Vishwakarma Puja Shubh Yog And Muhurt: विश्वकर्मा जयंती 17 सितंबर 2022 को है। इस दिन वास्तुकला और भगवान शिल्पी भगवान विश्वकर्मा की पूजा करने का विधान है। भगवान विश्वकर्मा को प्रथम इंजीनियर माना जाता है। कारखानों, संस्थानों, दुकानों में इस दिन काम में इस्तेमाल होने वाले औजारों और मशीनों, औजारों की पूजा की जाती है। वहीं आज वैदिक पंचांंग के अनुसार 5 विशेष योग भी बन रहे हैं। जिससे आज के दिन का महत्व और भी बढ़ गया है। आइए जानते हैं शुभ योग और चौघड़िया मुहूर्त का समय…
विश्वकर्मा पूजा का चौघड़िया मुहूर्त
ज्योतिष शास्त्र में चौघड़िया मुहूर्त का अपना विशेष महत्व है। आपको बता दें कि हर वार का अपना अलग- अलग चौघड़िया मुहूर्त होता है। चौघड़िया मुहूर्त के स्वामी- उद्वेग के रवि, चर के शुक्र, लाभ के बुध, अमृत के चन्द्र, काल के शनि, शुभ के गुरु और रोग के स्वामी भौम माने जाते हैं। श्रेष्ठ समय शुभ, चर, अमृत और लाभ के चौघड़िया का होता है। इन मुहूर्त में पूजा करना शुभ फलदायी माना जाता है। जिसमें पूजा का दोगुना फल प्राप्त होता है।
शुभ – उत्तमः सुबह 07 बजकर 40 मिनट से सुबह 09 बजकर 10 मिनट तक
चर – सामान्यः दोपहर 12 बजकर 16 मिनट से दोपहर 01 बजकर 49 मिनट तक
लाभ – उन्नतिः दोपहर 01 बजकर 47 मिनट से दोपहर 03 बजकर 21 मिनट तक
अमृत- सर्वोत्तमः दोपहर 03 बजकर 21 मिनट से शाम 04 बजकर 53 मिनट तक
बन रहे हैं 5 शुभ योग
वैदिक पंचांग के मुताबिक इस वर्ष विश्वकर्मा पूजा के अवसर पर पांच योग बन रहे हैं। जिससे विश्वकर्मा पूजा का महत्व और भी बढ़ गया है। आपको बता दें कि इस दिन शुभ योग में रवि योग, अमृत सिद्धि योग, सर्वार्थ सिद्धि योग, द्विपुष्कर योग और सिद्धि योग बन रहे हैं। जिसमें पूजा का दोगुना फल प्राप्त होता है। साथ ही द्विपुष्कर योग में पूजा करना मनोवांछित फल देने वाला होता है।
जानिए पूजन- विधि
विश्वकर्मा पूजा के दिन सुबह जल्दी स्नान करके साफ सुथरे कपड़े पहन लें। इसके बाद अपने प्रतिष्ठान पर पत्नी के साथ जाएं और एक चौकी पर पीला कपड़ा विछाकर भगवान विश्वकर्मा की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। इसके बाद विश्वकर्मा जी को फल, मिष्ठान और फूल अर्पित करें। इसके बाद मशीनों और जो वाहन हैं उस पर स्वास्तिक का चिह्न बनाकर पूजा करें। बाद मेंं जो भोग लगाएं उसको सभी लोगों में बांट दें। साथ ही अंंत में भगवान विश्वकर्मा की आरती करें।
भगवान विश्वकर्मा जी की आरती
ऊं जय श्री विश्वकर्मा प्रभु जय श्री विश्वकर्मा।
सकल सृष्टि के कर्ता रक्षक श्रुति धर्मा ॥
आदि सृष्टि में विधि को, श्रुति उपदेश दिया।
शिल्प शस्त्र का जग में, ज्ञान विकास किया ॥
ऋषि अंगिरा ने तप से, शांति नही पाई।
ध्यान किया जब प्रभु का, सकल सिद्धि आई॥
रोग ग्रस्त राजा ने, जब आश्रय लीना।
संकट मोचन बनकर, दूर दुख कीना॥
जब रथकार दम्पती, तुमरी टेर करी।
सुनकर दीन प्रार्थना, विपत्ति हरी सगरी॥
एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।
द्विभुज, चतुर्भुज, दशभुज, सकल रूप साजे॥
ध्यान धरे जब पद का, सकल सिद्धि आवे।
मन दुविधा मिट जावे, अटल शांति पावे॥
श्री विश्वकर्मा जी की आरती, जो कोई नर गावे।
कहत गजानन स्वामी, सुख सम्पत्ति पावे॥