Astrology: ज्योतिष शास्त्र में कई योग, नक्षत्र और शुभ मुहुर्त के बारे में बताया गया है। जिसमें कोई भी कार्य करना फलदायी माना गया है। मान्यता है कि इन योग और मुहूर्त में नया कार्य शुरू करने से उसमें लाभ होता है। ऐसे ही दो योग हैं रवि पुष्य योग और गुरु पुष्य योग। आइए जानते हैं कि यह योग क्या है और इनका ज्योतिष में क्या महत्व है।
क्या है रवि पुष्य योग (What is Ravi Pushya Yoga)
वैदिक ज्योतिष के अनुसार सभी 27 नक्षत्रों में 8वें स्थान पर पुष्य नक्षत्र आता है। यह बहुत ही शुभ नक्षत्र माना गया है। जब यह नक्षत्र रविवार के दिन आता है, तो वार और नक्षत्र के संयोग से जो योग बनता है, उसे रवि पुष्य योग कहते हैं।
रवि पुष्य योग का महत्व (Importance of Ravi Pushya Yoga)
किसी भी शुभ कार्यों के लिए यह योग सबसे अच्छा माना जाता है। मुहूर्त हो या नहीं, नक्षत्रों की स्थिति प्रतिकूल हो या अनुकूल हो। इस योग में किया गया कार्य बहुत ही लाभप्रद माना जाता है। इस योग में विवाह नहीं किया जाता है।
यह योग यंत्र सिद्धि के लिए बहुत ही शुभ माना जाता है। इस योग में पूजा- अर्चना करना भी बहुत फलदायी माना गया है। इस योग में आर्थिक समृद्धि भी आने की मान्यता है।
गुरु पुष्य योग (Guru Pushya Yoga)
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी योग में गुरु पुष्य योग को सबसे श्रेष्ठ माना गया है। इस योग में कोई कार्य शुरू करने पर पूर्ण और सफल होने की मान्यता है। पुष्य नक्षत्र जब रविवार और गुरुवार के दिन पड़ता है, तो इसे गुरु पुष्यामृत योग और रवि पुष्यामृत योग कहते हैं। इन दोनों योग में धनतेरस का पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है।
शास्त्रों के अनुसार इस नक्षत्र में धन की देवी मां लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इस योग में भी विवाह करना वर्जित है। इस योग में भी शुरू किया गया नया कार्य सफल होने की मान्यता है। इस योग में नए कार्य की शुरूआत के लिए मुहूर्त देखने की आवश्यता नहीं पड़ती है।
