिर शिव के इस नटराज स्वरूप का क्या आध्यात्मिक रहस्य है।
सनातन धर्म के त्रिदेवों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण और शक्तिशाली माने जाने वाले भगवान शिव के विविध स्वरूप और उनकी लीलाएं हमेशा से जिज्ञासा का विषय रहा है। कहते हैं कि शिव के नटराज स्वरूप की उत्पत्ति की धारणा को आनंदमय तांडव से जुड़ा हुआ है। शिव के इस विशेष स्वरूप का अर्थ जितना व्यापक है उतना ही ग्रहण करने वाला है। दूसरे अर्थों में इस चराचर जगत की जो सर्जना और विनाश है, उसके निर्देशक की भूमिका नटराज ही हैं।
नटराज का अर्थ नृत्य करने वालों का सम्राट से है। यानि समस्त संसार के नृत्यगत प्राणियों का नेतृत्वकर्ता। शास्त्रों में नटराज की उत्पत्ति संबंधी दो मान्यताएं हैं। पहला चोल साम्राज्य में आठवीं से दसवीं शताब्दी के बीच इसके विकास को निरूपित करती है। दूसरी धारणा के अनुसार इसका विकास पल्लव साम्राज्य के तहत सातवीं शताब्दी के आसपास हुआ। इससे संबंधित प्रमाण के रूप में चिदंबरम स्थित नटराज की भव्य मूर्ति का उदाहरण दिया जा सकता है, जिसे योगसूत्र के प्रणेता पतंजलि ने बनवाया था।
कहते हैं कि इस मूर्ति को पतंजलि ने योगेश्वर शिव के रूप में निरूपित करने की बहुत कोशिश की, जिसका अर्थ बहुत ही अधिक व्यापक है। नटराज के स्वरूप में शामिल प्रतीक चिह्न भी अपने आप में बेहद खास अर्थों को समाहित किए हुए हैं। जैसे तांडव स्वरूप में नटराज एक बौने राक्षस के ऊपर नृत्यरत हैं। बौना राक्षस अज्ञानता का प्रतीक और शिव का उसके ऊपर मग्न होकर एक लय से नृत्य करना अज्ञानता के ऊपर विजय है। इसी प्रकार नटराज के ऊपरी बाएं हाथ में अग्नि है, जो विनाश का प्रतीक है। यानि अप्रिय सर्जना को भगवान शिव भगवान ब्रह्मा को पुनर्निर्माण का आमंत्रण देते हैं।
उनका दूसरा बायां हाथ उनके उठे हुए पैर की ओर संकेत करता है। जिसका अर्थ स्वतंत्रता से है। यानि शिव अपने इस स्वरूप का सार्वभौमिक स्वतंत्रता का उद्घोष करते हैं, जो मनुष्यता के सर्वाधिक गरिमामयी स्थिति का उद्घोषक है। नटराज की लयबद्ध नृत्यरत स्थिति स्वयं में ब्रह्मांड के लयबद्धता की उद्घोषणा करती है। अपनी इस स्थिति के द्वारा नटराज ये सिद्ध करते हैं कि बिना गति कोई जीवन नहीं है। साथ ही जीवन के लिए लयबद्धता अनिवार्य है। आनंदमय तांडवम की अवस्था सम्पूर्ण ब्रह्मांड के आनंदित होकर नृत्य करने की अवस्था है।
