Mauni Amavasya 2018 Vrat Katha: माघ महीने की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है। इस अमावस्या के दिन स्नान और दान का बहुत महत्व होता है। इस दिन भगवान शिव और विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। मौनी अमावस्या को सबसे बड़ी अमावस्या भी कहा जाता है। इस दिन पवित्र नदी में स्नान करना बहुत फलदायी माना जाता है। शिवपुराण में मौनी अमावस्या के महत्व के बारे में उल्लेख किया गया है। कहा जाता है इस दिन दान देने से ग्रह दोष खत्म हो जाते हैं। इस दिन मौन व्रत रखने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है। आइए जानते है व्रत कथा –
कांचीपुरी नगरी में एक देवस्वामी नाम का ब्राह्मण अपना पत्नी धनवती और 7 पुत्र और एक पुत्री के साथ रहता था। उनकी पुत्री का नाम गुणवती था। ब्राह्मण मे अपने सातों बेटों की शादी कर अपनी पुत्री के लिए के लिए सबसे बड़े बेटे को वर तलाशने के लिए भेजा। इसी दौरान किसी पंडित मे उनके पुत्री की जन्मकुंडली देखी और उसकी बारे में ऐसी बात बताई जिसे सुनकर सब चौंक गए। पंडित ने बताया कि देवस्वामी की कुंडली में एक दोष है। जिसके कारण पुत्री विधवा हो जाएगी। इसके बाद देवस्वामी ने इसके उपाय के बार में पूछा। पंडित ने बताया कि सोमा का पूजन करने से यह दोष दूर हो सकता है। पंडित ने सोमा के बारे में बताया कि वह एक धोबिन है और सिंहल द्वीप में रहती है। उसे जैसे-तैसे प्रसन्न करके यहां लेकर आओ। इसके बाद देवस्वामी का सबसे छोटा पुत्र अपनी बहन को साथ लेकर सिंहल द्विप जाने के लिए सागर तट पर गया। दोनों सागर पार करने की चिंता कर एक पेड़ के नीचे बैठ गए। जिस पेड़ के नीचे वह बैठे थे उस पेड़ पर एक गिद्ध का घोंसला था और उसमें गिद्ध का परिवार रहता था। गिद्ध के बच्चे दोनों की बातें ध्यान से सुन रहे थे।
जब शाम को घोंसले में उन बच्चों की मां पहुंची तो उन्होंने भोजन नहीं किया। बच्चों ने मां से कहा की पहले नीचे बैठे उन दो प्राणी को भोजन कराओ और उनकी समस्या का निवारण करो। यह वचन लेने के बाद गिद्ध के बच्चों ने भोजन किया। अगले दिन गिद्ध की मदद से दोनों भाई-बहनों को सिंहल द्वीप पहुंचा दिया गया। वहां उन्हें सोमा का घर भी मिल गया। दोनों भाई-बहनों ने सोना को प्रसन्न करने के लिए एक योजना बनाई। वे दोनों नित्य प्रात: उठकर सोमा का घर झाड़कर लीप देते थे। इससे हैरान होकर एक दिन सोमा ने अपनी बहूओं से पूछा की घर को कौन बुहरता है और लीपा-पोती करता है। सोमा की झूठी प्रंशसा पाने के लिए उनकी बहूओं ने कहा हमारे अलावा यह काम कौन करता है। लेकिन सोमा को इस बात का विश्वास नहीं हुआ और उसने अपने मन में ऐसा करने वाले को खोजने की कसम खाई। सोमा ने सुबह जल्दी उठकर देवस्वामी के भाई-बहनों को लीपा-पोती करते हुए पकड़ लिया। जिसके बाद सोमा के पूछने पर उन्होंने सोमा को पूरी बात बता दी। सोमा उनकी श्रम-साधना प्रसन्न हो गई और घर उचित समय पर उनके घर पहुंचने का वचन दिया। मगर भाई ने अधिक आग्रह पर सोमा उनके साथ चल दी।
Mauni Amavasya 2018: इस दिन स्नान करने से मिलता है अमृत के समान पुण्य, जानिए इसका महत्व
घर से चलते समय सोमा ने अपनी बहुओं से कहा कि मेरी अनुपस्थिति में किसी का देहांत हो जाए तो उसका शरीर नष्ट मत करना और मेरा इंतजार करना। यह समझाने के बाद सोमा कांचीपुरी पहुंच गई। दूसरे दिन गुणवती के विवाह का कार्यक्रम तय हो गया। सप्तपदी होते ही उसका पति मर गया। सोमा ने तुंरत अपने संचित पुण्यों का फल गुणवती को प्रदान कर दिया। इसके बाद गुणवती ने भगवान विष्णु की पूजा कर पीपल के पेड़ की 108 परिक्रमाएं की जिसके बाद गुणवती का पति जीवित हो उठा। सोमा उन्हें सौभाग्यवती का आर्शीवाद देकर अपने घर लौट गई। उधर गुणवती को पुण्य-फल देने के बाद सोमा के पुत्र जामाता तथा पति की मृत्यु हो गई। सोमा ने पुण्य फल संचित करने के लिए मार्ग में अश्वत्थ (पीपल) वृक्ष की छाया में विष्णुजी का पूजन करके 108 परिक्रमाएं कीं। इसके बाद परिवार के मृतक जन जीवित हो गए।
